Mamata Banerjee: सियासत जिन्हें ममता दीदी कहती है
सियासत की गली में Mamata Banerjee का गुस्सा अलग ही सुर्खियों में रहता है. उनके गुस्से के शिकार हुए लोगों में बड़ी-बड़ी राजनीतिक शख्सियतें शामिल हैं. एक समय जीवन में रहे अभाव की इतनी आदी हो गईं कि उन्होंने अभाव ही ओढ़ लिया और अभाव ही पहन लिया. सफेद साड़ी और हवाई चप्पल यही उनका लिबास है. राजनीति ने उन्हें ममता दीदी बना दिया है. आज ममता बनर्जी का जन्म दिन है.
नई दिल्लीः एक समय में BR Chopra ने TV की दुनिया का सबसे प्रसिद्ध धारावाहिक महाभारत बनाया था. इस साीरियल में द्रौपदी का किरदार निभाने वाली रूपा गांगुली आज BJP नेता हैं. रूपा खुद पर फिल्माए द्रौपदी के बाल पकड़कर खींचने वाले दृश्य को अब तक का सबसे कठिन और भावुक दृश्य बताती रही हैं.
खैर, हमारा उद्देश्य महाभारत में रूपा के द्रौपदी किरदार में भाव सौंदर्य खोजना नहीं है, बल्कि हम उनके सहारे एक और बंगाली चरित्र की ओर बढ़ रहे हैं, जिसने असल जिंदगी में द्रौपदी के किरदार के इस हिस्से को जिया था.
1992 और रायटर्स बिल्डिंग
यह था साल 1992. पं. बंगाल के नदियाया जिले में एक गांव है फूलिया. यह साधारण सा गांव एक रोज तब सुर्खियों में आ गया जब एक गूंगी-बहरी लड़की के दुष्कर्म की खबरें अखबारों में आने लगी. दुष्कर्म किया था CPM कार्यकर्ता ने. इस लड़की को साथ लेकर एक महिला जज्बे के साथ रायटर्स बिल्डिंग की ओर बढ़ रही थी.
वह सचिवालय पहुंचकर राज्य के CM ज्योति बसु से मिलना चाहती थी. दुष्कर्म के इस मुद्दे पर न्याय चाहती थी. महिला ने CM से मिलने के लिए पहले से समय नहीं लिया था.
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ममता जो 'द्रौपदी' बन गईं
ऐसे में पुलिस ने उन्हें CM से नहीं मिलने दिया, बल्कि न जाने किस गुमान में बदतमीजी पर उतर आई. पुलिस पर आरोप लगा कि उसने इस महिला को धक्के देकर और बाल खींचकर रायटर्स बिल्डिंग से बाहर निकाला. लॉकअप ले जाने के लिए पुलिस की गाड़ी मे बैठी इस महिला ने एक बार फिर इस भवन की ओर देखा और जलती आंखों में कसम खाई कि जब तक सम्मान नहीं ले लूंगीं यहां कदम नहीं रखूंगीं.
न ही कभी बाल बांधूंगी. Mamata Banerjee के बाल इसलिए ठीक से बंधे नहीं रहते हैं. उन्होंने इस कसम को पूरा किया. रायटर्स बिल्डिंग वह अंदर तब ही गईं जब 18 साल बाद 20 मई 2011 को वे वहां मुख्यमंत्री बनकर पहुंचीं.
ममता का गुस्सा मशहूर है
राजनेताओं के आज के बारे में बात करने से अधिक दिलचस्प उनके बीते कल की बात रही है. बात सियासी शख्सियत की है तो किस्सों ने तो अपनी जमीन गढ़ ही ली होगी. किस्से क्या हैं, आज के दौर में पहुंचने की सीढ़ियां हैं. यह सीढ़ियां कभी Student Mamta को जय प्रकाश नारायण की कार के बोनट पर चढ़ा देती हैं.
कभी कांग्रेस से अलग कराकर नई पार्टी बनाने का जज्बा दे देती है. घटनाओं के घाट पर बैठे रहे और किस्सों में गोते लगाते जाइए. Mamata Banerjee का किस्सा उनके गुस्से से ही शुरू करते हैं.
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उनके गुस्से के शिकार भी बहुत हैं
यह फरवरी 1997 का दौर था. राजनीति के मौसम विज्ञानी कहे जाने वाले रामविलास पासवान तत्कालीन सरकार में भी मंत्री पद पर थे. रेल मंत्रालय उनके हिस्से में था. रेल बजट आया और इस बजट ने पं. बंगाल की राजनीति को गर्मा दिया. Mamata Banerjee खासतौर पर इस बजट से नाखुश थीं. उन्होंने कहा कि बजट में पश्चिम बंगाल को नजरअंदाज किया गया है.
ऐसा कहते हुए Mamata Banerjee ने अपनी शॉल उनके ऊपर फेंककर अपने इस्तीफे का ऐलान किया. एक साल पहले यही काला शॉल उनके बदन पर तब भी था, जब वह पेट्रोल की बढ़ी कीमतों को लेकर जोरदार प्रदर्शन कर रही थी. सपा नेता अमर सिंह अब नहीं रहे. ममता बनर्जी के गुस्से से जुड़ा एक वाकया वह शायद ही कभी भूले होंगे, जब संसद में ममता बनर्जी ने उनका कॉलर पकड़ लिया था.
11 दिसंबर 1998 में एक विवाद के दौरान ममता समाजवादी पार्टी के सांसद दरोगा प्रसाद सरोज का कॉलर पकड़कर बाहर खींचती हुईं लायीं, वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि वो संसद में महिला आरक्षण के विधेयक का विरोध कर रहे थे.
कांग्रेस और NDA में रहीं, मोहभंग भी हुआ
1970 में कांग्रेस की सक्रिय कार्यकर्ता 1976 में बंगाल महिला कांग्रेस की महासचिव बन गई थीं Mamata Banerjee. 1984 के चुनाव में जादवपुर सीट से सोमनाथ चटर्जी को हराकर ममता बनर्जी ने सबसे युवा सांसद बनने का इतिहास रचा. 1989 में कांग्रेस का विरोध हुआ तो उन्हें भी हार मिली. 1997 तक कांग्रेस के साथ रहीं, इस दौरान कांग्रेस के साथ उनके मतभेद-मनभेद की खबरें आती रहीं.
1 जनवरी 1998 को Mamata Banerjee ने इन खबरों पर मुहर लगा दी और कांग्रेस से अलग होकर तृणमूल कांग्रेस का गठन किया. इसके बाद NDA से गठबंधन किया, 1998 में रेल मंत्री बनीं, लेकिन NDA के साथ भी बहुत दिनों तक नहीं जमी और 2001 में Mamata Banerjee सरकार से अलग हो गईं. 2004 में चुनाव से पहले वो फिर NDA सरकार में आई और खदान एवं कोयला मंत्री रहीं. 2004 चुनाव में ममता की पार्टी की बुरी हार हुई लेकिन 2009 चुनाव में पार्टी ने अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया.
आज उम्र के 65वें पड़ाव पर हैं ममता
वह चित्रकार हैं. लेखक भी हैं, 28 किताबें लिख चुकी हैं. कभी दूध बेचा करती थीं ताकि जीवन चले. उन्होंने अपने स्वतंत्रता सेनानी पिता को दवाइयों के अभाव में मौत के मुंह में जाते देखा. जीवन के शौक वाले दिनों में उन्हें अभाव ही मिले. शायद यही वजह है कि सियासत कीगली में उनका गुस्सा अलग ही सुर्खियों में रहता है.
अभाव की इतनी आदी हो गईं कि उन्होंने अभाव ही ओढ़ लिया और अभाव ही पहन लिया. सफेद साड़ी और हवाई चप्पल यही उनका लिबास है. राजनीति ने उन्हें ममता दीदी बना दिया है. पं. बंगाल की मुख्यमंत्री के तौर पर आप ममता बनर्जी के बारे में ऐसी तमाम बातें शायद जानते हैं या नहीं भी जानते हैं.
पं. बंगाल में आगामी दिनों में चुनाव हैं. ममता का गढ़ दरक रहा है. अमित शाह इसमें सेंध लगा रहे हैं. आगे क्या होना है भविष्य है, लेकिन आज 5 जनवरी है. 1955 में जन्मीं CM Mamata Banerjee उम्र के 66वें साल में प्रवेश कर रही हैं. उन्हें शुभकामनाएं.
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