नई दिल्लीः Haridwar Mahakumbh 2021 का आगाज मकर संक्रांति पर्व के साथ हो जाएगा. एक तो संक्रांति, फिर पांच ग्रहों को संयोग और इस मौके पर गंगा स्नान. इस तरह के दिव्य संयोगों का लाभ लेने के लिए देवता भी तरसते हैं. इसके लिए वह बार-बार भारत भूमि पर जन्म लेते हैं.


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देवी और मां के रूप में प्रतिष्ठित गंगा सिर्फ देवलोक से उतरने के कारण ही पवित्र नहीं कहलाईं बल्कि उनके साथ ऋषियों और मुनियों के वरदान भी जुड़े हैं. मान्यता है कि देवी को मिले ये वरदान उनमें स्नान करने वाले लोगों को भी मिल जाते हैं. 


इसलिए है महाकुंभ में गंगा की महिमा
हिमालय की गोद से निकलने के बाद उत्तर के मैदानों को सींचती हुई गंगा जब बंगाल की खाड़ी में गिरती है तो इस सफर के दौरान लोक आस्था उन्हें कई नामों से पुकारती है. यह नाम गंगा के जल की पवित्रता को और अधिक बढ़ाते हैं साथ ही इनसे जुड़े प्रसंग मानव समुदाय को त्याग. दया, करुणा की भी शिक्षा देते हैं.



गंगा स्नान का महत्व इसलिए भी है ताकि मनुष्य पानी की तरह सरलता और तरलता की को सीखे. उसका सारा दर्प नदी की धारा के साथ बह जाए और जब वह घाट से बाहर निकलकर सामाजिक जीवन में पहुंचे तो एक उत्कृष्ट मनुष्य बनकर पहुंचे. गंगा की यही शिक्षाएं उनके नाम से जुड़ी हैं. 


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ब्रह्मकन्या-पंडिता
गंगा नदी का एक नाम ब्रह्मकन्या है. परमपिता ब्रह्मा के कमंडल का जल गंगा जल ही है. उन्होंने सबसे पहले गंगा को शुचिता का वरदान दिया.



सप्तऋषियों के आशीर्वाद पाने के बाद गंगा पंडिता कहलाईं. इस तरह उनका जातकर्म हुआ और वह पंडितों व ज्ञानियों के समान ही पूज्य मानी गईं. इसीलिए गंगा जल से आचमन किया जाना श्रेष्ठ है. 


विष्णुपदी-जटाशंकरी
भगवान विष्णु के चरणों से निकलने के कारण वह विष्णुपदी कहलाईं. उनका यह नाम वैकुंठ में है. इसके बाद वह देवलोक को पवित्र करने पहुंचीं तो देवनदी कहलाईं. स्वर्गलोक में उन्हें सुरतरंगिणी भी कहा जाता है. गंन्धर्व इसी नदी के किनारे संगीत अभ्यास करते हैं.



धरती पर अवतरण के समय उन्हें भगवान शिव ने अपनी जटाओं में बांध लिया. इसलिए गंगा जटाशंकरी बन गईं. शिव की कृपा से धरती पर अवतरण हुईं तो शिवाया कहलाईं और लोगों के कल्याण का वरदान मिला तो कल्याणी बन गईं. 


हिमानी-भागीरथी
हिमालय पर्वत ने अपनी गोद में उन्हें आश्रय दिया और संतान की तरह प्रेम किया तो वह हिमानी बन गईं. हिमालय की सभी पुत्रियां हिमानी कहलाती हैं. यह नाम पार्वती का भी है. भगीरथ के प्रयास से देवी का अवतरण हुआ तो उन्हें भागीरथी नाम मिला. यही भागीरथी जब मंद-मंद आगे बढ़ती हैं तो मंदाकिनी कहलाती हैं. 


जाह्नवी
हिमालय की गोद से उतरते हुए गंगा नदी आगे ब़ढ़ रही थीं. ऋषिकेश के पास पवित्र तीर्थ पर जह्नु ऋषि तपस्या कर रहे थे. गंगा ने वेगवान होकर उनके आश्रम को उजाड़ दिया और कमंडल आदि बहा ले गईं. ऋषि ने इससे क्रोधित होकर गंगा को पी लिया.



जब भगीरथ ने क्षमा याचना की तो ऋषि ने कान के रास्ते गंगा को मार्ग दिया. तब गंगा भी नतमस्तक होकर कहा कि मुझे पुत्री मानकर क्षमा करें, तब ऋषि ने गंगा को जाह्नवी नाम दिया. 


त्रिपथगा
गंगा नदी को त्रिपथगा कहा जाता है. गंगा तीन रास्तों पर आगे बढ़ती हैं. कहते हैं कि महादेव ने जब उन्हें जटा से मुक्त किया तो वह तीन धाराओं में बंट गई. एक धारा स्वर्ग में, एक धारा भगीरथ के पीछे और एक धारा पाताल में चली गई. यही धारा पातालगंगा भी कहलाती है. 


मुख्या
भारत की मुख्य नदी होने के कारण मुख्या भी गंगा नदी का एक नाम है. 


उत्तर वाहिनी
हरिद्वार से फर्रुखाबाद, कन्नौज, कानपुर होते है गंगा नदी इलाहाबाद पहुंचती हैं. इसके बाद काशी में गंगा नदीं एक वलय लेती हैं और उत्तर दिशा की ओर दोबारा बढती हैं.



इसलिए गंगा यहां पर उत्तर वाहिनी कहलाती हैं. बिहार राज्य को सींचते हुए गंगा बंगाल में प्रवेश करती हैं. 


मेघना-हुगली
गाल में गंगा की एक धारा का नाम मेघना है. उन्हें यह नाम मेघों जैसी गर्जना वाली धाराओं के कारण मिला है. यहां से होते हुए दक्षिणेश्वर में मां काली को प्रणाम करते हुए गंगा शांत और मंथर गति से आगे बढ़ रही होती हैं. उनके किनारे पर बसे इस शहर का नाम है हुगली. इसलिए गंगा को भी हुगली नदी कहा जाता है. इसके बाद गंगा बंगाल की खाड़ी में गिर जाती हैं. यही स्थल गंगा सागर बन जाता है. 


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