नई दिल्लीः वह आज 78 साल की हैं. बुजुर्ग हो चली हैं. इस उम्र में भी उनके पास एक पहचान है कि वह जानी-मानी अर्थशास्त्री रही हैं, एक बड़ी यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर भी और एक शहर की मेयर भी. पहचान के इतने बड़े विशेषणों के बाद भी उनके हिस्से एक मलाल है. मलाल इस बात का कि 18 अगस्त 1945 के बाद से उनके पिता कहां चले गए.
वह पिता जिनकी केवल धुंधली सी याद ही उनके जेहन में है. वह उनकी महानता के बारे में पत्र-पत्रिकाओं में खूब पढ़ चुकी हैं, लेकिन उन्हें यह एक बात बहुत सालती है कि आखिर कब तक उनके पिता के नाम कब तक रहस्य दर्ज रहेगा. यह बेटी अनिता बोस फाफ हैं जो अपने पिता सुभाष चंद्र बोस की अस्थियों की DNA जांच की मांग कई बार कर चुकी हैं.
भारत सरकार मना रही है पराक्रम दिवस
भारत सरकार इस बार नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती को पराक्रम दिवस के तौर पर मना रही है. इसके लिए देशभर में कई तरह के कार्यक्रम के आयोजनों की तैयारी है. इन सबके बीच अनिता बोस फाफ की मांग और नेताजी की मौत का रहस्य एक बार फिर से सिर उठा लेता है.
दरअसल यह सिर्फ बोस की बेटी की हसरत ही नहीं है, बल्कि यह उस आम भारतीय की दबी इच्छा भी है, जो असल में एक देशभक्त की देशभक्ति का सम्मान करना चाहता है और उनके जन्म-मृत्यु को लेकर किसी तरह षड्यंत्र और रहस्य में नहीं पड़ना चाहता है. इसलिए इस तरह की मांग समय-समय पर उठती रही है.
सरकार की जारी की फाइलों में कोई जवाब नहीं
इसी तरह की एक मांग जब 2016 में सवाल बनकर उभरी तब तत्कालीन गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजु ने कहा, भारत सरकार अपने पास मौजूद करीब सभी फाइलों को गैर वर्गीकृत कर जारी कर चुकी है, जो फाइलें भारत सरकार ने अब तक जारी की हैं, वो सभी राष्ट्रीय अभिलेखागार में मौजूद हैं.
किरण रिजिजू ने यह जवाब तो दे दिया कि लेकिन असल बात यह है कि जो फाइलें सरकार ने जारी की थीं उनमें कोई ऐसी सूचना नहीं है, जो ये बताती हो कि सुभाष के निधन को लेकर 18 अगस्त 1945 के बाद कोई रहस्य पैदा हुआ हो या इस बारे में नई जानकारी मिली हो.
ऐसे में ये सवाल अब भी अपना उत्तर खोज रहा है कि हवाई हादसे में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का निधन हो गया था या वो इसके बाद भी जीवित थे.
क्या बोस ने नेहरू को कोई पत्र लिखा था ?
जब 05 साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेताजी से संबंधित फाइलों को सार्वजनिक किया तो उससे पहले वाकई देश में सनसनी और कौतुहल की स्थिति थी, हर किसी को लग रहा था कि इन फाइलों में जरूर कुछ ऐसा होगा, जिससे सुभाष को लेकर कोई नई बात सामने आएगी, जो बताएगी कि वाकई 18 अगस्त 1945 के बाद उनका हुआ क्या था, वो क्या जीवित थे, वो उसके बाद कहां थे, क्या कभी उन्होंने नेहरू सरकार को कोई पत्र लिखा था.
बहुत से सवाल थे लेकिन फाइलों में जो सामने आया, वो यही था कि हवाई हादसे के बाद उनके कहीं जिंदा होने का कोई प्रमाण नहीं है.
इस किताब में छिपा है रहस्य का सच !
सुभाष चंद्र बोस के जीवन के साथ-साथ उनके निधन पर बने रहस्य को लेकर भी कई किताबें लिखी गईं हैं. ऐसी ही एक किताब है सुभाष बोस की अज्ञात यात्रा. इस किताब को शब्दों में पिरोया है लेखक संजय श्रीवास्तव ने, जिन्होंने इस रहस्य से पर्दा उठाने के लिए किताब में एक दिलचस्प पहलू पर विस्तार से चर्चा की है.
वह पहलू है नेताजी की अस्थियों का DNA टेस्ट. दरअसल किताब कहती है कि जापान के रेनकोजी मंदिर में रखी नेताजी की अस्थियां वाकई वो कड़ी हैं, जो जो नेताजी के निधन संबंधी सारे रहस्यों पर दूध का दूध और पानी का पानी कर सकती हैं. सारी कवायदें असफल रहने के बाद नेताजी की सच्चाई जानने का अब केवल यही एक रास्ता बचता है.
रहस्य जानने को बने तीन आयोग, नतीजा शून्य
सुभाष चंद्र बोस के निधन से जुड़े रहस्य की जांच के लिए तीन आयोग बने. दो आयोगों यानी शाहनवाज खान और जस्टिस जीडी खोसला आयोग ने कहा कि नेताजी का निधन तायहोकु में हवाई हादसे में हो गया. लेकिन 90 के दशक के आखिर में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा गठित जस्टिस मनोज कुमार मुखर्जी आयोग ने कहा, उनका निधन हवाई हादसे में नहीं हुआ था.
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सुभाष के भाई नहीं मानते हादसे में निधन की बात
50 के दशक में बने पहले जांच आयोग के सदस्य रहे सुभाष के बड़े भाई सुरेश चंद्र बोस ने बाद में खुद को आयोग की जांच रिपोर्ट से अलग कर अपनी असहमति रिपोर्ट तैयार की, जिसे उन्होंने अक्टूबर 1956 में जारी किया. इस रिपोर्ट में उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि सुभाष किसी हवाई हादसे के शिकार नहीं हुए बल्कि जिंदा बच गए. जापान के उच्च सैन्यअधिकारियों ने खुद उन्हें सुरक्षित जापान से निकालकर सोवियत संघ की सीमा तक पहुंचना सुनिश्चित किया.
टोकियो के पास रैंकोजी मंदिर में हैं अस्थियां
सुभाष के बारे में जानने के लिए सबसे बड़ा प्रमाण टोकियो के पास बने रैंकोजी मंदिर में ही मिल सकता है. यहां पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अस्थियां 18 सितंबर 1945 से रखी हैं. ये अस्थियां वहां नेताजी के अंतिम संस्कार के लिए ले जाई गईं थीं. वहां नेताजी के अंतिम संस्कार की रस्म तो निभाई गई लेकिन अस्थियां संजोकर रख ली गईं.
रैंकोजी टोकियो के बाहर बना पुराना छोटा सा मंदिर है. मंदिर 1594 का बना हुआ है. जब अस्थियां इस मंदिर में रखी गईं तब यहां के पुजारी मोचिजुकी थे. अब उनके बेटे वहां के पुजारी हैं. इसी मंदिर में रखी अस्थियां अब सुभाष चंद्र बोस के गुमशुदगी या निधन के जुड़े सारे रहस्य की अंतिम कड़ी है. सुभाष चंद्र बोस की बेटी अनिता बोस फाफ भी लंबे समय से अस्थियों के DNA जांच की मांग करती रही हैं.
तीसरे मुखर्जी आयोग ने अस्थियों की बात को नकारा
बोस की बेटी अनिता बोस ने यही माना कि उनके पिता की मौत 18 अगस्त 1945 को उसी हादसे में हुई थी. उन्होंने यही मांग की कि टोकियो के रेनकोजी मंदिर में रखी बोस की अस्थियों का DNA टेस्ट कराया जाना चाहिए ताकि उन्हें लेकर जो रहस्य बरकरार हैं वे हमेशा के लिए खत्म हो जाए. पिछले कुछ सालों से वह लगातार ये मांग कर रही हैं.
अनिता अब 78 साल की हो चुकी हैं. नेताजी की पत्नी एमिली शेंकल का 1996 में 85 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. अनिता जर्मनी में रहती हैं. उनका कहना है कि उनके पिता हिंदू धर्म में विश्वास रखते थे, इसलिए सनातन की मान्यता के अनुसार उनकी अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करना चाहिए. हालांकि नेताजी के निधन की जांच करने के लिए बने तीसरे मुखर्जी जांच आयोग ने अपने निष्कर्ष में साफ कहा था कि रेनकोजी मंदिर में रखी अस्थियां सुभाष चंद्र बोस की नहीं हैं.
ये जांच होना इसलिए भी जरूरी
- अगर ये सुभाष बोस की हैं तो मतलब साफ है कि वो हवाई हादसे में दिवंगत हो गए थे. ऐसे में इन अस्थियों को ससम्मान भारत लाकर उसे यहां स्थापित करना चाहिए और एक यादगार स्मारक बनाना चाहिए.
- अगर डीएनए जांच ये बताती है कि ये अस्थियां नेताजी की नहीं हैं तो फिर लंबे समय से जारी ये बातें सत्य साबित होंगी कि जापानियों ने हवाई हादसे की बात करके केवल सुभाष को वहां से निकाला था. ऐसे में फिर सुभाष के पूरे प्रकरण पर नए सिरे से जांच की जरूरत होगी.
क्या 125वीं जयंती पर खत्म होगा रहस्य का सिलसिला
सुभाष की अस्थियों की जांच करने में शायद ही कोई बाधा हो, सरकार ने जिस तरह उनकी तमाम फाइलों को सार्वजनिक किया, उसी तरह उसे अब ये काम भी करना चाहिए. इससे नेताजी के परिवार को भी शायद कोई एतराज हो. अगर रैंकोजी मंदिर में रखीं नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अस्थियों की जांच कराई जाए तो देश उसका स्वागत ही करेगा.
अब जबकि देश वर्ष 2021 को सुभाष के 125वें जन्मशती वर्ष के तौर पर मनाने जा रहा है तो ऐसे में देश उम्मीद कर रहा है कि नेताजी को लेकर कोई अच्छी खबर इस साल जरूर मिले.
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