नई दिल्लीः शाहीन बाग. राजधानी दिल्ली का एक इलाका पहले सुर्खियों में आता है और फिर देश भर की जुबान पर चढ़ जाता है. क्यों? बताया जा रहा है कि वहां कुछ लोग इकट्ठा हैं. वह कर क्या रहे हैं? वह लोकतंत्र बचा रहे हैं. कैसे? एक महीने से सड़क जाम कर रखी है. इलाका बंद है, आवाजाही ठप है. बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं और बड़े नौकरी-पेशा पर नहीं पहुंच पा रहे हैं. ऐसा क्यों? क्योंकि शाहीन बाग में लोकतंत्र बचाया जा रहा है.
जी न्यू़ज का आंखों-देखा हाल
पिछले तकरीबन एक महीने से शाहीन बाग के यही हाल हैं. कथित तौर पर लोकतंत्र बचाने की इस मुहिम का तौर-तरीका देखने सोमवार को जी न्यूज के एडिटर इन चीफ सुधीर चौधरी पहुंचे थे. उनके साथ मौजूद थे न्यूज नेशन के कंसल्टिंग एडीटर दीपक चौरसिया. पत्रकार द्वय ने वहां जो देखा वह अराजकता की भीड़ से अधिक कुछ नहीं था.
आज जब मैं और @DChaurasia2312 #ShaheenBagh पहुँचे तो कश्मीर की तर्ज़ पर Go Back के नारे लगने लगे।पल भर को लगा जैसे हम किसी दूसरे देश में आ गए हैं। #370InKashmir https://t.co/XYCjCDMoPq
— Sudhir Chaudhary (@sudhirchaudhary) January 27, 2020
देश की राजधानी के बीचों-बीचों एक इलाका ऐसा बन पड़ा है जो पांच महीने पहले के उस कश्मीर की याद दिलाता है, जहां आर्टिकल 370 और 35A का वजूद जड़ जमाए हुआ था. जो भारत का अंग होकर भी भारत में नहीं था. यह शाहीन बाग उसी मानसिकता की भीड़ है जो भारत के लोकतंत्र को खंडित करने की कामना करता है.
असहिष्णुता और असहनशीलता का केंद्र
बीते कुछ सालों से कहा जा रहा है कि देश में असहिष्णुता बढ़ी है. यह बिल्कुल सही बात है. लेकिन यह देखने की जरूरत है कि यह भावना किन लोगों में और किस जगह बढ़ी है. सुधीर बताते हैं कि शाहीनबाग के प्रदर्शनकारी कहते हैं हमें वहां घुसने की इजाज़त नहीं है. शाहीन बाग में जाने के लिए क्या हमें अब अलग वीजा लेना होगा? क्या शाहीन बाग में भारत की सीमा खत्म हो जाती है? कश्मीर की तरह यहां Go Back के नारे लग रहे हैं. इतनी असहनशीलता?
#ShaheenBagh के प्रदर्शनकारी कहते हैं हमें वहाँ घुसने की इजाज़त नहीं है।शाहीन बाग़ में जाने के लिए अब अलग वीज़ा लेना होगा? क्या शाहीन बाग़ में ख़त्म हो जाती है भारत की सीमा? कश्मीर की तरह यहाँ Go Back के नारे लग रहे हैं।इतनी असहनशीलता? #370InShaheenBagh pic.twitter.com/lYTjTiJJUK
— Sudhir Chaudhary (@sudhirchaudhary) January 27, 2020
जब दोनों ही मीडिया कर्मियों ने लोगों से बात करने की कोशिश की, पास आकर सवाल-जवाब के लिए कहा तो, उधर से सीधे इनकार कर दिया गया. प्रदर्शनकारी महिलाओं ने कहा कि, आप लोगों का यहां आना अलाउ नहीं है. पत्रकार दीपक पीछे मुड़े और कहा-याद रखिएगा, इन्होंने कहा अलाउ नहीं है.
आज मैं और @DChaurasia2312 #ShaheenBagh गए।प्रदर्शनकारियों ने कहा कि हम शाहीन बाघ में ‘Allowed’नहीं हैं।रोकने के लिए पहली पंक्ति में महिलाओं को खड़ा कर दिया।पुरुष पीछे खड़े हो गए।नारेबाज़ी हुई।राजधानी में ये वो जगह है जहां पुलिस भी नहीं जा सकती।लोकतंत्र का मज़ाक़ है ये। pic.twitter.com/ZAbQg2EmXl
— Sudhir Chaudhary (@sudhirchaudhary) January 27, 2020
प्रदर्शन की आड़ में गुंडागर्दी
यह बात बिना माफी के और सीधे तौर पर लिखनी-कहनी पड़ेगी कि शाहीन बाग प्रदर्शन की आड़ में केवल गुंडागर्दी और दादागिरी का जमघट है. आप सोचिए, कि यह काम भी महिलाओं के हिस्से सौंप दिया गया है.
सुन रहे हैं कि संविधान ख़तरे में है, सुन रहे हैं कि लड़ाई प्रजातंत्र को बचाने की है! जब मैं शाहीन बाग की उसी आवाज़ को देश को दिखाने पहुँचा तो वहाँ मॉब लिंचिंग से कम कुछ नहीं मिला! #CAAProtests #ShaheenBagh pic.twitter.com/EhJxfWviTp
— Deepak Chaurasia (@DChaurasia2312) January 24, 2020
वह बस नारेबाजी करती हैं. CAA का विरोध करती हैं और कोई कुछ पूछने-बात करने जाता है तो ह्यूमन चेन बना लेती हैं. 3 दिन पहले पत्रकार दीपक चौरसिया इसी जमघट की सचाई देश के सामने लाने गए थे तो उनके साथ अभद्रता की गई थी.
क्या शाहीन बाग में 370 लगा है? मेरे और @sudhirchaudhary के साथ देखिए सबसे बड़ी कवरेज @NewsNationTV और @ZeeNews पर थोड़ी देर में! #370InShaheenBagh #DeepakChaurasia #Sudhirchaudhary pic.twitter.com/4EYgjek4HH
— Deepak Chaurasia (@DChaurasia2312) January 27, 2020
कई लोगों ने उन्होंने घेर लिया था. बोलने नहीं दिया और बात भी नहीं करने दी. लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को चोट पहुंचाई गई. इस पर तुर्रा यह कि शाहीन बाग लोकतंत्र बचाने जुटा है.
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इसके साथ ही ज़ी हिन्दुस्तान की टीम ने भी शाहीन बाग की सच्चाई हर किसी के सामने लाने की ठानी. शाहीन बाग के आस पास रहने वाले और रोजाना इस इलाके से गुजरने वाले लोगों से बातचीत करने के बाद ज़ी हिन्दुस्तान की टीम ने बगैर कैमरे के ही प्रोटेस्ट वाली जगह का मुआयना किया. ताकि हालात को बेहतर तरीके से समझा जा सके
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ज़ी हिन्दुस्तान की पत्रकार माधुरी कलाल ने वहां के पूरे हालात से रूबरू करवाया. ज़ी हिन्दुस्तान की टीम शाहीन बाग के उस प्रोटेस्ट वाली जगह पर थी, जहां से 200 मीटर के बाद वह महिलाएं बैठी थी. बिना कैमरे के वहां जाकर पता किया गया तो असल सच्चाई सामने आई कि 20% महिलाएं हैं तो 80 प्रतिशत मर्द भी हैं. यह कहना गलत है कि यह सिर्फ महिलाओं का प्रोटेस्ट है.