नई दिल्ली: बीते कुछ दिन पहले ब्रिटेन, जर्मनी और आयरलैंड जैसे यूरोपीय देशों के आसमानों नॉर्दर्न लाइट्स की चमक देखने को मिली. सोशल मीडिया पर हर तरफ इससे जुड़े पोस्ट और मीम्स की खूब बौछारें भी हो रही थीं. क्या आप जानते हैं कि आखिर ये नॉर्दर्न लाइट्स होती क्या हैं?
नॉर्दर्न लाइट एक भौतिक घटना है. यह तब होता है जब सौर हवाएं सामान्य के मुकाबले ज्यादा तेज होती हैं. इस दौरान सूर्य के प्रकाश से निकलने वाले चार्ज पार्टिकल्स पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते समय ऑक्सीजन और नाइट्रोजन जैसी गैसों से टकराते हैं. इन कणों को हम आसमान में पीले, हरे, नीले, लाल या नारंगी प्रकाश के रूप में देखते हैं. आमतौर पर नॉर्दर्न लाइट्स पृथ्वी से 88-500km की ऊंचाई पर होती है.
नॉर्दर्न लाइट्स का सबसे अच्छा अनुभव आप स्कैंडिनेविया के उत्तरी हिस्सों, अलास्का, उत्तरी कनाडा, उत्तरी रूस,ग्रीनलैंड और आइसलैंड में कर सकते हैं. इस देखने का बेस्ट समय शाम 6 बजे से 12 बजे के बीच होता है, हालांकि आप इसे सुबह 4 बजे से 8 बजे तक भी देख सकते हैं.
इलेक्ट्रॉन और प्रोटोन जैसे चार्ज पार्टिकल्स के पृथ्वी के ऊपरी वातावरण में गैस के कड़ों से टकराने के कारण नॉर्दर्न लाइट्स पैदा होती हैं. पृथ्वी की मैग्नेटिक फील्ड इन चार्ज पार्टिकल्स को पोल्स की ओर ढकेलते हैं, जिस कारण नॉर्दर्न लाइट्ससिर्फ उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर देखने को मिलती हैं.
इस घटना का साइंटिफिक नाम ऑरोरा बोरेलिस है. वहीं दक्षिणी गोलार्ध में इसका नाम ऑरोरा ऑस्ट्रेलिस रखा गया है. 'विजिट स्वालबार्ड'के मुताबिक नॉर्वे में कम से कम 4,580 महिलाओं या लड़कियों नाम ऑरोरा है.
नॉर्वे के साइंटिस्ट क्रिस्टियन बिर्कलैंड को नॉर्दर्न लाइट्स का जनक कहा जाता है. क्योंकि यह इस फिनॉमिना के बारे में बताने वाले पहले व्यक्ति थे. उन्होंने साल 1900 के आसपास इस घटना का वर्णन शुरू किया था. बिर्कलैंड को 7 बार नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया, लेकिन वह इसे कभी भी नहीं जीत पाए.