गलती करना इंसान का स्वभाव है. मनुष्य जाति जाने-अंजाने रोज़ न जाने कितने अपराध-पाप करते रहती है. मनुष्य का स्वभाव ही ऐसा है. क्योंकि दिन के ज्यादातर हिस्से में वह काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह के वशीभूत होकर कार्य करता है. इसके वशीभूत होकर दूसरों को सताता है, प्रकृति पर प्रहार करता है, कई तरह के पापों के उत्पन्न होने का कारण बनता है.
हर बार पाप करने के बाद आदमी प्रण करता है कि अब बहुत हो गया. अब से ऐसा नहीं होगा. लेकिन संकट से उभरते ही फिर उधर ही चला जाता है.
लेकिन प्रकृति हमारे हर अपराध का हिसाब रखती है. गीता में भी भगवान ने इस बात की तरफ संकेत दिया है कि हर कर्म का फल मिलता ही है. चाहे वो कर्म अच्छे हों या बुरे. हमारे संचित पाप घोर कष्टों का कारण बनते हैं. बिल्कुल वैसे ही जैसे संचित पुण्य अक्षय सुख का कारण होते हैं.
यहीं पर शनिदेव की भूमिका शुरु होती है. जीवन में जब कभी भी शनि महाराज का प्रवेश शुरु होता है. चाहे वह साढ़ेसाती के रुप में हो, ढैया के रुप में हो या फिर दशा या अंतर्दशा के स्वरुप में. यह काल हमारे संचित पापों को नष्ट करने का होता है.
शनिदेव हमें हमारे पापों के लिए दंडित करके पाप कोष को थोड़ा थोड़ा करके कम करते रहते हैं. कुछ लोग इसी दंड के भय से हमेशा के लिए सुधर जाते हैं. शनिदेव से अपने पापों का दंड हासिल करने के बाद जब हम विदा होते हैं, तब तक हमारे पाप-पुण्य का जमा खाता बराबर हो जाता है.
जिसे हम शनिदेव का दंड समझते हैं वास्तव में वह हमारा उपकार होता है. दरअसल बर्तन को चमकाने के लिए उसे राख-मिट्टी से बहुत मांजना पड़ता है. राख मिट्टी जब बर्तन पर घिसी जाती है तो बर्तन को भी कष्ट होता है. लेकिन उसी से बर्तन की रंगत भी निखरती है. यही कार्य शनिदेव का है.
शनिदेव न्याय के देवता हैं. जो शनै: शने: विचरण करे वह शनिचर. वह ढाई साल में एक पग बढ़ाते हैं, साढ़े सात साल एक राशि में बिताते हैं. कलियुग में ईश्वर ने यह व्यवस्था दी है कि हमारे ज़्यादातर कर्मों का हिसाब इसी जन्म में हो जाए.
शास्त्र भी कहते हैं कलिकाल में चतुर्गुणित यानी चौगुने जप-अनुष्ठान की आवश्यकता होगी. तो हम अपने साथ पापों की बड़ी गठरी लेकर न जाएं इसकी व्यवस्था शनिदेव करते हैं. शनिदेव साढ़े सात साल अच्छे से मांजते हैं. इसमें हमारे कर्म के साथ साथ हमारी मति भी सुधर जाती है.
वैसे भी शनिदेव हमारे पापों को भस्म करने के लिए कष्ट देते हैं. अगर हमारा जीवन पापमय नहीं हो या पुण्यों की तुलना में पाप बेहद कम हों तो कष्ट भी नहीं मिलते या फिर बेहद मामूली होते हैं.
क्योंकि शनिदेव बेहद न्यायप्रिय भी हैं. वह अकारण कष्ट नहीं देते. इसीलिए देखा जाता है कि कई बार शनिदेव की दशा शुरु होने पर कई जातकों को बेहद लाभ भी होता है. यह उनके पुण्य कर्मों का फल होता है. क्योंकि उनके खाते में पाप होते ही नहीं या बेहद कम होते हैं.
इसलिए शनिदेव से डरिए नहीं, बल्कि उनसे प्रेम करिए. क्योंकि वह हमारे सबसे बड़े उपकार कर्ता हैं. देवाधिदेव महादेव ने अपनी सृष्टि में उन्हें न्यायकर्ता की भूमिका सौंपी हैं. कलिकाल में वह सबसे शक्तिशाली हैं.
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनिश्चराये नमः।।
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