नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने सोमवार को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सड़क पर रहने वाले बच्चों के लिए पुनर्वास नीति तैयार करने संबंधी सुझाव लागू करने का सोमवार को निर्देश दिया. साथ ही कहा कि ये सुझाव केवल कागजों पर नहीं रहने चाहिए. न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने कहा कि अभी तक सड़क पर रहने वाले केवल 17,914 बच्चों की जानकारी उपलब्ध कराई गई है, जबकि उनकी अनुमानित संख्या 15-20 लाख है.
'सुनिश्चित किया जाना चाहिए बच्चों का पुनर्वास'
शीर्ष अदालत ने दोहराया कि संबंधित प्राधिकारियों को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के वेब पोर्टल पर आवश्यक सामग्री को बिना किसी चूक के अद्यतन करना होगा. न्यायालय ने कहा कि बच्चों को बचाना एक अस्थायी काम नहीं होना चाहिए और उनका पुनर्वास सुनिश्चित किया जाना चाहिए.
'सुझावों को लागू करें सरकारें'
पीठ ने कहा, ‘हमने सुझावों की ध्यान से समीक्षा की है. ये सुझाव समग्र हैं और इनमें हरसंभव परिस्थिति को ध्यान में रखा गया है. राज्य सरकारें इनमें कुछ सुधारों का सुझाव दे सकती हैं. इसके बाद राज्य सरकारें/केंद्र शासित प्रदेश एनसीपीसीआर के इन सुझावों को लागू करें.’
'महीने में एक बार की जाए समीक्षा'
उसने कहा, ‘एनसीपीसीआर से सुझावों के क्रियान्वयन की निगरानी के लिए समय-समय पर समीक्षा करने का निर्देश दिया जाता है. बेहतर होगा कि यदि यह समीक्षा महीने में एक बार की जाए.’ शीर्ष अदालत ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को एनसीपीसीआर को पूरा सहयोग देने का निर्देश दिया.
चार सप्ताह बाद होगी अगली सुनवाई
एनसीपीसीआर की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने आरोप लगाया कि राज्यों के अधिकारी जांच एवं निरीक्षण में सहयोग नहीं कर रहे हैं. इस मामले में एक पक्ष की ओर से वकील टी के नायक पेश हुए. मामले में आगे की सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी.
शीर्ष अदालत ने पहले निर्देश दिया था कि बाल तस्करी के पीड़ित बच्चों के बयान या तो बच्चा जिस जिले में रह रहा है, उसके जिला कानूनी सेवा प्राधिकारण के कार्यालय या जिला अदालत परिसर में वीडियो कांफ्रेंस के जरिए दर्ज किए जाएं.
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