नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को कहा कि उनकी सरकार पिछली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के "पापों" को धो रही है क्योंकि उसे ईंधन सब्सिडी का पुनर्भुगतान करना पड़ रहा है जिसे उन्होंने भविष्य के लिए स्थानांतरित कर दिया था.
तेल बॉन्ड को लेकर निर्मला सीतारमण ने कही ये बड़ी बात
राज्यसभा में बजट पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि संप्रग सरकार ने पेट्रोलियम कंपनियों को तेल की कीमतें नहीं बढ़ाने पर हुए नुकसान के बदले तेल बॉन्ड जारी किए थे. ये बॉन्ड सब्सिडी थे जिनका भुगतान भविष्य की सरकारों द्वारा किया जाना था. कुल मिलाकर, 1.71 लाख करोड़ रुपये मूल्य के तेल बॉन्ड जारी किए गए और इस संबंध में ब्याज सहित 2.34 लाख करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है और 1.07 लाख करोड़ रुपये बाकी हैं जिनका अंतिम भुगतान 2025-26 में किया जाना है.
उन्होंने कहा कि इसी तरह उनकी सरकार को बैंकों का पूंजीकरण करना पड़ा, क्योंकि उनकी बही-खाते 'जीजाजी' और अन्य मित्रों को उनकी साख का पता लगाए बिना ऋण देने के निर्देशों से कमजोर हो गई थी.
आज अपने दम पर खड़े हैं हमारे बैंक- सीतारमण
सीतारमण ने कहा कि यह पूंजी बॉन्ड के जरिये प्रदान की गई थी जो 2037 तक देय हैं. उन्होंने जोर दिया कि दो बॉन्ड के बीच अंतर है, क्योंकि तेल बॉन्ड सब्सिडी के लिए थे जो राजस्व व्यय है और संपत्ति का निर्माण नहीं करता है. वहीं बैंक पुनर्पूंजीकरण के लिए बॉन्ड से बैंकों को मजबूती मिली है.
वित्त मंत्री ने कहा, 'आज, हमारे बैंक अपने दम पर खड़े हैं, वे अपने हिसाब से राशि जुटा सकते हैं... अगर मुझे उनके (संप्रग) लिए पाप शब्द का उपयोग करने की अनुमति दी जाए. हम प्रायश्चित कर रहे हैं.'
'यदि व्यापक कर आधार होता तो भारत ऋण नहीं लेता'
सीतारमण ने राज्यों की उपेक्षा के विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि केंद्रीय कोष से राज्यों को दिए गए धन में वृद्धि हुई है. पश्चिम बंगाल के बकाये पर गौर नहीं करने के दावे का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि राज्यों को माल एवं सेवा कर (जीएसटी) मुआवजा तब दिया जाता है जब ऑडिट किए गए आंकड़े प्रदान किए जाते हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल ने 2017 से यह जमा नहीं किया है.
कुछ सदस्यों द्वारा उच्च सरकारी कर्ज को लेकर चिंता जताए जाने पर उन्होंने कहा कि यदि व्यापक कर आधार होता तो भारत ऋण नहीं लेता. 'एनपीए' के संबंध में उन्होंने कहा कि पिछले पांच साल में बैंकों द्वारा 10.09 लाख करोड़ रुपये का कर्ज बट्टे खाते में डाला गया और उन्हें माफ नहीं किया गया है तथा कर्ज लेने वालों की देनदारी बनी रहेगी.
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