तकरीबन 1200 करोड़ रुपये की लागत से हैदराबाद से 70 किमी दूर तेलंगाना के यदागिरिगुट्टा कस्बे में भव्य मंदिर का निर्माण हो रहा है. यह प्राचीन लक्ष्मी नरसिम्हा स्वामी मंदिर के लिए जाना जाता है. इसे तेलंगाना सीएम के चंद्रशेखर राव बनवा रहे हैं.
भारत में हिंदू धर्म, उसकी आस्था और इसके आस्था स्थल हमेशा से विरोधियों-विपक्षियों की राजनीति का जरिया बनते रहे हैं. अयोध्या में बन रहा राम मंदिर इसका सटीक उदाहरण है, जो एक तो इतने सालों के राजनीतिक विवादों के बाद बनना शुरू हुआ है तो अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद विपक्षी दल अपनी गिद्ध आंख इस आस्था स्थल पर गड़ाए रहते हैं.
जिन्हें सिर्फ विवाद चाहिए, उन्हें आस्था से क्या ही मतलब? लेकिन, विवाद और शोर से दूर दक्षिण भारत में एक भव्य मंदिर बड़ी ही खामोशी अपना आकार लेता चल रहा है. तकरीबन 6 साल से लगातार जारी निर्माण का आलम यह रहा कि कोरोना काल में भी इस मंदिर के बनाने का काम नहीं रुका. यह लोगों की आस्था का केंद्र तो है ही, साथ ही इसे राजनीतिक समर्थन भी प्राप्त है. तेलंगाना में मुख्यमंत्री और तेलंगाना राष्ट्र समिति पार्टी के अध्यक्ष के चंद्रशेखर राव इस मंदिर का निर्माण करा रहे हैं और खामोशी का आलम यह है कि इसकी कहीं चर्चा ही नहीं होती.
तकरीबन 1200 करोड़ रुपये की लागत से हैदराबाद से 70 किमी दूर तेलंगाना के यदागिरिगुट्टा कस्बे में इस मंदिर का निर्माण हो रहा है. यह प्राचीन लक्ष्मी नरसिम्हा स्वामी मंदिर के लिए जाना जाता है. लेकिन जल्दी ही यहां बन रहे नए मंदिर के कारण इस कस्बे को भारत के धार्मिक स्थलों के नक्शे में प्रमुख स्थान मिल जाएगा. तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव का यह ड्रीम प्रोजेक्ट है और इसकी देखरेख वह खुद कर रहे हैं. इस मंदिर के निर्माण के बाद राव राजनीतिक तौर पर भी खुद को अन्य विरोधियों की तुलना में ज्यादा बड़ा हिंदू साबित करने में सफल होंगे.
आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद तिरुपति का श्री व्येंक्टेश स्वामी मंदिर आंध्र प्रदेश के हिस्से में चला गया. इसके बाद के चंद्रशेखर राव ने यदागिरिगुट्टा के मंदिर के व्यापक पैमाने पर जीर्णोद्दार की योजना बनाई. वास्तविक मंदिर यदागिरिगुट्टा की पहाड़ी में एक गुफा में स्थित था. इसके आसपास दक्कन पठार के साथ आठ अन्य पहाड़ भी हैं जिसके एक हिस्से का उपयोग इस मंदिर के निर्माण में किया गया है. संयोगवश तिरुमाला मंदिर भी सात पहाड़ों के बीच बना है.
सरकार की यहां के पहाड़ों के विकास की भी योजना है. 8 में से 2 पहाड़ियों को सरकार ने विकास के लिए लिया है. जहां पर मंदिर का निर्माण किया जाएगा. इसके अलावा यहां पर होटलों, रिजॉर्ट्स,अस्पतालों और मॉल्स का निर्माण किया जाएगा. पास के एक गांव में झील के निर्माण की भी योजना है. सरकार के खजाने से इस प्रोजेक्ट के निर्माण में 1200 करोड़ रुपये खर्च होंगे. कोरोना संकट के भयावह दौर के बावजूद मंदिर के निर्माण का काम एक दिन के लिए बी नहीं रुका है.
मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव यदागिरिगुट्टा टेंपल डेवलपमेंट अथॉरिटी के अध्यक्ष हैं. उन्होंने ऐसा सीधे तौर पर मंदिर के निर्माण कार्य पर नजर रखने के लिए किया है. साल 2016 में दशहरे के दिन इस मंदिर के निर्माण कार्य की शुरुआत हुई थी और पहला स्तंभ खड़ा किया गया था. हालांकि पास में एक अस्थाई मंदिर का निर्माण किया गया है जिससे कि मंदिर में आस्था रखने वाले लोग भगवान के दर्शन कर सकें.
इस मंदिर के निर्माण की जब शुरुआत हुई थी तब यह केवल 25 हजार वर्ग फुट का प्रोजेक्ट था, लेकिन धीरे-धीरे यह योजना चार एकड़ तक फैल चुकी है. हाइवे पर मंदिर का प्रवेश द्वार बनाया गया है. मंदिर को इस तरह बनाया गया है कि पहाड़ियों के करीब पहुंचते ही वह दूर से दिखाई देने लगेगा. मंदिर की अथॉरिटी ने पूरे प्रोजेक्ट के लिए 1900 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया है. प्राथमिक योजना में घर, सड़क, हरित क्षेत्र और व्यावसायिक भवन शामिल हैं.
योजना के मुताबिक मंदिर का निर्माण 2019 तक पूरा हो जाना था लेकिन अन्य वजहों और कोरोना संकट की वजह अबतक निर्माणकार्य पूरा नहीं हो सका है. 1500 मजदूरों को केवल मंदिर के निर्माण कार्य में लगाया गया है. जिसमें से 500 लोगों को पड़ोसी राज्यों आंध्रप्रदेश और तमिलानाडु से पत्थरों पर नक्काशी के लिए लाया गया है. जनवरी 2020 तक मंदिर का 80 प्रतिशत काम पूरा हो चुका था.
मंदिर का शुरुआती बजट 1800 करोड़ का था जिसे बाद में कम करके 1200 करोड़ रुपये किया गया. इस राशि में से मुख्य मंदिर के निर्माण में 243 करोड़ रुपये का खर्च किए जाएंगे जबकि 842 करोड़ रुपये मंदिर के आसपास टेंपल टाउन के विकास में खर्च होंगे. मंदिर में नहीं लगी है एक भी इंट और ना ही निर्माण में सीमेंट का इस्तेमाल हुआ है. मंदिर के निर्माण में कृष्णशिला यानी काले ग्रेनाइट का उपयोग हुआ है. जिसपर नक्काशी की गई है. ग्रेनाइट आंध्र प्रदेश के गुरजेपल्ली खदान से लाया गया है. के चंद्रशेखर राव ने कहा है कि वो चाहते हैं कि मंदिर की आयु एक हजार साल हो.
मंदिर के निर्माण के लिए निजाम की वास्तुशैली से प्रेरणा ली गई है. जिस तरह निजाम मोनोमेंट्स का निर्माण करते थे. काकातिया युग की वास्तुशैली का भी निर्माण में उपयोग हुआ है. 3000 हजार टन मसाले का उपयोग मंदिर के निर्माण में हुआ है. जिसे उपयोग करने के एक महीने पहले तैयार किया जाता था. ऐसा करने से बेहतर फिनिशिंग मिलती है. मंदिर में 100 खंबे हैं जिसमें याली को उकेरा गया है जो कि सिंह, हाथी और घोड़े के जैसा दिखाई देता है.