'मैं उस प्रभु का सेवक हूं, जिसे लोग मनुष्य कहते हैं' पढ़िए स्वामी विवेकानंद के कुछ महान विचार

भगवा पहने विवेकानंद ने सिखाया-आधुनिकता आपके कपड़े नहीं बल्कि विचार से आते हैं.   

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jul 4, 2021, 10:58 AM IST
  • आज ही के दिन विवेकानंद ने छोड़ दी थी दुनिया
  • उनके विचार आज भी लोगों के लिए प्रेरणा
 'मैं उस प्रभु का सेवक हूं, जिसे लोग मनुष्य कहते हैं' पढ़िए स्वामी विवेकानंद के कुछ महान विचार

Swami Vivekananda Death Anniversary: एक मान्यता जो दुनिया के कई लोगों में घर कर गई है वो ये है कि आपके कपड़े, शरीर का रंग और बातचीत के लिए कोई खास भाषा ही आपके मॉडर्न होने और पढ़े लिखे होने का सबूत है. कई बार आपकी पोशाक, फटाफट अंग्रेजी ही आपकी महानता का परिचायक बन जाती है. लेकिन भगवा पहने एक शख्स ने दशकों पहले अमेरिका में दुनिया को एक नया पाठ पढ़ाया था. उसने सिखाया था कि आधुनिकता आपके कपड़े नहीं बल्कि विचार से आते हैं. दरअसल, हम बात कर रहे हैं स्वामी विवेकानंद की, जिन्होंने आज ही के दिन यानी की 4 जुलाई 1902 को देह छोड़ दी थी. विवेकानंद भले ही महज 39 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह गए हों, लेकिन उनके विचार आज भी लोगों के लिए प्रेरणा हैं. उनकी पुण्यतिथि पर आइए जानते हैं उनके कुछ प्रेरक विचार...

इंसान की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म
विवेकानंद के महान विचारों में एक बात जो सबसे मशहूर है वो ये कि उन्होंने कहा था कि, ' मैं उस प्रभु का सेवक हूं, जिसे अज्ञानी लोग मनुष्य कहते हैं' विवेकानंद ने मानवता को सबसे बड़ा धर्म बताया था. उन्होंने कहा था कि मानवता ही धर्म का आधार है. इंसानों की सेवा से बड़ा दूसरा कोई अच्छा कर्म नहीं हो सकता है.

जिस धर्म में कट्टरता वो बिखर जाएगा
हिंदू धर्म की तारीफ करते हुए विवेकानंद ने एक बार कहा था इतिहास उठाकर देख लें जिस दुनिया की कई बड़ी सभ्यताएं, जिनका प्रभाव पूरी दुनिया पर था आज वो अपना वजूद खो रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता था कि हमसे बेहतर कोई और दूसरी सभ्यता नहीं है. उनकी इस कट्टरता ने उन्हें इस कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है.

लेकिन वहीं, आप सनातन सभ्यता को देखेंगे तो पाएंगे वो शाश्वत (हमेशा रहनेवाला) इसीलिए है क्योंकि हिंदू धर्म में बहिष्कार जैसा शब्द नहीं है. बल्कि समाहित करने की कला रही है. हमने दुनिया के हर धर्मों, हर मान्यताओं को अपने दिल में जगह दी है. यही कारण है कि हम आगे बढ़ रहे हैं और हमेशा प्रासंगिक बने हुए हैं.

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लक्ष्य जबतक न मिले रुको नहीं
विवेकानंद ने युवाओं को खास संदेश देते हुए कहा था उठो, जागो और तब तक न रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए. उन्होंने कहा था कि आओ हम नाम, यश और दूसरों पर शासन करने की इच्छा से रहित होकर काम करें. काम, क्रोध एंव लोभ. इस त्रिविध बंधन से हम मुक्त हो जाएं और फिर सत्य हमारे साथ रहेगा. 

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