नई दिल्ली: Karpuri Thakur: एक नेता, जिसके समाज की आबादी पूरे राज्य में केवल 2 फीसदी है. नेता किसी जमाने में दो बार के मुख्यमंत्री रहे थे, लेकिन अब उन्हें दुनिया से विदा हुए 36 बरस हो गए. फिर भी वो वर्तमान राजनीति में प्रासंगिक है. प्रासंगिकता इतनी कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्र की मोदी सरकार ने उन्हें भारत रत्न का सम्मान देने का फैसला किया है. ये नेता हैं बिहार के दो बार मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर.
सभी दलों को कर्पूरी की जरूरत क्यों?
बिहार की सियासत में कर्पूरी ठाकुर एक ऐसे किरदार हैं, जिनकी विरासत पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की JDU और पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव की RJD दावा करती रही हैं. कर्पूरी ठाकुर हज्जाम समाज से आते हैं, जो बाहर में 2 फीसदी है. लेकिन कर्पूरी ठाकुर की बाहर में EBC यानी अति पिछड़ा वर्ग के सबसे बड़े नेता के तौर पर पहचान है. खास बात ये है कि कर्पूरी ठाकुर से बिहार का ईबीसी वर्ग आज भी कनेक्ट करता है. बिहार सरकार द्वारा जारी किए गए जातिगत सर्वे में EBC को कुल आबादी का करीब 36% बताया गया है. इसका मतलब बिहार में ईबीसी सबसे अधिक है और सभी दल इन्हें अपने पक्ष में करना चाहते हैं.
EBS में कितनी जातियां?
बिहार में हुए जातिगत सर्वे के मुताबिक, EBS यानी Extreme Backward Classes में 112 जातियां हैं. कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का फैसला मोदी सरकार का बड़ा मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है. EBS की सभी जातियों को एक ही फैसला से साधकर आगामी लोकसभा चुनाव के लिए लालू और नीतीश के लिए बड़ी चुनौती पेश कर दी है.
लालू-नीतीश के राजनीतिक गुरू
कर्पूरी ठाकुर 1970 और 1977, दो बार बिहार के सीएम बने. इमरजेंसी हटने के बाद 1977 में हुए चुनाव में लालू यादव भी कर्पूरी ठाकुर के साथ थे, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान जोसे नेता भी कर्पूरी की सदारत में ही सियासत कर रहे थे. यही कारण है कि अब वो जनता में ये मैसेज देते हैं कि कर्पूरी उनके कितने करीबी थे.
इस पार्टी में हैं कर्पूरी ठाकुर
कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनवमी ठाकुर भी सियासत में खासे सक्रिय हैं. वो जदयू में हैं और नीतीश कुमार के करीबी माने जाते हैं. इससे पहले रामनाथ लालू यादव की पहली कैबिनेट में गन्ना उद्योग मंत्री बने. नवंबर 2005 से 2010 तक नीतीश सरकार के मंत्रिमंडल में राजस्व और भूमि सुधार,कानून, सूचना और जनसंपर्क मंत्री थे. रामनाथ ठाकुर वर्तमान में जदयू से राज्यसभा सांसद हैं. हाल ही में उनका नाम जदयू अध्यक्ष पद की रेस में भी आया, लेकिन नीतीश ने खुद ही पार्टी का जिम्मा संभालने का फैसला किया.
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