नई दिल्ली: Pollution: भारत में बढ़ते प्रदूषण ने देशवासियों की मुसीबतें बढ़ा दी हैं. इससे निपटने के लिए सरकार भी तरह-तरह के उपाय खोज रही है. इस बीच अब विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO ) के वैश्विक वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य तकनीकी सलाहकार समूह के सदस्य रिचर्ड पेल्टियर का कहना है कि स्मॉग टावर और क्लाउड सीडिंग जैसे उपायों से प्रदूषण की समस्या का पूरी तरह समाधान नहीं मिल सकता है. बता दें कि प्रदूण से निपटने के लिए साल 2021 में दिल्ली में 2 स्मॉग टावर लगाए गए थे.
वायु की गुणवत्ता सुधारने के लिए करना होगा प्रयास
रिचर्ड पेल्टियर का कहना है कि भारत में वायु की गुणवत्ता सुधारने के लिए लंबे समय तक प्रयास की जरूरत है. उनके मुताबिक भारत की वायु तो काफी खराब है, लेकिन इससे निपटने के लिए वायु प्रदूषण मॉनीटर भी सीमित हैं, जिसके चलते इसमें सटीकता की कमी देखी जाती है. उन्होंने कहा कि अमेरिका ने 1960 के दशक में स्वच्छ वायु अधिनियम लागू किया था और हाल ही में देश में वायु गुणवत्ता विकसित हुई है जिसे आम तौर पर अच्छा माना जाता है. उन्होंने कहा,' इसलिए यहां तक पहुंचने में 50 या 60 साल लग गए. यह कोई तात्कालिक समस्या नहीं है. यह ऐसा कुछ नहीं है जो एक नियम या एक कानूनी फैसले से हल हो जाएगा. इसमें समय लगता है.
छोटे पैमाने पर काम करते हैं स्मॉग टॉवर
समस्या के समाधान में स्मॉग टॉवरों की भूमिका को लेकर पेल्टियर ने कहा कि ये छोटे पैमाने पर काम करते हैं, लेकिन लागत और रखरखाव चुनौतियों के कारण पूरे शहरों के लिए अव्यावहारिक हैं. उन्होंने कहा वे हवा से वायु प्रदूषण को हटाते हैं, लेकिन पर्याप्त मात्रा में नहीं. वहीं क्लाउड सीडिंग तकनीक से वायु प्रदूषण से निपटने के बारे में पेल्टियर ने कहा कि यह न ही टिकाऊ है और न ही यह निश्चित रूप से दीर्घकालिक समाधान है. बता दें कि क्लाउड सीडिंग तकनीक के तहत कृत्रिम तरीके से बारिश कराई जाती है.
वायु प्रदूषण पर रखनी होगी निगरानी
यह पूछे जाने पर कि क्या सेंसर और वायु गुणवत्ता निगरानी संस्थानों की कमी के कारण भारत में वायु प्रदूषण की समस्या की गंभीरता को कम आंका गया है, पेल्टियर ने कहा, 'मुझे नहीं लगता कि हम इतनी सटीकता से जानते हैं कि प्रदूषण कहां ज्यादा है. संभवतः पूरे भारत में पर्याप्त वायु प्रदूषण निगरानी व्यवस्था नहीं है, विशेष रूप से प्रमुख शहरी क्षेत्रों के आसपास जो हमें यह विश्वास दिलाते हैं कि हम 100 प्रतिशत आश्वस्त हैं कि हमारा मॉडल सही है.' उन्होंने कहा, 'लेकिन मुझे लगता है कि हमें इस बात की अच्छी समझ है कि पूरे भारत में वायु प्रदूषण वास्तव में काफी खराब है, हालांकि अधिक निगरानी रखना अच्छा होगा.'
प्रदूषित जगहों पर रहती हैं इतनी प्रतिशत महिलाएं
स्वतंत्र विचारक संस्था ग्रीनपीस इंडिया के अनुसार, देश की 99 प्रतिशत से अधिक आबादी PM 2.5 पर WHO के मानकों से अधिक मानक वाली हवा में सांस लेती है. इसमें कहा गया है कि 62 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं और देश की 56 फीसदी आबादी सबसे प्रदूषित इलाकों में रहती है. पिछले अगस्त में शिकागो यूनिवर्सिटी में ऊर्जा नीति संस्थान की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि सूक्ष्म कण वायु प्रदूषण (PM2.5) भारत में औसत जीवन प्रत्याशा को औसतन 5.3 साल और दिल्ली में 11 साल तक कम कर देता है.
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