जयपुर: राजस्थान का बिजली विभाग लापरवाह है. यहां लगातार हादसे हो रहे हैं, जिसका शिकार मासूम पशु पक्षी बन रहे हैं.
मात्र आंकड़ेबाजी में उलझा रहता है बिजली विभाग
जयपुर डिस्कॉम का शिकायत तंत्र महज आंकड़े देने में ही प्रभावी दिखाई देता हैं. जमीनी स्तर पर इसके अधिकारी बिल्कुल सुस्त हैं. यहां लगातार हादसे हो रहे हैं. जिसकी शिकायत लगातार की जा रही है. लेकिन ना तो फीडर इंचार्ज और ना ही बिजली विभाग का शीर्ष तंत्र सक्रिय होता हुआ दिख रहा है.
भरतपुर में हुआ हादसा
भरतपुर जिले के कुम्हेर में धनवाड़ा गांव में राष्ट्रीय पक्षी मोर के बिजली लाइन के चिपकने की सूचना देने के बावजूद घंटों तक कोई भी कर्मचारी या अधिकारी मौके पर नहीं पहूंचा. कई शिकायतों के बाद भी लाइन की पॉवर कट नहीं की गई. जिसकी वजह से राष्ट्रीय पक्षी की तड़प तड़प कर मौत हो गई. घटना के बाद ग्रामीणों में आक्रोश हैं. लेकिन बिजली विभाग के अधिकारी खामोशी साधे हुए हैं.
इस तरह के हादसे हैं आम
प्रदेश की बिजली कंपनियों का शिकायत तंत्र बेहद लचर हैं. पॉवर कट की शिकायतों पर समय पर बिजली विभाग के अधिकारी समय पर चेतते नहीं है और ना ही हादसा होने के बाद समस्या पर ध्यान देते हैं. उनके इस लापरवाह रवैये की वजह से इंसानों के साथ साथ जानवरों के भी बिजली की चपेट में आने से संबंधित हादसों का ग्राफ निरंतर बढ़ता जा रहा हैं. हादसों में कमी लाने की विद्युत विनियामक आयोग की पहल दम तोड़ रही हैं. भरतपुर के गांव धनवाड़ा में राष्ट्रीय पक्षी मोर के ट्रांसफॉर्मर के ऊपर खुले तारों की चपेट में आने की सूचना ग्रामीणों ने बिजली विभाग के स्थानीय अधिकारियों से लेकर जयपुर में बैठे अधिकारियों पर भी दी. लेकिन समय पर कार्रवाई नहीं की गई. शिकायतकर्ता ग्रामीण नितिन ने डिस्कॉम के सभी माध्यमों पर शिकायत की लेकिन हादसे के चार घंटे तक कार्मिक वहां नहीं पहुंचे. इस मामले में जी मीडिया के संज्ञान लेने के बाद अधिकारियों का दस्ता वहां पहुंचा.
हर साल 5 हजार जानवरों की मौत
पूरे राजस्थान की हालत कुछ ऐसी ही है. प्रदेश की बिजली कंपनियों की लापरवाही के कारण हादसों में जानवरों की लगातार मौत हो रही है. मरने वाले जानवरों में बंदर, मोर, कबूतर, भैंस, गाय, कुत्तें सबसे अधिक हैं. जानवरों की मौतों का आंकड़ा सालाना आंकड़ा पांच हजार के पार पहुंच गया हैं. यही नहीं हर साल लगभग 7 हजार जानवर बिजली से संबंधित हादसों में बुरी तरह घायल भी हो जाते हैं. अधिकतर शिकायतें सरकारी आंकड़ों में दर्ज भी नहीं होती. लेकिन इन हादसों की वजह से बिजली कर्मी और आम नागरिकों की मौत और घायलों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है.