असहिष्णु शाहीन बाग में जान पर खेलकर वरिष्ठ पत्रकारों ने बताया सच

तकरीबन एक महीने से सुर्खियां बना शाहीन बाग जिस असल मकसद की बात कर रहा है, वहां के जमघट में ऐसा कुछ है ही नहीं. लोकतंत्र बचाने की बात कहने वाली यह भीड़ दरअसल टुकड़े-टुकड़े गैंग की बात रखने का एक मंच है. लाख छुपाने की कोशिश की बावजूद उनकी यह मंशा उभर ही आती है. सोमवार को जो नाजार दिखा वह ज्यों का त्यों सामने है.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 28, 2020, 05:05 PM IST
    • सोमवार को जी न्यूज के एडिटर इन चीफ सुधीर चौधरी पहुंचे थे शाहीन बाग
    • न्यूज नेशन के कंसल्टिंग एडीटर दीपक चौरसिया भी रहे साथ
असहिष्णु शाहीन बाग में जान पर खेलकर वरिष्ठ पत्रकारों ने बताया सच

नई दिल्लीः शाहीन बाग. राजधानी दिल्ली का एक इलाका पहले सुर्खियों में आता है और फिर देश भर की जुबान पर चढ़ जाता है. क्यों?  बताया जा रहा है कि वहां कुछ लोग इकट्ठा हैं. वह कर क्या रहे हैं? वह लोकतंत्र बचा रहे हैं. कैसे? एक महीने से सड़क जाम कर रखी है. इलाका बंद है, आवाजाही ठप है. बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं और बड़े नौकरी-पेशा पर नहीं पहुंच पा रहे हैं. ऐसा क्यों? क्योंकि शाहीन बाग में लोकतंत्र बचाया जा रहा है. 

जी न्यू़ज का आंखों-देखा हाल
पिछले तकरीबन एक महीने से शाहीन बाग के यही हाल हैं. कथित तौर पर लोकतंत्र बचाने की इस मुहिम का तौर-तरीका देखने सोमवार को जी न्यूज के एडिटर इन चीफ सुधीर चौधरी पहुंचे थे. उनके साथ मौजूद थे न्यूज नेशन के कंसल्टिंग एडीटर दीपक चौरसिया. पत्रकार द्वय ने वहां जो देखा वह अराजकता की भीड़ से अधिक कुछ नहीं था.

देश की राजधानी के बीचों-बीचों एक इलाका ऐसा बन पड़ा है जो पांच महीने पहले के उस कश्मीर की याद दिलाता है, जहां आर्टिकल 370 और 35A का वजूद जड़ जमाए हुआ था. जो भारत का अंग होकर भी भारत में नहीं था. यह शाहीन बाग उसी मानसिकता की भीड़ है जो भारत के लोकतंत्र को खंडित करने की कामना करता है. 

असहिष्णुता और असहनशीलता का केंद्र
बीते कुछ सालों से कहा जा रहा है कि देश में असहिष्णुता बढ़ी है. यह बिल्कुल सही बात है. लेकिन यह देखने की जरूरत है कि यह भावना किन लोगों में और किस जगह बढ़ी है. सुधीर बताते हैं कि शाहीनबाग के प्रदर्शनकारी कहते हैं हमें वहां घुसने की इजाज़त नहीं है. शाहीन बाग में जाने के लिए क्या हमें अब अलग वीजा लेना होगा? क्या शाहीन बाग में भारत की सीमा खत्म हो जाती है? कश्मीर की तरह यहां Go Back के नारे लग रहे हैं. इतनी असहनशीलता?

जब दोनों ही मीडिया कर्मियों ने लोगों से बात करने की कोशिश की, पास आकर सवाल-जवाब के लिए कहा तो, उधर से सीधे इनकार कर दिया गया. प्रदर्शनकारी महिलाओं ने कहा कि, आप लोगों का यहां आना अलाउ नहीं है. पत्रकार दीपक पीछे मुड़े और कहा-याद रखिएगा, इन्होंने कहा अलाउ नहीं है. 

प्रदर्शन की आड़ में गुंडागर्दी
यह बात बिना माफी के और सीधे तौर पर लिखनी-कहनी पड़ेगी कि शाहीन बाग प्रदर्शन की आड़ में केवल गुंडागर्दी और दादागिरी का जमघट है. आप सोचिए, कि यह काम भी महिलाओं के हिस्से सौंप दिया गया है.

वह बस नारेबाजी करती हैं. CAA का विरोध करती हैं और कोई कुछ पूछने-बात करने जाता है तो ह्यूमन चेन बना लेती हैं. 3 दिन पहले पत्रकार दीपक चौरसिया इसी जमघट की सचाई देश के सामने लाने गए थे तो उनके साथ अभद्रता की गई थी.

कई लोगों ने उन्होंने घेर लिया था. बोलने नहीं दिया और बात भी नहीं करने दी. लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को चोट पहुंचाई गई. इस पर तुर्रा यह कि शाहीन बाग लोकतंत्र बचाने जुटा है. 

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इसके साथ ही ज़ी हिन्दुस्तान की टीम ने भी शाहीन बाग की सच्चाई हर किसी के सामने लाने की ठानी. शाहीन बाग के आस पास रहने वाले और रोजाना इस इलाके से गुजरने वाले लोगों से बातचीत करने के बाद ज़ी हिन्दुस्तान की टीम ने बगैर कैमरे के ही प्रोटेस्ट वाली जगह का मुआयना किया. ताकि हालात को बेहतर तरीके से समझा जा सके

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ज़ी हिन्दुस्तान की पत्रकार माधुरी कलाल ने वहां के पूरे हालात से रूबरू करवाया. ज़ी हिन्दुस्तान की टीम शाहीन बाग के उस प्रोटेस्ट वाली जगह पर थी, जहां से 200 मीटर के बाद वह महिलाएं बैठी थी. बिना कैमरे के वहां जाकर पता किया गया तो असल सच्चाई सामने आई कि 20% महिलाएं हैं तो 80 प्रतिशत मर्द भी हैं. यह कहना गलत है कि यह सिर्फ महिलाओं का प्रोटेस्ट है.

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