नई दिल्ली: प्रियदर्शिनी, आयरन लेडी और भारत की दुर्गा. इसी नाम से देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सम्बोधित किया जाता है. 31 अक्टूबर की वह तारीख है जो भारतीय राजनीति के काले अक्षरों में शुमार है क्योंकि इसी दिन हमारी आयरन लेडी ने दुनिया को अलविदा कहा था.
आइये आज इंदिरा गांधी के बारे में कुछ ऐसे अनसुने किस्से बताते हैं जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं.
इंदिरा से पति फ़िरोज़ के रिश्ते
कहते हैं कि साल 1975 की फिल्म 'आंधी' का एक गाना काफी हद तक इंदिरा की जीवन पर आधारित रहा. गाने के बोल कुछ यूं हैं.
"इस मोड़ से जाते हैं
कुछ सुस्त क़दम रस्ते कुछ तेज़ क़दम राहें
कि पत्थर की हवेली को शीशे के घरौंदों में
तिनकों के नशेमन तक इस मोड़ से जाते हैं"
हालांकि ये फिल्म विवादों में रही. बाद में इसे प्रतिबंध भी कर दिया गया था.
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पहली मुलाकात
कहा जाता है फिरोज और इंदिरा की मुलाकात मार्च, 1930 में हुई थी. तब आजादी की लड़ाई के दौर में एक कॉलेज के सामने धरना दे रही कमला नेहरू बेहोश हो गई थीं और फिरोज गांधी ने उनकी देखभाल की थी.
मिलने का यह सिलसिला काफी आगे तक गया. कहा जाता है फिरोज कमला नेहरू की तबीयत जानने के लिए उनके घर जाया करते थे. इसी बहाने उनकी मुलाकात इंदिरा गांधी से भी हो जाती थी.
1936 को जब कमला नेहरू का देहांत हुआ तब भी फिरोज गांधी उनके पास थे. फिरोज गांधी के भीतर सेवा और संवेदना का आत्मीय तत्व था यही वजह थी कि युवा इंदिरा उनकी ओर आकृष्ट हुईं.
इलाहाबाद में रहने के दौरान फिरोज गांधी के रिश्ते नेहरू परिवार से बेहद मधुर हो गए थे. वे अक्सर आनंद भवन आते जाते थे. 1942 में दोनों ने शादी कर ली. हालांकि नेहरू इस शादी के खिलाफ थे.लेकिन बाद में वो मान गए.
राजनीति और तकरार
मशहूर पत्रकार इंदर मल्होत्रा बताते हैं, "1959 में जब इंदिरा ने केरल में कम्युनिस्ट सरकार को ग़ैर संवैधानिक तरीके से गिराया तो मियां बीवी में जबरदस्त झगड़ा हुआ.
इंदर कहते हैं, उस शाम को फ़िरोज़ मुझसे मिले. उन्होंने कहा कि इससे पहले कि लोग तुम्हें बताएं, मैं तुम्हें बताता हूँ कि हमारे बीच तेज़ झगड़ा हुआ है और आज के बाद मैं कभी प्रधानमंत्री के घर पर नहीं जाऊंगा. उसके बाद वो वहां कभी नहीं गए. जब उनकी मौत हुई तब ही उनके पार्थिव शरीर को तीन मूर्ति ले जाया गया."
इस बीच फ़िरोज़ गांधी अपने भाषणों से सबका ध्यान खींच रहे थे. मूंदड़ा कांड पर उन्होंने अपने ही ससुर की सरकार पर इतना ज़बरदस्त हमला बोला कि नेहरू के बहुत करीबी, तत्कालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा.
तब ये कहा जाने लगा कि कांग्रेस में रहते हुए भी फ़िरोज़ विपक्ष के अनऑफ़िशियल नेता हैं. फ़िरोज़ के नज़दीक रहे ओंकारनाथ भार्गव याद करते हैं, "मुझे अच्छी तरह याद है फ़िरोज़ के निधन के बाद मैं संसद भवन गया था. वहाँ के सेंट्रल हाल में एक लॉबी थी जो फिरोज गांधी कार्नर कहलाता था. वहाँ फ़िरोज़ गांधी और दूसरे सांसद बैठ कर बहस की रणनीति बनाते थे.
पिता की झलक पुत्रों में
राजीव और संजय दोनों ही विज्ञान के प्रति काफी सजग रहे जिसका श्रेय पिता फ़िरोज़ को जाता है. वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई बताते हैं, 'फ़िरोज़ गांधी एक अलग किस्म के बाप थे.
किदवई के मुताबिक उन्हें बच्चों को खिलौने देने में यकीन नहीं था. अगर कोई उन्हें तोहफ़े में खिलौने दे भी देता था, तो वो कहते थे कि इन्हें तोड़ कर फिर से जोड़ना. राजीव और संजय दोनों का जो टेक्निकल बेंड ऑफ़ माइंड था, वो फ़िरोज़ गाँधी की ही देन था. संजय ने बाद में जो मारुति कार बनाने की पहल की, उसके पीछे कहीं न कहीं फ़िरोज़ गांधी की भी भूमिका थी.
नापसंदी और प्यार की बात
एक बार वरिष्ठ पत्रकार डॉम मॉरिश ने जब पूछा था की आपको किसकी मौत का सबसे ज्यादा सदमा पहुंचा था तो उनका जवाब था, मेरे पति फ़िरोज़ गाँधी की. उनके शब्द थे, PERHAPS I DIDN'T LIKE FEROZ BUT I LOVED HIM. यानी शायद मैं उन्हें पसंद नहीं करती लेकिन मैं उन्हें प्यार करती हूं.
ये शब्द उनके रिश्तों को समझने में काफी हद तक पर्याप्त हैं.
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