भगवान कृष्ण जिसे इंद्र के बागीचे से उखाड़कर लाए थे, यहां है वो पेड़

श्रीमद् भागवत् में एक प्रसिद्ध कथा है. जिसके अनुसार सर्वेश्वर ब्रह्म स्वरुप भगवान कृष्ण ने देवराज इंद्र के दर्प का दलन करने के लिए उन्हें युद्ध में पराजित किया था. जिसके बाद अपनी पत्नी सत्यभामा के कहने पर इंद्र के बागीचे से पारिजात के पेड़ को उखाड़कर धरती पर ले आए थे. आईए आपको बताते हैं कि आज धरती पर कहां है वह पारिजात का वृक्ष

Last Updated : Nov 5, 2019, 03:41 PM IST
    • दुर्लभ है पारिजात का पेड़
    • वैज्ञानिक भी मानते हैं असाधारण
    • भगवान कृष्ण स्वर्ग से लेकर आए थे
भगवान कृष्ण जिसे इंद्र के बागीचे से उखाड़कर लाए थे, यहां है वो पेड़

नई दिल्ली: हमारी नई पीढ़ी अक्सर रामायण और महाभारत को मात्र कथा कहानी बताते हुए उसका उपहास करती है. क्योंकि मैकाले की शिक्षा पद्धति ने उन्हें यही सिखाया है. लेकिन रामायण और महाभारत के कथानकों के जुड़े ऐसे कई सबूत मिलते हैं, जो यह बताते हैं कि हमारा प्राचीन साहित्य मिथक नहीं है. धरती पर आज भी पाए जाने वाले ऐसे कई गवाह हैं जो राम और कृष्ण जैसे हमारे पूर्वजों की गौरव गाथा का बखान करते हैं. इसमें से एक है पारिजात का वृक्ष-

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में है पारिजात वृक्ष
वर्तमान में पारिजात का पेड़ उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के किन्तूर गांव स्थित है. इस गांव का नाम पांडवों की माता कुंती के नाम पर किन्तूर पड़ा. इसी गांव में पारिजात का ऐतिहासिक पेड़ स्थित है. यह पेड़ कई मायनों में बेहद खास है. इस पेड़ पर सफेद रंग के फूल आते हैं जो कि सूखने पर सुनहले हो जाते हैं. यह फूल रात को खिलते हैं और सुबह मुरझा जाते हैं. रात में जब पारिजात के फूल खिलते हैं तो उनकी सुगंध दूर दूर तक फैल जाती है. 

विज्ञान भी इसे बताता है असाधारण पेड़
किन्तूर गांव के इस पारिजात पेड़ की जांच कई बार वनस्पति विज्ञानियों ने की है. जिन्होंने इसे असाधारण करार दिया है. वनस्पति वैज्ञानिकों के मुताबिक परिजात के इस पेड़ को ‘ऐडानसोनिया डिजिटाटा’ के नाम से जाना जाता है. इसे एक विशेष श्रेणी में रखा गया है  क्योंकि यह अपने फल या उसके बीज का उत्पादन नहीं करता है. यही नहीं इसकी शाखा या कलम से एक दूसरा परिजात वृक्ष भी नहीं लगाया जा सकता. वनस्पतिशास्त्रियों के अनुसार यह एक यूनिसेक्स पुरुष वृक्ष है. ऐसा कोई पेड़ और कहीं नहीं मिला है. इस पेड़ के बारे में एक और खास बात कही जाती है कि इसकी शाखाएं टूटती या सूखती नहीं हैं. बल्कि पुरानी हो जाने के बाद सिकुड़ते हुए मुख्य तने में ही गायब हो जाती हैं.

दुर्लभ हैं पारिजात के फूल और पत्ते
पारिजात में फूल लगते तो हैं, लेकिन बहुत कम संख्या में. इस पेड़ में जून के महीने(गंगा दशहरा के समय) फूल आते हैं. लेकिन इनकी संख्या बेहद कम होती है. कुछ खास ही लोगों को इसके फूल मिल पाते हैं. इसके पुष्पों की गंध रात में दूर तक फैलती है. इस पेड़ की पत्तियां भी बेहद खास हैं. पारिजात पेड़ के निचले हिस्से में पत्तियां हाथ की उंगलियों की तरह पांच युक्तियों वाली होती है. जबकि पेड़ के उपरी हिस्सों में यही पत्तियां सात युक्तियों वाली हो जाती हैं. 


किन्तूर गांव के इस पारिजात पेड़ की गोलाई लगभग 50 फुट और ऊंचाई 45 फुट है. यह पेड़ उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिला मुख्यालय से पूरब दिशा में 38 किलोमीटर दूर किन्तूर गांव में लगा हुआ है. यहां इस पेड़ का बेहद सम्मान किया जाता है और इसकी पूजा की जाती है. इस पेड़ के फूल और पत्तियों की अमूल्य संपत्तियों की तरह रक्षा की जाती है. कई पर्यटक इस पेड़ का दर्शन करने के लिए बाराबंकी पहुंचते हैं. स्थानीय लोगों के मुताबिक इस पेड़ की आयु लगभग 5000 साल है. 

पारिजात वृक्ष की ये है कहानी
कहते हैं पारिजात का पेड़ समुद्र मंथन से उत्तपन्न हुआ था और यह देवराज इंद्र के नंदन वन नें स्थापित किया गया था. पारिजात वृक्ष को धरती पर लाने का श्रेय भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण को जाता है. भागवत् पुराण के मुताबिक एक बार भगवान श्रीकृष्ण अपनी पटरानी रुक्मिणी के साथ थे. तभी नारद मुनि अपने हाथ में पारिजात का पुष्प लिए हुए आए और उसे रुक्मिणी को दे दिया. रुक्मिणी ने पारिजात के फूल अपने जुड़े में लगा लिए. 
जिसे देखकर श्रीकृष्ण की दूसरी पत्नी सत्यभामा ने पूरे पारिजात के पेड़ की मांग की. जिसके बाद कृष्ण जी ने इंद्र से पारिजात का पेड़ देने का अनुरोध किया. लेकिन इंद्र ने उनका अनुरोध ठुकरा दिया. जिसके बाद सत्यभामा की जिद् पर भगवान ने गरुड़ पर बैठकर स्वर्ग पर हमला कर दिया. इस युद्ध में सत्यभामा और कृष्ण ने साथ मिलकर युद्ध किया तथा सभी देवताओं को पराजित कर दिया और स्वयं भगवान कृष्ण ने इंद्र के हाथों को पकड़कर उसका वज्र स्तंभित कर दिया. 


हार कर इंद्र को पारिजात का पेड़ सत्यभामा को सौंपना पड़ा. जिसके बाद पारिजात का पेड़ धरती पर आ गया. 

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