नई दिल्ली: राम मंदिर के शिलान्यास का कार्यक्रम पूरी दुनिया ने देखा. बिना किसी विघ्न-बाधा के यह संपन्न हुआ. लेकिन ऐसा नहीं है कि इसमें खलल डालने की कोशिशों में कोई कमी रखी गई. 

कट्टरपंथियों ने आग लगाने की कोशिश की
भगवान राम के मंदिर के शिलान्यास कार्यक्रम में बाधा डालने की भरपूर कोशिश की गई. जिसकी शुरुआत असदुद्दीन ओवैसी ने की. जिसके बाद ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी खुराफाती बयानबाजी की. 
एक मुस्लिम नाम वाली पार्टी के अध्यक्ष ओवैसी ने पीएम मोदी को धर्मनिरपेक्षता सिखाने की धृष्टता की और शिलान्यास कार्यक्रम को हिंदु राष्ट्र की स्थापना की शुरुआत करार दिया. 
ओवैसी की गलतबयानी से संबंधित पूरी खबर आप यहां पढ़ सकते हैं. 
इसके बाद ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड(AIMPLB)ने देश में दंगा भड़काने की साजिश रचते हुए बयानबाजी की और सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया. 
AIMPLB की दंगाई बयानबाजी की पूरी खबर आप यहां पढ़ सकते हैं.


ट्विटर के जरिए नफरत फैलाने की कोशिश
एक तरफ जहां मुसलमान नेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए देश को दंगों की आग में झोंकने की कोशिश कर रहे थे. वहीं पाकिस्तानी फंडिंग पर जिंदगी बिताने वाले भाड़े के कट्टरपंथी टट्टू ट्विटर के जरिए भारतीय मुसलमानों को भड़काने की साजिश रच रहे थे. इन लोगों ने #ReturnBabriLandToMuslims, #5AugustBlackDay और #BabriZindaHai जैसे कई नफरत से भरे हैशटैग ट्विटर पर चलाने की कोशिश की. लेकिन नतीजा शून्य रहा. 


ये ऑनलाइन दंगाई काफी पहले से ट्विटर पर नफरत भरे मैसेज डाल रहे थे. इसमें से एक शख्स अली सोहराब के खिलाफ तो पुलिस ने कार्रवाई भी की थी और उसे 48 घंटे के रिमांड पर भी भेजा था. लेकिन ट्विटर पर चल रही इन चंद किराए के दंगाइयों की साजिश पूरी तरह असफल रही.
दंगाइयों को झांसे में नहीं आए मुसलमान
5 अगस्त के दिन और उसके हफ्ते भर पहले से ही मजहबी कट्टरपंथी सक्रिय हो गए थे. ओवैसी ने बयानबाजी करके माहौल खराब करने की पूरी कोशिश की. जिसके बाद AIMPLB ने तो सारी हदें पार कर दीं और देश की सर्वोच्च न्यायपालिका के फैसले को ही नकारने की कोशिश की. इसके अलावा ऑनलाइन दंगाइयों की साजिशें अलग से जारी थीं. 
लेकिन देश का मुस्लिम समुदाय इस सभी के झांसे में बिल्कुल नहीं आया. दंगाइयों और कट्टरपंथियों के लाख हंगामे और तरह तरह के भड़काऊ बयानबाजियों के बावजूद देश का 15-20 करोड़ मुसलमानों ने शांतिपूर्वक श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के शिलान्यास का कार्यक्रम देखा.


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देश में कहीं भी किसी तरह के धरना प्रदर्शन की खबरें नहीं आईं. हिंदू मुसलमान सबने अपने प्रधानमंत्री के कार्यक्रम का स्वागत किया.
यही नहीं बाबरी मस्जिद के मुस्लिम पक्षकार रहे हाजी महबूब, इकबाल अंसारी, लावारिश लाशों का अंतिम संस्कार करने वाले पद्मश्री मुहम्मद शरीफ जैसे गणमान्य मुसलमानों ने शिलान्यास कार्यक्रम में जोशोखरोश के साथ शिरकत भी की.    
   
राम मंदिर को लेकर भारतीय मुसलमानों का यह प्रशंसनीय रवैया कोई नया नहीं है. साल 2019 के नवंबर महीने में जब सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया था. तब भी मुस्लिम समुदाय के लोगों ने बेहद संयम के साथ इस फैसले को स्वीकार किया था. 



दरअसल भारत के मुसलमानों की यह शांतिपूर्ण प्रक्रिया बताती है कि वह ये अच्छी तरह जानते हैं कि बाबर जैसे बर्बर आक्रमणकारी की बजाए भगवान राम का आदर्श चरित्र उनके ज्यादा निकट है. भारत में भले ही अलग अलग धर्मों के लोग निवास करते हों लेकिन उन सभी का खून पूरी तरह भारतीय है. 


शिलान्यास कार्यक्रम के मौके पर भारतीय मुसलमानों की यह शांतिपूर्ण सहज प्रतिक्रिया इस बात का संकेत है कि वह अब कट्टरपंथियों के झांसे में आकर मुख्यधारा से कट नहीं सकते. वह भी नए भारत में अपनी पूरी भागीदारी के उत्सुक हैं.