Navratri special: जानिए, क्या है देवी ब्रह्मचारिणी के स्वरूप का गूढ़ रहस्य

देवी भागवत के अनुसार सृष्टि का आदि स्वरूप ही शक्ति स्वरूप है और देवी ही इसकी प्रथम आद्या हैं. वह परमपिता ब्रह्मदेव की इच्छा शक्ति हैं, विष्णु की पालक शक्ति हैं और शिव के संहार की इच्छा में भगवती की ही शक्ति समाहित है. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Oct 18, 2020, 04:01 PM IST
    • देवी ने हजार सालों तक एकनिष्ठ होकर की तपस्या
    • निराहार रहने व पत्तों का आहार भी छोड़ देने पर उन्हें अपर्णा कहते हैं
Navratri special: जानिए, क्या है देवी ब्रह्मचारिणी के स्वरूप का गूढ़ रहस्य

नई दिल्लीः शारदीय नवरात्र देवी मां शक्ति की उपासना के लिए प्रमुख दिन हैं. नौ दिनों का यह पावन अनुष्ठान मनुष्य के भीतर ही शक्ति के स्त्रोत की खोज का पर्व है. वैज्ञानिक जिस बिग बैंग थ्योरी का रहस्य अपने शोध में बताते हैं, दरअसल वह हमारे ही विचारों के भीतर होने वाला विस्फोट है.

पहली नजर में तो यह विस्फोट विनाशी लगता है, लेकिन ऐसा है नहीं, बल्कि यह विस्फोट तो अविनाशी है. यह महज एक प्रक्रिया है जिससे नवसृजन होता है. सृजन चाहे सृष्टि का हो या विचारों का विस्फोट तो होना ही है. ब्रह्मांड के इसी अविनाशी स्वरूप की शक्ति हैं देवी ब्रह्मचारिणी. 

शिव के संहार में भगवती की शक्ति
देवी भागवत के अनुसार सृष्टि का आदि स्वरूप ही शक्ति स्वरूप है और देवी ही इसकी प्रथम आद्या हैं. वह परमपिता ब्रह्मदेव की इच्छा शक्ति हैं, विष्णु की पालक शक्ति हैं और शिव के संहार की इच्छा में भगवती की ही शक्ति समाहित है.

इसलिए इन्हें आदिशक्ति, महाविद्या और परमशक्ति के तौर पर जाना जाता है. देवी के नौ दिन देवी के विभिन्न स्वरूपों को समर्पित होते हैं. भगवती की सूक्ष्म शक्ति से परे यह नव स्वरूप प्राथमिक, दिव्य और मानव जाति के लिए प्रेरणा हैं.

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द्वितीय ब्रह्मचारिणी हैं तप की देवी
देवी का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है. ब्रह्मा की इच्छाशक्ति और तपस्विनी का आचरण करने वाली यह देवी त्याग की प्रतिमूर्ति हैं . ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है. मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल प्रदान करने वाला है.

उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है. नवदुर्गा के दूसरे दिन साधक का मन 
स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होता है. इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है. इस मंत्र से साधना करें.
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
 देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

देवी का नाम अपर्णा भी है
प्रथम देवी शैलपुत्री हैं, जिनका जन्म हिमालय की गोद में हुआ तो उन्हें यह नाम मिला. इन्हीं शैल पुत्री ने चिरकाल तक महादेव की तपस्या की और उन्हें पतिरूप में पाया. देवी का हजार सालों तक चले इस कठिन तप ने उन्हें एकनिष्ठा बना दिया, क्योंकि वह एक निष्ठ होकर ध्यानलीन थीं.

इसके बाद उन्होंने केवल बिल्व पत्र खाकर तप किया और बाद में वह भी छोड़ दिया. इसलिए देवी अपर्णा कहलाईं. देवी का तप इस चरम तक पहुंच गया कि वह ब्रह्मांड को भी डिगाने लगा तब देवी का नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा. 
देवी मानव समाज को सीख देती हैं कि आप कोई भी शुभ कार्य करें तो इसे पूरी आस्था के साथ करें. नवरात्र का यह दूसरा दिन इसी आधार पर शुभ फलित होता है. 

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