नई दिल्ली. आज दो अक्टूबर है जो गांधी का जीवन संदेश देने वाला एक अमर दिवस है. सत्य तो ये है कि आज की भारतीय और वैश्विक परिस्थितियों में गांधी दर्शन ही शांति और मानव अधिकारो्ं की स्थापना का सफल सृजन कर सकता है. मानव के अधिकार एवं कर्तव्यों से मानव की गरिमा और उसकी प्रतिष्ठा की सामाजिक रचना होती है. महात्मा गांधी ने इन कर्तव्यों तथा अधिकारों को दृष्टि में रख कर तन-मन धन समाज के हित में बलिदान करने का संदेश दिया है.
गांधी-दृष्टि के बिना अधूरी है संकल्पना
मानवाधिकार संकल्पना गांधी दर्शन के अभाव में अधूरी ही है. विश्व के महापुरुषों ने इस बात को माना है कि गांधी के बिना मानवाधिकार की संकल्पना पूर्ण नहीं हो सकती. गांधी की दृष्टि और दर्शन का ही परिणाम मानवाधिकार की पृष्ठभूमि का सृजन करता है. गांधी ने कर्मप्रधान विश्व की संरचना करते हुए जगत को विश्व बन्धुत्व का जो पाठ पढ़ाया उसके आलोक में ही मानवाधिकार का व्यावहारिक सृष्टि होती है.
अहिंसा ही आधार है मानवाधिकार का
गांधी की अहिंसा ही सर्वोच्च तत्व है सामाजिक और वैश्विक मानवाधिकार का जो शान्ति का पाठ पढ़ाता है. इसीलिए मानवाधिकार की संकल्पना बिना गाँधी के अपूर्ण है, कारण ये कि गांधी की दृष्टि और उनके दर्शन पर ही मानवाधिकारों की सांस्कृतिक और वैचारिक आधारभूमि स्थापित है. अहिंसा के संदेशवाहक गांधी प्रत्येक विचार के भीतर एक ऐसा समन्वय स्थापित करते हैं जहां से व्यष्टि और समष्टि का शांतिपूर्ण अंतरसंबंध दृष्टिगत होता है और जो विश्व को व्यक्ति के मानवाधिकारों के लिए एक दिशा का मार्गदर्शन करता है.
पहली लड़ाई ही मानवाधिकार की थी
गांधी ने अपने जीवन की सहस्रों लड़ाइयों की शुरुआत ही मानवाधिकार की लड़ाई से की थी. दक्षिण अफ्रीका की ट्रेन में उनके पास प्रथम श्रेणी का टिकट होने पर भी जब वे रेलगाड़ी में सफर नही कर सके और उनको बाहर फेंक दिया गया तब उन्होंने वहाँ बसे भारतीय समुदाय के लोगों के मानवाधिकारों के बारे में अपनी जांच पड़ताल प्रारम्भ कर दी. गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका के भारतीय समुदाय के लोगों की सहायता की जिससे वे भेदभाव के शिकार न हो सकें. इसके बाद दुनिया ने देखा कि एक सहमे हुए भारतीय वकील ने दमित तथा असहाय एवं अधिकारहीन लाखों लोगों को उनके मानव अधिकार दिलाने में विशेषज्ञता हासिल कर ली. अदालत हो या अदालत के बाहर गांधी की मानवाधिकार की बहस में संकल्प भी था और विकल्प भी. सर्वोच्च न्यायालय में वकालत करते हुए गांधी ने मानवाधिकार की लड़ाई जारी रखी जबकि वहां कई हफ्तों तक उनके खिलाफ हिंसात्मक विरोध प्रदर्शन चलता रहा.
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