Navratri special: जानिए, क्यों देवी ने काटा अपना सिर, यहां होती है इस स्वरूप की पूजा

भगवती भवानी अपनी सहेलियों जया और विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गईं. स्नान करने के बाद भूख से उनका शरीर काला पड़ गया. सहेलियों ने भी भोजन मांगा. देवी ने उनसे कुछ प्रतीक्षा करने को कहा. बाद में सहेलियों के विनम्र आग्रह पर उन्होंने दोनों की भूख मिटाने के लिए अपना सिर काट लिया.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Oct 18, 2020, 04:40 PM IST
    • झारखंड के रजरप्पा में स्थित है छिन्नमस्ता माता का मंदिर
    • 6000 साल पुराना है मंदिर का इतिहास
Navratri special: जानिए, क्यों देवी ने काटा अपना सिर, यहां होती है इस स्वरूप की पूजा

नई दिल्लीः देवी मां की महिमा न पुराणों में गाई जा सकी गई है, और न ही किसी के द्वारा सुनाई जा की है, फिर भी भक्तों-संतों ने कुछ कोशिश की है जिससे से सभी का कल्याण हो रहा है. शारदीय नवरात्र देवी की आराधना का विशेष पावन समय है.

ऐसे में माता के मंदिरों की महिमा भी बड़ी न्यारी है. हालांकि corona के इस संकट काल में मंदिर जाना सुलभ नहीं है, ऐसे में घर बैठे ही माता के दर्शन कर सकते हैं. 
नवरात्रि की इस पावन कड़ी में जानिए देवी के छिन्नमस्तिका स्वरूप के बारे में, जिनका मंदिर झारखंड में स्थित है. 

यह है देवी छिन्नमस्तिका की कथा
कथा के अनुसार एक बार भगवती भवानी अपनी सहेलियों जया और विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गईं. स्नान करने के बाद भूख से उनका शरीर काला पड़ गया. सहेलियों ने भी भोजन मांगा. देवी ने उनसे कुछ प्रतीक्षा करने को कहा. बाद में सहेलियों के विनम्र आग्रह पर उन्होंने दोनों की भूख मिटाने के लिए अपना सिर काट लिया.

कटा सिर देवी के हाथों में आ गिरा व गले से 3 धाराएं निकलीं. वह 2 धाराओं को अपनी सहेलियों की ओर प्रवाहित करने लगीं. तभी से ये छिन्नमस्तिके कही जाने लगीं. 

असुरों से संग्राम की कथा
एक और कथा के अनुसार, असुरों से संग्राम के दौरान देवी ने अपनी सभी योगिनी शक्तियों को जागृत किया और दानव दल पर टूट पड़ीं. इस दौरान उनकी दो सहेलियों जया-विजया ने खप्पर में भर-भर कर रक्तपान किया और असुरों का नाश किया. सभी दैत्यों का नाश हो जाने के बाद भी देवियां भूखी रह गईं, तब माता ने स्वयं का शीष काटकर उनकी क्षुधा को शांत किया. 

यहां स्थित है मंदिर
झारखंड की राजधानी रांची से करीब 80 किलोमीटर की दूरी पर रजरप्पा में छिन्नमस्तिका देवी का मंदिर स्थित है. ये मंदिर शक्तिपीठ के रूप में काफी विख्यात है. इसे दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ के रूप में मान्यता प्राप्त है. मंदिर में बिना सिर वाली देवी मां की पूजा की जाती है. मान्यता है कि मां इस मंदिर में दर्शन के लिए आए सभी भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं.

6000 साल पुराना है मंदिर
मंदिर की उत्तरी दीवार के साथ रखे एक शिलाखंड पर दक्षिण की ओर रुख किए माता छिन्नमस्तिका का दिव्य रूप अंकित है. कई विशेषज्ञों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण 6000 वर्ष पहले हुआ था और कई इसे महाभारतकालीन मंदिर भी बताते हैं.

छिन्नमस्तिका मंदिर के अलावा, यहां महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंगबली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर के नाम से कुल सात मंदिर हैं. पश्चिम दिशा से दामोदर तथा दक्षिण दिशा से कलकल करती भैरवी नदी का दामोदर में मिलना मंदिर की खूबसूरती का बढ़ावा देता है.

ऐसा है मां का स्वरूप
कहा जाता है कि मंदिर के अंदर जो देवी काली की प्रतिमा है, उसमें उनके दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर है. शिलाखंड में मां की तीन आंखें हैं. इसके साथ ही वह बायां पैर आगे की ओर बढ़ाए हुए कमल पुष्प पर खड़ी हुईं हैं.

उनके पांव के नीचे विपरीत रति मुद्रा में कामदेव और रति शयनावस्था में हैं.

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