नई दिल्ली: भारत में अमूमन ऐसा माना जाता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में असमानताएं काफी हैं. जाति व्यवस्था के नाम पर, धर्म के नाम पर यहां तक की सामाजिक और आर्थिक आधार पर असमानताएं अब भी कहीं न कहीं बरकरार हैं. यूएन की सस्टेनेबल डेवलपमेंट लक्ष्य को लेकर निकाले गए आंकड़ों में ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी क्षेत्रों में असमानताएं कम हुईं हैं. हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी कुछ काम किए जाने की आवश्यकता है, लेकिन शहरी क्षेत्रों में बस इस प्रदर्शन को यूं ही बरकरार रखना होगा.
ग्रामीण क्षेत्रों में सतत विकास लक्ष्य में और सुधार बाकी
यूएन के जारी रिपोर्ट में ग्रामीण क्षेत्रों में भारत ने सतत विकास लक्ष्य 15.6 का रखा है जो फिलहाल 13.6 पर है. भारत को 2030 तक इस रिपोर्ट में अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए आर्थिक और सामाजिक स्तर पर काम करना होगा. इसमें महती भूमिका पंचायत स्तर पर और राजनीतिक भागीदारी के हिसाब से ही सुनिश्चित कराया जा सकता है. नीति आयोग के जारी किए गए आंकड़ों में ग्रामीण क्षेत्रों में खर्च की जा रही राशि में बढ़ोत्तरी तो हुई है लेकिन अभी भी इस राशि में और खर्च किए जाने की आवश्यकता है.
इन राज्यों का ये रहा है हाल
राज्यवार स्थिति देखें तो सबसे खराब प्रदर्शन चंडीगढ़ का है जहां ग्रामीण असमानता के लिहाज से खर्च की जा रही राशि -20 फीसदी रही है यानी और घटी ही है. इसके अलावा गोवा में -9.2 तो वहीं अरूणाचल में यह -8.6 फीसदी रही है. वहीं तीन सबसे बेहतरीन राज्यों की तस्वीर देखें तो कर्नाटक में यह 29.2 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है. इसके बाद तेलांगना और आंध्रप्रदेश में यह संयुक्त रूप से 27.3 फीसदी तो वहीं बिहार में 26.3 फीसदी वृद्धि पर रहा है.
शहरी क्षेत्रों में सतत विकास लक्ष्य में अच्छी हुई वृद्धि
बात अगर शहरी क्षेत्रों में असमानता की करें तो भारत का सतत विकास लक्ष्य 11.3 था जबकि भारत ने लक्ष्य को पार भी कर लिया है और यह अब 13.4 फीसदी के हिसाब से वृद्धि कर रहा है. सबसे खराब राज्यों में चंडीगढ़, छत्तीसगढ़ और गोवा का नंबर है तो वहीं सबसे दमदार प्रदर्शन करने वाले राज्यों में हिमाचल, मेघालय और राजस्थान है. शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में असमानताएं काफी कम हुई हैं.