आखिर इलाज क्या है चीन का?

न केवल भारत के लिये बल्कि चीन दुनिया के लिये भी अक्सर धोखेबाज साबित होता रहा है जो कोरोना वायरस दुनिया में फैला कर दुनिया के देशों को नकली पीपीई किट्स और मास्क भेजता रहा है. इस चीन का आखिर इलाज क्या है. अब धोखा दे कर लद्दाख की धरती का रंग लाल करने वाले शठ चीन के लिये इस सवाल का जवाब है भारत के पास..      

Written by - Parijat Tripathi | Last Updated : Jun 16, 2020, 07:14 PM IST
    • चीन को उसकी शैली में ही जवाब देना होगा
    • ताकत की भाषा समझता है चीन
    • भारत को आक्रामक होना होगा
    • रक्षामंत्री कर रहे हैं उच्चस्तरीय बैठक
    • बीजिंग के इशारे पर हो रही हैं सैन्य गतिविधियां
    • 41 वर्षों से नहीं लड़ी है चीन ने कोई जंग
आखिर इलाज क्या है चीन का?

नई दिल्ली. चीन की बात करते समय सबसे पहले हमें ये बात ध्यान में रखनी है कि चीन ड्रैगन नहीं है, कनखजूरा है. हज़ार पैरों वाला ज़मीन पर रेंगने वाला कनखजूरा नामक जहरीला कीड़ा अपने को ड्रैगन माने बैठा है और दुनिया में भी यही डींग हांकता है. लेकिन ये कनखजूरा बहुत डरपोक है जो पिटने लगता है तो भागने लगता है. बस यही इसका इलाज है. 

 

ताकत की भाषा समझता है चीन 

अब तक जो हिसाब-किताब चीन का समझ में आया है उससे यही साफ़ होता है कि चीन ताकत की भाषा समझता है और ताकत के डंडे से हांका जाने वाला जानवर है चीन. इसे शत्रु कहना भी शत्रु शब्द का अपमान है. यह पृथ्वी के भौगोलिक धरातल पर पशुरूप में पसरा हुआ वह राष्ट्र है जो आज भी इस आधुनिक युग में अपनी पशुता से मुक्त नहीं हो पाया. और ये बात सब जानते हैं कि पशुओं को डंडे से हांका जाता है. लेकिन जो घरेलू पशु न हो ऐसे हिंसक पशु को फिर हिंसा से ही शांत किया जाता है.   

6 जून की वार्ता में बनी समझ का उल्लंघन किया 

अप्रेल में जो चीनी सेना आगे आ गई थी उस पर पांच किलोमीटर पीछे उसे वापस जाना था. हाल में 6 जून को हुई सैन्य-अधिकारी स्तर की बातचीत में ये समझ दोनों देशों में बन भी गई थी. किन्तु उसके बाद  15 जून को रॉड लेकर भारतीय सेना के कमांडिंग अफसर पर हमला किया. चीनी सैनिक रॉड्स लेकर आये थे और हमारे एक कर्नल और दो सैनिक इस 'झड़प' में मारे गये.  

 

भारत को आक्रामक होना होगा  

सीमा पर टैक्टिकल कमांडर को आजादी मिलनी चाहिए कि इधर जब तक बात चल रही है और जब तक आप को दिल्ली से कोई संकेत प्राप्त नहीं होता, तब तक आप जो ठीक समझें वो करें. भारत को खुद आगे बढ़ कर आक्रमण करना पड़ सकता है. आज की तारीख में हालत ये है कि चीन युद्ध नहीं लड़ सकता इसलिए क्यों न भारत आक्रामक रुख अपनाएं. सीधी सी बात है भारत को आक्रामक होना होगा और इसके लिए सबसे सही समय यही है.

कड़ा रुख अपनाना होगा

अब तक कड़ा रुख अख्तियार किया नहीं है भारत ने. मिलिट्री लेवल पर कड़ा रुख अपनाना होगा. और सबसे जरूरी कदम ये है कि फिलहाल डिप्लोमैटिक लेवल पर बातचीत बंद करनी होगी और चीन को साफ़ तौर पर कहना होगा कि जब तक सीमा पर इस तरह की दोगली हरकतें बंद नहीं होंगी, चीन से कोई बात नहीं होगी. चीन को उसी की भाषा में समझाना होगा ताकि उसे पता चल सके कि छेड़ोगे तो छोड़ेंगे नहीं. चीन के शातिर चेहरे को जवाब देते हुए भारत को टिट फॉर टैट करना होगा. भारत को भी शातिर होना होगा. बातचीत को चलने दिया जाए लेकिन सीमा पर डटे सैनिक को किसी तरह का समझौता नहीं करना चाहिए.

 

कल चीन फिर वापस आ जाएगा 

ये चीन की रणनीति है कि वह बात करता और बदतमीजी भी करता है. आज अगर चीनी सैनिक पीछे हट जाएंगे तो कल फिर वापस आ जाएंगे. चीन अभी इसलिए अंदर आया है क्योंकि भारत की सेना ने चीन के दांत अब तक नहीं तोड़े हैं. जिस दिन भारत चीनी सेना पर पलटवार करना शुरू कर देगी तो  उसके बाद चीन ऐसी हिमाकत नहीं करेगा. अब भारत को भी उनकी सीमा पर घुसना पड़ेगा. भारत की सेना की शक्ति आमने-सामने युद्ध के मैदान पर देखी जाए तो चीन की सेना से कहीं ज्यादा है.  फौजियों के मामले में PLA कुछ साल पहले मसाज पार्लर, सलून्स, गैंबलिंग सेंटर्स रन करती देखी गई थी. ये आरामखोर लोग भारत की जांबाज़ सेना से क्या मुकाबला करेंगे?

रक्षामंत्री कर रहे हैं उच्चस्तरीय बैठक 

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह उच्च स्तरीय मीटिंग कर रहे हैं. आर्मी चीफ नरवणे उनसे मिलने पहुंचे हैं.  आज कुछ समय बाद इस संबंध में एक प्रेस वार्ता भी हो सकती है. लगातार इस बात पर मंत्रणा हो रही है कि चीन ने ये हिमाकत की तो आखिर की कैसे और भारत का क्या रुख होना चाहिये. इस बैठक के बाद ही किसी नतीजे पर पहुंचने का अनुमान लगाया जा सकता है. ये भी एक सच है कि चीन अपने सैनिकों को हुई कैजुएल्टी को छिपा रहा है.  

 

बीजिंग के इशारे पर हो रही सैन्य गतिविधियां 

चीन की सेना कुछ भी अपने मन से नहीं कर रही है. न ही उनमें भारत की सेना पर आक्रामक होने का कोई माद्दा है न उनके पास कोई कारण है. चीन की सेना जो शातिर पैंतरे दिखा रही है, उससे समझना मुश्किल नहीं कि वो हर कदम पर हर इंच पर बीजिंग के इशारे पर काम कर रही है 

1962 का दुर्भाग्यपूर्ण युद्ध युद्ध 

वर्ष 1962 का युद्ध भारत के प्रधानमंत्री नेहरू की रणनीतिक स्तर पर दुर्बलता और चीन के दोगले चरित्र का चित्र है. चीन पर नेहरू जी ने भरोसा किया जबकि उन्हें भारत के कई बड़े नेता लगातार इसके लिए रोकते रहे किन्तु उन्होंने किसी  की न सुनी और हिंदी-चीनी भाई भाई का नारा दे दिया. इसके जवाब में चीन ने भारत की पीठ पर छूरा भोंक दिया और युद्ध में पराजित भारत की बहुत सारी ज़मीन हड़प ली.

 

1967 का ऐतिहासिक युद्ध 

अगर 1962 का युद्ध भारत याद नहीं रखना चाहता तो 1967 का युद्ध चीन नहीं याद रखना चाहेगा. भारत के लिहाज से ये एक ऐतिहासिक युद्ध था जिसमें दुनिया ने भारतीय शूरवीरों की ताकत का मुजाहिरा देखा. चोला और नाथूला पास पर वर्ष 1967 में हुई 10 दिन की इस लड़ाई में दुश्मन चीन को करारी हार मिली थी. 300 से ज्यादा चीनी सैनिक धराशायी हुए और भारत के मात्र 65 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए. 

41 वर्षों से नहीं लड़ी है चीन ने कोई जंग  

1979 में वियतनाम से हारे चीन ने अब तक कोई लड़ाई नहीं लड़ी है. ज्यादातर चीनी सैनिक अपने मां-बाप की इकलौती संतान हैं. ऐसे लाड़-प्यार में पले चीनी सैनिकों में संघर्ष करने, जूझने और योद्धा होने का चरित्र न हो सकता है और न ही उनमें ये विकसित किया जा सकता है. नौकरी करने के लिए ट्रेनिंग ले कर चीनी सेना में भर्ती हुए चीनी सैनिकों से रणबांकुरे होने की आशा नहीं की जा सकती. और ये बात चीन भी जनता है. इसीलिए चीन ने ये माना है कि भारत के पास दुनिया की सबसे ताकतवर पर्वतीय युद्ध क्षमता वाली सेना है. 

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