नई दिल्ली. देश की संसद में प्रमुख महापुरुषों की प्रतिमाओं के स्थानांतरण पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि संसद भवन परिसर में महात्मा गांधी और डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर समेत कई महान नेताओं की मूर्तियों को उनके प्रमुख स्थानों से हटा कर एक अलग कोने में स्थापित कर दिया गया है. खड़गे का आरोप है कि बिना किसी परामर्श के मनमाने ढंग से इन मूर्तियों को हटाना हमारे लोकतंत्र की मूल भावना का उल्लंघन है. पूरे संसद भवन में लगभग 50 ऐसी मूर्तियां या आवक्ष प्रतिमाएं हैं.
क्या है मामला?
बता दें कि उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को संसद भवन परिसर में प्रेरणा स्थल का लोकार्पण किया. इसके अंतर्गत महापुरुषों की प्रतिमा को एक स्थान पर सम्मानपूर्वक तरीके से स्थापित किया गया है. इनमें महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय, बिरसा मुंडा, डॉ भीमराव अंबेडकर, महाराणा प्रताप, शिवाजी महाराज समेत कई महापुरुषों की प्रतिमाएं शामिल हैं.
कांग्रेस को क्यों आपत्ति?
इस मामले पर आपत्ति जताते हुए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि महात्मा गांधी और डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर समेत अन्य प्रमुख नेताओं की प्रतिमाएं विचार-विमर्श के बाद उचित स्थानों पर स्थापित की गईं थी. प्रत्येक प्रतिमा और संसद भवन परिसर में उनका स्थान महत्व रखता है. पुराने संसद भवन के ठीक सामने स्थित ध्यान मुद्रा में महात्मा गांधी की प्रतिमा भारत की लोकतांत्रिक राजनीति के लिए अत्यधिक महत्व रखती है. यह वह स्थान है, जहां सदस्य अक्सर शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक विरोध प्रदर्शन करते थे. डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर की प्रतिमा भी एक सुविधाजनक स्थान पर रखी गई थी, जो यह संदेश देती है कि बाबासाहेब सांसदों की पीढ़ियों को भारत के संविधान में निहित मूल्यों और सिद्धांतों को दृढ़ता से बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं.
खड़गे का कहना है कि संयोग से, 60 के दशक के मध्य में अपने छात्र जीवन के दौरान, मैं संसद भवन के परिसर में बाबासाहेब की प्रतिमा स्थापित करने की मांग में सबसे आगे था. इस तरह के ठोस प्रयासों के बाद अंतत: डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर की प्रतिमा स्थापित की गई. यहां बाबासाहेब की प्रतिमा पर उनके जन्म और मृत्यु की वर्षगांठ पर उन्हें श्रद्धांजलि देने वाले लोगों की निर्बाध आवाजाही में भी सुविधा थी. यह सब अब मनमाने और एकतरफा तरीके से खत्म कर दिया गया है.
खड़गे ने किया समिति का जिक्र
कांग्रेस अध्यक्ष का कहना है कि संसद भवन परिसर में राष्ट्रीय नेताओं और सांसदों के चित्रों और मूर्तियों को स्थापित करने के लिए एक समिति है, इसमें दोनों सदन के सांसद शामिल होते हैं. लेकिन 2019 के बाद से समिति का पुनर्गठन नहीं किया गया है. संबंधित हितधारकों के साथ उचित चर्चा और विचार-विमर्श के बिना किए गए ऐसे निर्णय हमारी संसद के नियमों और परंपराओं के खिलाफ हैं.
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