मंदिर मुद्दाः जिसे महंत दिग्विजय नाथ ने बनाया, अवैद्यनाथ ने आगे बढ़ाया, अब परिणाम आया

राम मंदिर के मामले को मुद्दा बनाकर उसे जारी रखना, फिर आंदोलन बनाना और इसमें लगातार धार देना. यह तीनों ही काम उत्तर प्रदेश के जिले गोरखपुर ने तीन पीढ़ियों तक किया है. गोरक्षपीठ के मठाधीश रहे महंत दिग्विजय नाथ से शुरू होकर महंत अवैद्यनाथ से होते हुए आज सीएम बने महंत योगी आदित्यनाथ के हाथों तक मंदिर मुद्दे की कमान पहुंची. आज की पीढ़ी सीएम योगी के रुख-रंग से तो वाकिफ है ही. इस आंदोलन में बीती दो पीढ़ी की भूमिका भी जाननी चाहिए.

Last Updated : Nov 10, 2019, 07:35 AM IST
    • महंत दिग्विजय नाथ 1935 से 1969 तक गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर रहे.
    • 21 जुलाई 1984 को अयोध्या के वाल्मीकि भवन में महंत अवेद्यनाथ को श्रीराम जन्म भूमि मुख्य आंदोलन का अध्यक्ष चुना गया
मंदिर मुद्दाः जिसे महंत दिग्विजय नाथ ने बनाया, अवैद्यनाथ ने आगे बढ़ाया, अब परिणाम आया

नई दिल्लीः अयोध्या मामले में अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है. कोर्ट ने रामलला विराजमान के पक्ष में फैसला सुनाया है, वहीं मुस्लिम पक्ष को जमीन दिए जाने की बात कही है. इस फैसले के बाद उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने एक ब्लॉग लिखा. इसके जरिये उन्होंने अपने गुरु अवैद्यनाथ और गोरक्षपीठ से जुड़े महंतों को याद किया. गोरखपुर का खासतौर पर गोरखनाथ मंदिर का अयोध्या मामले से खास नाता रहा है. इतिहास के पन्ने पलटें तो पीठ की तीन पीढ़ियां इस मामले से जुड़ी रही हैं. इनमें महंत दिग्विजय नाथ और महंत अवैद्यनाथ का नाम बेहद प्रमुख हैं. उनकी भूमिकाओं पर डालते हैं एक नजर

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महंत दिग्विजय नाथ
गोरक्षपीठ के महंत रहे दिग्विजय नाथ का नाम उन लोगों में प्रमुखता से शामिल है, जिन्हें अयोध्या में मंदिर निर्माण की परिकल्पना का सूत्रधार कहा जाता है. दिग्विजय नाथ 1935 से 1969 तक पीठाधीश्वर रहे और इसी दौरान देश की प्रमुख घटनाएं हुईं. एक तो आजादी के लिए आंदोलन, फिर देश की आजादी और विभाजन, महात्मा गांधी की हत्या और फिर अयोध्या मामला. इन चारों ही घटनाओं में गोरक्षपीठ और महंत दिग्विजयनाथ का नाम प्रमुखता से जुड़ा मिलता है.

अयोध्या मामले के विषय में कहा जाता है कि तबके गोरक्षपीठाधीश्वर रहे महंत की अगुवाई में ही विवादित स्थल के भीतर भगवान राम की प्रतिमा रखवाई गई थी. यह वाकया 22 दिसंबर 1949 का है. इस दौरान अखिल भारतीय रामायण महासभा मंदिर आंदोलन देख रही थी और इसकी कमान दिग्विजय नाथ के ही हाथ में थी. कभी कमजोर पड़ता, कभी लय पड़ता मंदिर आंदोलन चल रहा था. बाद में महंत दिग्विजय नाथ ब्रह्मलीन हो गए.

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अब सीन में आते हैं महंत अवैद्यनाथ
दिग्विजय नाथ के निधन के बाद उनके शिष्य महंत अवैद्यनाथ पूरे दमखम से आगे आते हैं. मठ का उत्तराधिकारी होने के नाते उन्हें महंत पदवी मिली साथ ही विरासत में मिली राम मंदिर आंदोलन की कमान. 21 जुलाई 1984 को अयोध्या के वाल्मीकि भवन में महंत अवेद्यनाथ को श्रीराम जन्म भूमि मुख्य आंदोलन का अध्यक्ष चुना गया. इसके बाद आंदोलन ने जोर पकड़ लिया. अवैद्यनाथ इसके लिए काफी सक्रिय थे. 14 अकटूबर को पवित्र संकल्प के साथ अयोध्या के सरयू तट से एक धर्म यात्रा निकाली गई जो लखनऊ पहुंची.

यहां हजरत महल उद्यान में बड़ी संख्या में हिंदुओं ने इसमें हिस्सा लिया. यहीं से आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर फैलाने की कवायद शुरू हुई. 22 सितंबर 1989 को नई दिल्ली के बोर्ड क्लब में विराट हिंदू सम्मेलन किया गया. यहां प्रस्ताव पास किया गया कि श्रीराम जन्म भूमि, हिंदुओं की थी और उन्हीं की रहेगी. सहमति बनी कि भूमि पर मंदिर निर्माण के लिए 9 नवंबर 1989 को शिलन्यास किया जाएगा. तब गृहमंत्री रहे सरदार बूटा सिंह से वार्ता के बाद कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया, हालांकि इस दौरान जगह-जगह राम शिला पूजा का कार्यक्रम किया गया.

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याचना नहीं रण होगा का दिया नारा
साल 1989 में ही महंत अवैद्यनाथ हिंदू महासभा से राम मंदिर को मुद्दा बनाते हुए संतों के प्रतिनिधि के तौर पर चुनाव लड़ रहे थे. 21 नवंबर 1990 को महंत अवेद्यनाथ ने मंदिर के लिए कहा कि अब याचना नहीं रण होगा. 27 फरवरी 1991 को उन्होंने और विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल ने गोरखपुर में एक जनसभा की. 23 अप्रैल 1991 में गोरखपुर संसदीय चुनाव क्षेत्र से अपना पर्चा दाखिल करते समय श्रीराम जन्म भूमि और रोटी को ही अवैद्यनाथ ने अपना मुद्दा बताया। उनके नेतृत्व में कई प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्रियों से मिलता रहा और प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से तीन बार मुलाकात की. 29 जुलाई 1992 को अवैद्यनाथ ने लोकसभा में कहा कि पूर्वाग्रह की वजह से रामजन्म भूमि मुद्दा हल नहीं हो पा रहा है. 30 अक्टूबर 1992 को दिल्ली में पांचवीं बार धर्म संसद आयोजित की गई. इस दौरान प्रधानमंत्री को तीन माह का समय दिया गया. 

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लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट में आया था नाम
कहा जाता है कि छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाने की रूपरेखा उन्हीं की देखरेख में तैयार की गई थी. हालांकि इसे संघ व साथ जुड़े अन्य संगठनों ने इसे अंजाम दिया. विश्व हिंदू परिषद ने 1989 में इलाहाबाद में धर्म संसद का आयोजन किया था. तब महंत अवैद्यनाथ ने यहां जो भाषण दिया था उससे मदिर मुद्दे के अगले प्रभावी कदम की रुपरेखा व आधारशिला माना जाता है. महंत ने कहा था कि किसी अनजाने संघर्ष को टालने के लिए हमें किसी दूसरी जगह मंदिर बनाने की सलाह दी जा रही है. यह ठीक वैसी ही सलाह है कि जैसे रावण से युद्ध टालने के लिए भगवान राम को कह दिया जाए वह किसी दूसरी सीता से विवाह कर लें. राम मंदिर आंदोलन में अवैद्यनाथ की भूमिका का अंदाजा लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट से भी लगाया जा सकता है. आयोग ने इस आंदोलन के जरिए देश में सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने की कोशिश का जिन लोगों को जिम्मेदार माना था, उनमें अवैद्य नाथ का नाम भी शामिल था. 

सीएम योगी आदित्यानाथ ने दी श्रद्धांजलि
 सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यूपी के मुख्यमंत्री और गोरक्षपीठ के महंत योगी आदित्यनाथ ने अपने गुरुओं महंत दिग्विजय नाथ, महंत अवेद्यनाथ और महंत रामचंद्र परमहंस को श्रद्धांजलि अर्पित की. उन्होंने एक भावुक ट्वीट करते हुए एक तस्वीर भी शेयर की. यह तस्वीर अयोध्या आंदोलन  के दौरान हुए एक शिलापूजन समारोह की है. उन्होंने लिखा, गोरक्षपीठाधीश्वर युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज, परम पूज्य गुरुदेव गोरक्षपीठाधीश्वर ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ जी महाराज एवं परमहंस रामचंद्र दास जी महाराज को भावपूर्ण श्रद्धांजलि.

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