सत्येंद्र नाथ बोस, जिन्होंने Physics के गलत नियमों को किया सही

 साल के पहले ही दिन की शुरुआत इस महान वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस की जयंती से होती है. बोस ने करीब 60 साल पहले ही अपने शोध पत्रों में उन्होंने जो विवेचना की थी, उन्हीं के आधार पर LHC का प्रयोग सफल हो सका था, लिहाजा ईश्वरीय कण को उनका नाम दिया गया

Written by - Vikas Porwal | Last Updated : Jan 1, 2021, 12:20 PM IST
  • 1 जनवरी 1894 को कोलकाता में जन्में सत्येंद्र नाथ बोस
  • God Particle हिग्स बोसोन में शामिल है बोस का नाम
  • डॉ. सत्येंद्रनाथ बोस ने ‘बोस-आइंसटाइन साँख्यिकी’ की खोज की
सत्येंद्र नाथ बोस, जिन्होंने Physics के गलत नियमों को किया सही

नई दिल्लीः तकरीबन 12 साल पहले की बात है. साल 2008 में एक तरफ जहां दुनिया एक भ्रम के कारण खौफ में थी तो वहीं दूसरी ओर विज्ञान उस महाप्रयोग की शुरुआत करने जा रहा था, जो जीवन के सच की खोज से जुड़ा था. अस्तित्व से जुड़ा यह वैज्ञानिक मंथन लार्जन हाइड्रेन कोलाइडर (LHC) था.

भ्रम था कि इस प्रयोग से दुनिया नष्ट हो सकती है. चार साल तक चले इस मंथन में जो निकलकर सामने आया वह देश के लिए गौरव का क्षण था. वैज्ञानिकों को वह मिल गया था जिसकी तलाश मानव सभ्यता शुरुआत से कर रही थी. God Partical यानी ईश्वरीय कण. जब यह मिला तो इसे नाम दिया गया हिग्स बोसोन

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God Particle मे सत्येंद्र नाथ बोस
यह दो महान वैज्ञानिकों के नाम हैं. पीटर हिग्स और सत्येंद्र नाथ बोस. भारत के गौरव का प्रतीक यही दूसरा नाम सत्येंद्र नाथ बोस है. साल के पहले ही दिन की शुरुआत इस महान वैज्ञानिक की जयंती से होती है.

बोस ने करीब 60 साल पहले ही अपने शोध पत्रों में उन्होंने जो विवेचना की थी, उन्हीं के आधार पर LHC का प्रयोग सफल हो सका था, लिहाजा ईश्वरीय कण को उनका नाम दिया गया. भारत की महान वैज्ञानिक परंपरा में सत्येंद्र नाथ बोस उस कड़ी में से एक हैं जो दुनिया का मार्गदर्शन करती रही है. 

 
जीवन परिचय
सत्येन्द्रनाथ बोस का जन्म 1 जनवरी 1894 को कोलकाता में हुआ था. स्कूली शिक्षा पूरी करके सत्येन्द्रनाथ बोस ने कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया. वह अपनी सभी परीक्षाओं में सर्वाधिक अंक पाते रहे और उन्हें प्रथम स्थान मिलता रहा.

उनकी प्रतिभा देखकर कहा जाता था कि वह एक दिन पियरे साइमन, लेप्लास और आगस्टीन लुई काउथी जैसे गणितज्ञ बनेंगे. उस दौर के यह सभी महान वैज्ञानिक व गणितज्ञ गिने जाते रहे थे, दूसरी ओर भारत में बढ़ा हुआ ब्रिटिश प्रभाव चरक और सुश्रुत को भूल रहा था. ऐसे में बोस का संकल्प था कि एक दिन फिर से भारत के विज्ञान का लोहा विश्व मानेगा. ऐसा हुआ भी. 

जब उनके लेख को पत्रिकाओं ने नहीं छापा
सौ साल पहले की बात है.  पदार्थ की अवस्थाओं को लेकर बोस के मन में एक बात खटक रही थी. ठोस से द्रव और गैस के बनने के बीच में भी पदार्थ की कोई ऐसी अवस्था तो होती होगी, जिससे वह गुजरता होगा. या ऐसी अवस्था जो इन तीनों के अलावा भी हो.

इसे लेकर उन्होंने 1924 में 'प्लांक्स लॉ एण्ड लाइट क्वांटम' नाम से एक लेख लिखा. भारत की वैज्ञानिक सोच के प्रति उस समय उदासीनता का दौर था. लिहाजा बोस के इस लेख को किसी पत्रिका ने जगह नहीं दी. 

जब आइंस्टाइन हो गए प्रभावित
इसके बाद सत्येंद्र नाथ बोस ने अपने लेख को सीधे आइंस्टीन को भेज दिया. उन्होंने इसका अनुवाद जर्मन में किया और प्रकाशित करा दिया. सत्येंद्र नाथ बोस दुनिया के पटल पर आ गए. यह एक ऐसी उपलब्धि थी जिसने उस दौर के भौतिकी के सिद्धांतों को हिला दिया.

इस नए सिद्धांत से भौतिक विज्ञान को नए आयाम मिले. आइंस्टाइन ने इस पर बोस के साथ काम किया और सामने आई पदार्थ की एक और अवस्था जिसे बोस-आइंस्टीन स्टेटिस्टिक्स के नाम से जाना जाता है. 

क्वांटम मैकेनिक्स को दिया आधार
यह खोज मौजूदा क्वांटम मैकेनिक्स का आधार है. दुनियाभर के भौतिकशास्त्री आज इस बात को मानते हैं कि जितना असर बोस-आइंस्टीन स्टेटिस्टिक्स का मौजूदा भौतिक विज्ञान पर है उतना शायद ही 'हिग्स बोसोन' का भी हो पाये. साल 1926 में सत्येन्द्रनाथ बोस भारत लौटे और ढाका विश्वविद्यालय में 1950 तक काम किया. फिर शांतिनिकेतन में विश्व भारती विश्वविद्यालय के कुलपति बने. 

जब गणित में मिले 100 में से 110 अंक
बोस को लेकर एक रोचक किस्सा भी प्रचलित है. भौतिकी का छात्र गणित में तो कुशाग्र होता ही है. सत्येंद्र नाथ बोस गणित के सूत्रों के साथ खेलते रहते थे. सवाल हल करने की छोटी से लेकर जटिल विधियां उनके मनोरंजन का हिस्सा थीं. यह शायद तब की बात है जब वे इंटरमीडिएट की पढ़ाई कर रहे थे.

गणित की परीक्षा थी. बोस ने सारे सवाल हल कर दिए और कई सवालों को अलग-अलग तरीकों से हल कर दिया. परीक्षक ने कॉपी जांची तो बोस को 100 में से 110 अंक दिए. महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजम का भी ऐसा ही एक किस्सा है. वह अक्सर ही परीक्षाओं में एक प्रश्न को कई तरीके से हल किया करते थे. 

बोस और आइंस्टीन
बोस और आइंस्टीन के लिए एक तथ्य प्रचलित है. वैज्ञानिक दो ही लोग बनते हैं. एक जो पढ़ने में कमजोर होते हैं दूसरे जो उत्कृष्ट मेधावी होते हैं. आइंस्टीन स्कूली शिक्षा में कभी अव्वल नही रहे और बोस से कभी कोई छात्र आगे नहीं निकल पाया. प्रख्यात वैज्ञानिक मेघनाद साहा उनके सहपाठी रहे. कक्षा में यही दोनों प्रथम व द्वितीय आते रहे. 

बोस-आइंसटाइन सांख्यिकी बना भौतिकी का वरदान

गैस के अणुओं की गति गणित के औसत के नियम से समझी जाती है. मैक्सवेल और बोल्ट्समैन ने इसके लिए सांख्यिकी की खोज की. आधुनिक भौतिक विज्ञान में इसकी आवश्यकता कदम-कदम पर पाई जाती है, लेकिन अब इसका स्वरूप बदला हुआ है. मैक्सवेल -वोल्ट्समैन के नियम तब तक ही सही रहे जब तक वैज्ञानिकों को सिर्फ परमाणुओं की जानकरी थी.

जैसे ही वैज्ञानिकों को यह पता चला कि परमाणु के भीतर भी अनेक परमाणु-कण हैं और उनकी गतियां अनोखी हैं तब यह नियम फेल हो गया. ऐसे में डॉ. सत्येंद्रनाथ बोस ने नये नियमों की खोज की, जो आगे चलकर ‘बोस-आइंसटाइन साँख्यिकी’ के नाम से जाने गए. वैज्ञानिकों ने परमाणु-कणों का गहन अध्ययन किया और पाया कि ये मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं. इनमें से एक का नामकरण डॉ. बोस के नाम पर ‘बोसॉन’ रखा गया और दूसरे का नाम प्रसिद्ध वैज्ञानिक एनरिको फर्मी के नाम पर 'फर्मिऑन'. 

बोस जैसे वैज्ञानिक भारत को विश्वगुरु बनाते हैं
यह हमारी विडंबना है कि हम अपने गौरव को कभी नहीं पहचान पाए. साल 2012 में वैज्ञानिकों ने जब गॉड पार्टिकल को हिग्स बोसोन नाम दिया तब भारत में Google Trend कर रहा था Who iS Bose. सन 1974 में बोस के सम्मान में कलकत्ता विश्वविद्यालय ने एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया था.

तब उन्होंने कहा "यदि एक व्यक्ति अपने जीवन के अनेक वर्ष संघर्ष में व्यतीत कर देता है और अंत में उसे लगता है कि उसके कार्य को सराहा जा रहा है तो फिर वह व्यक्ति सोचता है कि अब उसे और अधिक जीने की आवश्यकता नहीं है. कुछ ही दिनों के बाद 4 फ़रवरी, 1974 को सत्येन्द्र नाथ बोस हमारे बीच नहीं रहे. लेकिन भार की महान वैज्ञानिक परंपरा दुनिया का मार्गदर्शन करती रहेगी. 

सत्येंद्र नाथ बोस को शत-शत नमन. 

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