वाराणसी : Ground Report- देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के संसदीय क्षेत्र वाराणसी का एक गांव.. नाम डोमरी, जो गंगा किनारे बसा है, उसे खुद पीएम ने वर्ष 2018 में गोद लिया था. बीते तीन वर्षों में इस गांव में कितना विकास हुआ या फिर ये जस-का-तस है. इसी सच को सामने लाने के लिए ज़ी हिन्दुस्तान की टीम जमीनी पड़ताल के लिए निकली.


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कहीं खुशी, कहीं गम का माहौल


बनारस शहर से इस गांव की दूरी ज्यादा नहीं थी, हमारी टीम ने इस सफर को बड़ी ही आसानी से तय कर लिया. बनारस के लिए ट्रैफिक तो आम बात है. राजघाट पुल से नीचे उतरते ही बाएं तरफ से एक रास्ता मुड़ा है. वही रास्ता सीधे डोमरी गांव को जाता है. हम आगे बढ़ते चले गए, गांव की अलग-अलग तस्वीरें हमारे सामने आती चली गई.


एक तरफ कुछ लोग खेतों में बकरी चरा रहे थे, तो कुछ महिलाएं गोबर का उपला बना रही थी. अमूमन सब वैसी ही तस्वीर थी, जैसे कि एक आम गांव की होती हैं. गांव के पास एक बेकरी की भी दुकान थी, जो काफी मॉर्डन थी. हमें थोड़ी सी हैरानी हुई, इस दुकान के मालिक अमोल अग्रवाल से हमने बात की.


अमोल ने बताया कि वो और उनका परिवार वर्ष 2018 में ही यहां आकर बसा है, उसके पहले के हालात तो नहीं मालूम लेकिन 2018 के बाद से यहां लगातार कोई न कोई काम चल ही रहा है, चाहें वो छोटा हो या फिर बड़ा.. सड़क का लगातार निर्माण हो रहा है, यहां बिजली नहीं थी, खंभे और ट्रांसफार्मर लगा दिए गए.


हालांकि अमोल अग्रवाल की दुकान के ठीक बाहर एक बूढ़े चाचा जी भी खड़े थे. उन्होंने अपना नाम बनवारी लाल बताया, शायद उनको इस सरकार से काफी नाराजगी थी. उन्होंने इसे जाहिर करते हुए कहा कि 'सड़क बनवा दिया और बिजली दे दिया तो उससे सब थोड़ी ही हो गया है. यहां नाली नहीं है, घर के नाली का पानी सीधे खेत में जाता है.


काम हो रहा है या नहीं? पड़ताल में खुली 'पोल'


दोपहर के करीब 3 बज रहे थे, हम जब पूरे गांव में घूम रहे थे तो मिली जुली प्रतिक्रियाएं सामने आईं. हां एक बात तो जरूर दिखी कि गांव के कोने-कोने को सड़क से जोड़ा गया है, लेकिन कई जगहों पर हफ्तों पहले गिट्टी गिरा दिया गया है और काम अब तक बंद है. बहुत सी सड़कों का काम आधा-अधूरा छोड़ दिया गया है.


उन निर्माणाधीन सड़कों को देख कर हमने सोचा कि काम जारी ही होगा, लेकिन गोलू नाम के एक युवक ने हमें बताया कि 'भईया इस सड़क का काम बहुत दिनों से बंद पड़ा हुआ है.'


डोमरी गांव में नए-नए बिजली के खंभे भी दिखाई दे रहे थे. हम भी इन खंभों को देखते-देखते गांव के अंतिम छोर पर पहुंच गए. गंगा किनारे मिथिलेश पांडेय नाम के एक शख्स मिले. उन्होंने बताया कि 'काम तो बहुत सारा हुआ है, यहां के लोग उपेक्षित थे. इससे पहले जो सरकारें थी, उनके राज में यहां एक बिजली के तार की भी व्यवस्था नहीं थी. ट्रांसफार्मर की बात तो दूर की है. यहां बिजली, सड़क और स्वच्छता का बेहतरीन काम हुआ है.'

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गंगा का पानी बढ़ा तो रुक गया विकास कार्य


सड़कों का काम अधूरा क्यों रोका गया, इसकी जानकारी तो गांव के लोगों को नहीं थी. हालांकि कुछ लोग ऐसे भी थे, जो इस सरकार से और पीएम मोदी के कार्यों से काफी खुश थे. हम गंगा किनारे पहुंचे तो वहां कुछ मशीनें रखी हुआ थीं. जब हमने वहां मौजूद लोगों से पूछा कि ये सब क्या है, क्या यहां कोई काम-धाम होता भी है या नहीं?


लोगों ने जबाव दिया कि 'गंगा का पानी बढ़ने के चलते सारा काम रुक गया, किसी बड़े प्रोजेक्ट पर काम चल रहा था और जब पानी उफान पर आया तो हर जगह बालू और पानी-पानी भर गया.'


गांव में बच्चों की पढ़ाई के लिए क्या हैं सुविधाएं?


डोमरी गांव में सिर्फ सड़क, बिजली, पानी जैसे ही काम नहीं हुए हैं. लोगों से जब हमने बात की तो एक बूढ़े दादा जी ने बताया कि यहां के स्कूल की व्यवस्था काफी बेहतर की गई है. हमारी नजर वहां खड़े एक बच्चे पर पड़ी. हम तुरंत उसके पास पहुंच गए.


बच्चे से हमने उसका नाम पूछा, उसने अपना नाम मोहम्मद सफीक बताया. उससे ये भी पूछा कि काम हुआ है क्या? बच्चों की पढ़ाई के लिए सुविधाएं दी गई हैं? उसने बताया कि स्कूल में पढ़ाई होती है, अच्छी व्यवस्था है और कोई परेशानी नहीं है.


मोहम्मद सफीक कक्षा 6 में पढ़ता है, उसे सिर्फ पढ़ाई से मतलब था तो हमने उससे सिर्फ शिक्षा से जुड़े सवाल किए. कुछ लोगों ने हमसे अपनी समस्या भी बताई. किसी की जमीन से जुड़ी समस्या थी तो किसी के खेत पर कब्जे की समस्याएं थी.


घरेलू महिलाओं से भी हमने बात की सभी ने अपनी समस्या में एक मुख्य मुद्दा महंगाई को बताया. हमने गांव के कुछ किसानों से भी बात करने की कोशिश की. कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन पर उनकी राय पूछी तो उन्होंने कहा कि 'भईया हम दिल्ली जाकर आंदोलन करेंगे तो खेती कब करेंगे? कानून हमारे लिए विरोध का मुद्दा नहीं है, डीजल के दाम और महंगाई हमारे लिए मुख्य मुद्दा है.'


डोमरी को जानिए


एक नजर में यदि डोमरी के बारे में बताया जाए तो ये मुख्यालय से 11 किलोमीटर की दूरी पर है. जिसका क्षेत्रफल 486 हेक्टेयर है. यहं 50 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है. करीब साढ़े 7 सौ परिवार के तकरीबन 5 हजार लोग यहां रहते हैं. करीब 100 किसान परिवार भी यहां रहते हैं.


बनारस में जाम की समस्या तो वाकई अपने चरम पर है, क्योंकि जब हम डोमरी गांव की तरफ आ रहे थे तो हमेशा की तरह इस बार भी हमें ट्रैफिक जाम की परेशानियों का सामना करना पड़ा था. वाराणसी सिटी स्टेशन के आगे बढ़ कर जब हमने कज्जाकपुरा को पार किया थोड़े से ट्रैफिक का सामना किया. लेकिन अभी असली पड़ाव तो बाकी था. 'पड़ाव' चौराहे के ठीक पहले गंगा की दोनों छोर को जोड़ने वाले राजघाट पुल पर भयंकर जाम लगा हुआ था. बसंता कॉलेज मोड़ से हम जाम में फंसे और पुल को जब तक पार नहीं किया तब तक गाड़ी ठसक-ठसक कर आगे बढ़ पा रही थी.


लौटते वक्त भी हमने कुछ इसी तरह की कठिनाइयों को चुनौती समझ कर पूरा रास्ता पार किया. ऐसा कहा जा रहा है कि डोमरी गांव को पीएम मोदी कुछ बहुत बड़ा सौगात देने वाले हैं. अब ये सौगात क्या है इसकी आधिकारिक पुष्टि तो अब तक नहीं की गई है, सारे कार्य भी अभी रुके हुए हैं. क्या उड़ती-उड़ती खबरों को सच में तब्दील किया जाएगा या फिर ये बातें सिर्फ हवा-हवाई ही रह जाएंगी.

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