नई दिल्ली: ये उस समय की बात है, जब मैनपुरी की सड़कों पर ये नारे गूंज उठे थे कि 'नेता जी मारे गए, नेता जी मारे गए.' ये बात है साल 1984 की, जब किसी खबर को फैलने में भी आज से काफी ज्यादा समय लगता था. न तो सोशल मीडिया का बोलबाला था और न ही खबरें आज की तरह बड़ी तेजी से वायरल होती थीं. मुलायम एक रैली में हिस्सा लेकर और अपने एक दोस्त से मुलाकात के बाद मैनपुरी वापस लौट रहे थे, तभी उनपर ताबड़तोड़ गोलियां बरस पड़ीं.
मुलायम की गाड़ी पर हुई थी ताबड़तोड़ फायरिंग
मुलायम सिंह यादव 4 मार्च, 1984 को इटावा और मैनपुरी से रैली करके वापस लौट रहे थे. रैली के बाद वे अपने एक दोस्त से मिलने भी गए थे. जब वे अपने काफिले के साथ दोस्त के घर से निकलकर बमुश्किल 1 किलोमीटर ही चले होंगे कि उनकी गाड़ी पर बाइक सवारों ने ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दीं. मुलायम को इस बात का बिलकुल अंदाजा नहीं था कि उनकी हत्या की साजिश रची गई है.
गोली चला रहे हमलावर छोटेलाल और नेत्रपाल नेता जी की गाड़ी के सामने ही कूद पड़े और उसी जगह पर फायरिंग करने लगे, जहां पर नेता जी बैठा करते थे. ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि हमलावर छोटेलाल लंबे समय तक नेताजी के साथ रहा था और उसे इस बात का पता था कि नेता जी गाड़ी में किस सीट पर बैठते हैं. हमलावरों ने गाड़ी पर उसी जगह पर 9 गोलियां चलाईं, जहां पर नेता जी हमेशा बैठा करते थे.
जब मुलायम ने खुद लगवाए 'नेता जी मारे गए' के नारे
गाड़ी पर हुई ताबड़तोड़ फायरिंग से ड्राईवर का ध्यान भटक गया और गाड़ी लड़खड़ाकर एक सूखे नाले में जा गिरी. अबतक नेता जी समझ चुके थे कि उनकी हत्या की साजिश रची गई है. लगातार फायरिंग के बीच ही नेता जी ने एक योजना बनाई, जिससे कि सभी की जान बचाई जा सके. उन्होंने अपने समर्थकों से कहा कि वे जोर-जोर से चिल्लाएं- 'नेता जी मर गए, उन्हें गोली लग गई, नेता जी मर गए.' जब समर्थकों ने लगातार ऐसे चिल्लाना शुरू किया, तब हमलावरों को भी ऐसा लगा कि नेता जी सचमुच मर गए हैं.
मुलायम सिंह यादव को मरा हुआ समझकर हमलावरों ने गोलियां चलाना बंद कर दीं और वहां से भागने लगे, लेकिन पुलिस की गोली लगते ही हमलावर छोटेलाल की मौके पर होई मौत हो गई, जबकि नेत्रपाल को बहुत गंभीर चोटें आईं. इसके बाद मुलायम के सुरक्षाकर्मी नेताजी को एक गाड़ी में बैठाकर उन्हें कुर्रा पुलिस स्टेशन ले गए.
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