नई दिल्ली: 24 जून को जम्मू कश्मीर की किस्मत का एक बड़ा फैसला होने वाला है. जम्मू-कश्मीर पर गुरुवार को केंद्र सरकार के साथ सर्वदलीय बैठक है. जम्मू कश्मीर की पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती दिल्ली पहुंच भी चुकी हैं. जम्मू कश्मीर के सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों और उप मुख्यमंत्रियों को इस बैठक में बुलाया गया है.
जम्मू कश्मीर पर दिल्ली में अहम बैठक
जम्मू कश्मीर पर दिल्ली में पीएम मोदी ने सर्वदलीय बैठक बुलाई है. इस बैठक में सभी प्रमुख दलों के नेता शामिल हो रहे हैं. गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बैठक में होंगे. जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा बैठक में होंगे.
आपको बता दें, बैठक में जम्मू कश्मीर के 4 पूर्व सीएम, और 4 पूर्व डिप्टी सीएम शामिल होंगे. केंद्रीय गृह सचिव ने 8 दलों के 14 नेताओं को न्योता भेजा है. गुलाम नबी आजाद, फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती बैठक में आएंगे. इसके अलावा उमर अब्दुल्ला, कवींद्र गुप्ता, निर्मल सिंह, रवींद्र रैना बैठक में होंगे.
अल्ताफ बुखारी, सज्जाद लोन, मुजफ्फर बेग, गुलाम अहमद मीर, भीम सिंह, यूसुफ तरागामी भी बैठक में होंगे. माना जा रहा है कि बैठक का बड़ा एजेंडा परिसीमन और विधानसभा चुनाव हो सकता है.
सर्वदलीय बैठक में क्या-क्या होगा?
दिल्ली की बैठक में कल क्या होता है, इसका इंतजार पूरे देश को है. लेकिन डीडीसी चुनावों के बाद जम्मू कश्मीर में जल्द से जल्द विधानसभा चुनाव कराने की कोशिश की जा रही है और चुनाव से पहले सीटों की डिलिमिटेशन जरूरी है. यानी विधानसभा सीटों की बाउंड्री तय करना जरूरी है.
क्योंकि आपको अंदाजा नहीं होगा कि आर्टिकल 370 की आड़ में जम्मू कश्मीर में क्या-क्या गुल खिलाये गए थे. जम्मू के दस जिलों में सिर्फ 37 सीटें रखी गई थीं, जबकि कश्मीर में 10 जिलों के बीच 46 सीटें रखी गई थीं और कानून भी बना दिया था कि अब डिलिमिटेशन होगी ही नहीं 2026 तक..
वो तो 370 की बेडी कटी वरना जम्मू क्षेत्र के लोगों के कंधे पर बैठकर कश्मीर के अलगाववादी मलाई काटते रहते. आपको बताते हैं कि इस डिलिमिटेशन के नाम से भी महबूबा और फारूक अब्दुल्ला जैसे नेता क्यों डर रहे हैं. कल की बैठक में क्यों डिलिमिटेशन चर्चा का बड़ा मुद्दा हो सकता है.
चुनाव से पहले विधानसभा सीटों का परिसीमन
370 को कवच बनाकर कश्मीरी नेताओं ने सात दशकों में जो खेल खेला है. उसी का गुस्सा अब जम्मू में दिखता है और जम्मू के साथ हुई इसी नाइंसाफी को दूर करने के लिए मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर पुनर्गठन कानून पारित किया है.
जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने से पहले विधानसभा सीटों का परिसीमन करा रही है. अब आपको ये समझना चाहिए कि आखिर परिसीमन है क्या?
क्या है परिसीमन? प्रक्रिया समझिये
चुनावी व्यवस्था में विधानसभा क्षेत्र की सीमाएं तय करने को परिसीमन कहा जाता है जिसका मुख्य आधार जनसंख्या घनत्व होता है. संविधान के आर्टिकल 82 के तहत भारत सरकार परिसीमन आयोग बनाती है. जिसके फैसले को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती,
जम्मू कश्मीर पुनर्गठन कानून 2020 बनाने के बाद भारत सरकार ने मार्च 2020 में परिसीमन आयोग का गठन किया. जिसमें जस्टिस रिटायर्ड रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में कमेटी बनी. इस कमेटी में केंद्रीय चुनाव आयोग और राज्य चुनाव आयोग के एक-एक सदस्यों के अलावा जम्मू कश्मीर से फारूक अब्दुल्ला, हसनैन मसूदी, अकबर लोन, जीतेंद्र सिंह और जुगल किशोर शर्मा सदस्य थे.
इस आयोग को मार्च 2021 तक परिसीमन रिपोर्ट सौंपनी थी लेकिन कोविड काल के कारण समय सीमा एक साल बढ़ाई जा चुकी है. इसी आयोग का काम है जम्मू कश्मीर में आबादी के हिसाब से विधानसभा सीटों का क्षेत्र निर्धारण करना.
जम्मू-कश्मीर में परिसीमन क्यों जरूरी?
मोदी सरकार ने जो परिसीमन आयोग बनायास उसकी बैठक में कश्मीरी नेता पहुंचे तक नहीं. क्योंकि फारूक़ अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जैसे नेताओं और राजनीतिक दलों ने आर्टिकल 370 की आड़ लेकर जम्मू कश्मीर में खूब मनमानी की है.
जम्मू कश्मीर में विधानसभा सीटों का परिसीमन जान बूझकर इस तरह किया गया था कि जम्मू को कम और कश्मीर क्षेत्र में ज्यादा सीटें रखी गई थीं. जम्मू कश्मीर में विधानसभा सीटों का आख़िरी परिसीमन 1995 में हुआ और वो भी 1981 की जनगणना के आधार पर हुआ. इसके बाद जम्मू कश्मीर विधानसभा से कानून पारित करके परिसीमन की प्रक्रिया पर 2026 तक रोक लगा दी गई.
5 अगस्त को हुआ था ऐतिहासिक बदलाव
5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने जो फैसला लिया. उसके बाद जम्मू कश्मीर में भी भारतीय संविधान के आर्टिकल 82 के तहत परिसीमन की शुरुआत हुई.
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जम्मू कश्मीर में विधानसभा सीटों के परिसीमन के बाद ही चुनाव हो पाएंगे. वैसे मोदी सरकार साफ कर चुकी है कि जम्मू कश्मीर में आने वाले दिनों में विधानसभा सीटों की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 की जाएगी. जम्मू वालों को उम्मीद है कि तब शायद उनके साथ न्याय हो पाएगा.
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