वाराणसी : Ground Report- बनारस, काशी या फिर वाराणसी... लोग इसे अपने अनुसार कह कर पुकारते हैं. काशी की संस्कृति से पूरी दुनिया वाकिफ है. इसे मोक्ष की नगरी भी कहा जाता है. बनारस के लिए एक पंक्ति काफी प्रचलित है- 'जिसने भी छुआ वो स्वर्ण हुआ, सब कहें मुझे मैं पारस हूं, मेरा जन्म महाश्मशान मगर मैं जिंदा शहर बनारस हूं.' ऐसे ही जिंदा शहर बनारस में मणिकर्णिका नाम से एक श्मशान घाट है.
वर्षों से नहीं बुझा है चिताओं का आग
काशी के मणिकर्णिका घाट के बारे में एक मान्यता है कि यहां चौबीसो घंटे चिताएं जलती रहती हैं. दुनिया इधर से उधर हो जाए, लेकिन यहां चिताओं की अग्नि तबसे जल रही है, जब शंकर भगवान की पत्नी माता पार्वती ने श्राप दिया और कहा कि यहां की आग कभी नहीं बुझेगी.
हर कोई इस स्थान को लेकर अपनी-अपनी कहानियां सुनाता है, अपने-अपने तरीके से बातें बताता है. मगर ज़ी हिन्दुस्तान की टीम जब बनारस पहुंची तो हमने ये फैसला लिया कि इस कहानी की असल हकीकत की पड़ताल करके आप तक पहुंचाएंगे. हमारी टीम भी रात के करीब 10 बजे मणिकर्णिका घाट पर पहुंची.
दुनिया में सबसे अलग एहसास
पतली-पतली गलियों से गुजर कर जब हम घाट के पास पहुंचे तो काफी हमें दूर से ही धुआं दिखने लगा. इतनी भीड़-भाड़, लोगों की हुजूम और हर कोई अपनों के अंतिम संस्कार के लिए इस घाट पर आया था. गलियों में एक के बाद एक हजारों दुकानें थी. कोई समोसा, लौंगलत्ता, कचौड़ी और जलेबी बेंच रहा था. दही, लस्सी और पनीर की भी कई दुकानें दिखीं.
लेकिन सबसे अधिक दुकानें अंतिम संस्कार के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सामग्रियों की थी. जब हम घाट पर पहुंचते हैं तो जगह-जगह लोग अपना गुट बनाकर बैठे हुए थे. कोई चिता को अग्नि देकर एकांत में बैठा था, तो कोई लकड़ियों की खरीदारी कर रहा है. हम घाट पर तो पहुंच गएं, लेकिन हमारे जेहन में एक असमंजस सा था कि क्या यहां लोगों से बात करना उचित होगा.
हमने ये फैसले किया कि यहां रहने वाले लोगों से ही इतिहास के बारे में सटीक जानकारी प्राप्त होगी. हम तलाश में थे और कुछ ही मिनटों में हमारी तलाश पूरी हो गई.
मणिकर्णिका वाले बलराम ने बताया सबकुछ
जिस वक्त हमारी टीम मणिकर्णिका घाट पर पहुंची थी, वो वक्त रात का था. हालांकि घाट के माहौल को देखकर ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगा कि रात के सवा दस बज रहे हैं. दूर से देखा तो पान की दुकान दिखी, जहां नमकीन का पैकेट और अन्य सामाग्री भी बिक रही थी. पास पहुंचे तो दुकान का नाम था- 'बलराम जनरल स्टोर'.. हमने बलराम जनरल स्टोर पर बैठे व्यक्ति से बात की.
उन्होंने बताया कि 'बनारस में साल में एक बार शिवरात्रि के अवसर पर पंचकोशी यात्रा होती है. जिसकी शुरुआत यहीं मणिकर्णिका कुंड से स्नान के बाद होता है. बनारस के पांच कोश मंदिर हैं. पहला मणिकर्णिका घाट, दूसरा कर्दमेशवा मंदिर, तीसरा रामेश्वर मंदिर, चौथा द्रौपदी कुंड शिवपुरी और पांचवा कुपुलधारा तुलाओ का लिथोग्राफ है.'
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क्यों वर्षों से नहीं बुझी है चिताओं की अग्नि?
हमें इतिहास से जुड़ी ढेर सारी जानकारियां प्राप्त हो चुकी थीं, हालांकि अब तक किसी ने ये नहीं बताया कि आखिर यहां वर्षों से आग क्यों नहीं बुझी हैं और इसके पीछे की कहानी क्या है?
हम आगे बढ़ रहे थे इतने में ही एक व्यक्ति ने बनारसी अंदाज में हमसे कहा कि 'यही एक स्वच्छ जगह है भईया, एही जगह पर लोगन के मुक्ति मिलेला.'
हमने भी सवाल जवाब का दौर शुरू कर दिया. जो सवाल हमारे जेहन में था उसे पूछने से पहले ही इस शख्स ने यहां की सारी मान्यताओं का कहानियों के बारे में खुद से बताना शुरू कर दिया. उन्होंने खुद से कहा कि मणिकर्णिका का ऐसा श्राप है कि यहां 24 घंटे आग जलती रहती हैं.
हमने इसके तुरंत बाद ये पूछ लिया कि कैसे? तो उन्होंने बताया कि 'एक बार पार्वती जी स्नान कर रही थी. उनके कान की बाली कुंड में गिर गई, जिसमें मणि लगी थी. जिसे ढूंढने के लिए काफी जद्दोजहद किया गया. लेकिन उनकी बाली नहीं मिली. पार्वती माता को इतने में क्रोध आ जाता है और उन्होंने ये श्राप दे दिया कि मेरी मणि नहीं मिली, ये स्थान हमेशा जलता रहेगा.'
उन्होंने ये भी बताया कि यही वजह है कि यही वजह है कि इस स्थान का नाम मणिकर्णिका रखा गया. यहां लोग अपनों का अंतिम संस्कार करने आते हैं. मणिकर्णिका के इतिहास के बारे में जानने के बाद हमने सोचा कि यहां के लोगों से ये भी जानकारी प्राप्त हो जाए कि यहां बीते वर्षों में क्या-क्या बदलाव हुआ है.
कुछ वर्षों में बदल गई मणिकर्णिका की तस्वीर
बाबू लाल नाम के एक चाय वाले भईया से हमने पूछा कि आप कितने समय से यहां चाय बेचते हैं? उन्होंने कहा कि 'मेरा जन्म यहीं हुआ है भईया.. तीन पीढ़ी से हम लोग यहीं रह रहे हैं.' Zee हिन्दुस्तान की टीम को ये समझ आ गया था कि बाबू लाल हमारे सवालों का जवाब जरूर दे देंगे कि बीते कुछ वर्षों में मणिकर्णिका का स्वरूप कितना बदल गया.
हमने ये सवाल उनके सामने रखा और उन्होंने भी जवाब देना शुरू किया. बाबू लाल ने बताया कि 'भईया काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण से मणिकर्णिका की तस्वीर और तकदीर दोनों बदल गई है. पहले यहां सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं था, एक घाट था जिसके किनारे पर लाशें जलाई जाती थी. मगर यहां बीते कुछ वर्षों में इतना निर्माण हुआ और आप अभी भी देख रहे हैं कि काम तो चल ही रहा है.'
बाबू लाल ने बताया कि काम पूरा होने के बाद मणिकर्णिका घाट पूरी तरह से चमक जाएगा. हमारी टीम ने मणिकर्णिका घाट पर इस सच की अनुभूति की और समझा कि जीवन और मृत्यु पर किसी का जोर नही हैं. जीवन का सबसे बड़ा सत्य, मृत्यु और मोक्ष ही है. अपनी इसी अनोखे स्वरूप और इतिहास के लिए दुनियाभर में मणिकर्णिका की कहानियां प्रचलित हैं, यहां के लोग एक नारा भी देते हैं बोलो बाबा मशान नाथ की जय.
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