विद्या सागर सोनकर: भाजपा के बूथ अध्यक्ष रहे, अब प्रदेश अध्यक्ष की रेस में सबसे आगे

सूत्रों के मुताबिक, यूपी बीजेपी को 5 सितंबर तक नया प्रदेश अध्यक्ष मिल जाएगा. अब नामों को लेकर तरह तरह के कयास लगाये जाने लगे हैं. 

Written by - Shivam Pratap | Last Updated : Aug 23, 2022, 12:58 PM IST
  • नया प्रदेश अध्यक्ष दलित या ब्राह्मण में से कोई हो सकता है
  • रेस में विद्या सागर सोनकर का नाम सबसे आगे है
विद्या सागर सोनकर: भाजपा के बूथ अध्यक्ष रहे, अब प्रदेश अध्यक्ष की रेस में सबसे आगे

लखनऊ: यूपी सरकार में केबिनेट मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह के बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष पद पर कार्यकाल पूरा होने के बाद इस्तीफे के साथ ही अब नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश शुरू हो गई है. सूत्रों के मुताबिक, यूपी बीजेपी को 5 सितंबर तक नया प्रदेश अध्यक्ष मिल जाएगा. अब नामों को लेकर तरह तरह के कयास लगाये जाने लगे हैं. 

काफी समय से माना जा रहा है कि नया प्रदेश अध्यक्ष दलित या ब्राह्मण में से कोई हो सकता है. भाजपा ने मोदी लहर में 2014 से लेकर 17, 19 और 22 में यूपी में बेहद शानदार प्रदर्शन किया है और पार्टी ऐसा ही प्रदर्शन पार्टी 2024 लोकसभा चुनाव में भी करना चाहेगी. ऐसे में पार्टी प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव लोकसभा इलेक्शन को ध्यान में रखकर कर सकती है क्योंकि इसमें बहुत ज्यादा वक्त नहीं बचा है.

इतने नेता रेस में
फिलहाल की बात करें तो इस रेस में विद्या सागर सोनकर का नाम सबसे आगे है. इसके साथ-साथ केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा, संजीव बालियान, मंत्री धर्मपाल सिंह और ब्राह्मण चेहरे सुब्रत पाठक, हरीश द्विवेदी, दिनेश उपाध्याय, गोविंद नारायण शुक्ला, ब्रज बहादुर शर्मा और पूर्व डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा का नाम लिस्ट में शामिल है. 

कैसे बन रहे राजनीतिक समीकरण
बीते दिनों पार्टी ने संगठन मंत्री धर्मपाल को बना दिया है को पिछड़ा वर्ग से आते हैं, इसलिए अधिक संभावना यही है कि पार्टी अब दलित कार्ड ही खेलेगी और यदि रणनीति पारंपरिक रही तो अध्यक्ष ब्राह्मण वर्ग से होगा. सीएम योगी वैसे तो संत हैं इसलिए जाति का कोई एंगल नहीं है लेकिन पार्टी को लगता है कि राजपूत वर्ग को साधने के लिए सीएम योगी और राजनाथ सिंह काफी हैं, बीते 4 चुनावों में यूपी में भाजपा को राजपूतों ने लगभग शत प्रतिशत वोट किया है. सीएम राजपूत समाज से, डिप्टी सीएम पिछड़ा और ब्रह्मण वर्ग से, संगठन मंत्री भी पिछड़ा वर्ग से तो ऐसे में दौड़ में बचे दलित. 

अब सिर्फ दलित वर्ग ही ऐसा बचा है, जिसका प्रतिनिधित्व सरकार या संगठन में किसी प्रभावशाली पद पर फिलहाल नहीं दिखता है, साथ ही विधानसभा चुनाव में दलित मतदाताओं ने बसपा से छिटककर भाजपा को भरपूर वोट दिया है और यही वजह है कि भाजपा लोकसभा चुनाव में भी इस वोटबैंक को अपनी ओर आकर्षित करना चाहेगी.

यदि इसी दिशा में विचार किया जाए तो दावेदारों में कई नाम उभरकर सामने आते हैं.

विद्या सागर सोनकर
इस रेस के सबसे बड़े दावेदार प्रदेश महामंत्री व विधान परिषद सदस्य विद्यासागर सोनकर हैं. अध्यक्ष से लेकर सांसद तक का सफर तय कर चुके सोनकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि से हैं और संगठन में जिलाध्यक्ष से लेकर अनुसूचित जाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष तक के पद पर रह चुके हैं और वर्तमान में भाजपा के प्रदेश महामंत्री हैं. कार्यकर्ताओं के लिए परिचित-चर्चित चेहरा भी हैं. 

सोनकर ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1985 में भाजपा के बूथ अध्यक्ष पद से की, बूथ अध्यक्ष भाजपा का सबसे छोटा पद होता है और फिर धीरे-धीरे वह संगठन में प्रवेश कर 1989 में सभासद का चुनाव जीते. एक छोटी सी नगर पंचायत के अध्यक्ष नहीं बल्कि सभासद बने सोनकर 1996 में सैदपुर से भाजपा सांसद बने और 2000 में भाजपा जिलाध्यक्ष भी चुने गए. भाजपा के प्रदेश महामंत्री विद्यासागर सोनकर अभी विधान परिषद सदस्य भी हैं. वह अनुसूचित मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं.

2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले लोगों तक पहुंचने के लिए जो छह यात्राएं निकाली गई थीं, उसकी जिम्मेदारी विद्यासागर सोनकर को सौंपी गई थी. इन छह यात्राओं के प्रभारी के तौर पर विद्यासागर सोनकर को नियुक्त किया गया था जो बेहद सफल रही थीं.

लक्ष्मण आचार्य और रामशंकर कठेरिया
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के दूसरे बड़े दावेदार प्रदेश उपाध्यक्ष व एमएलसी लक्ष्मण आचार्य भी हैं, वह अनुसूचित जनजाति से संबंध रखते हैं और संगठन में जमीनी कार्यकर्ता हैं. इसी तरह पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव व केंद्रीय मंत्री रह चुके इटावा सांसद डा. रामशंकर कठेरिया के नाम की भी चर्चा है, वह भी संघ के प्रचारक रहे हैं और एक संघर्षशील कार्यकर्ता की छवि है.

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