नई दिल्ली: आम आदमी काफी लंबे वक्त से महंगाई से परेशान है. सबसे ज्यादा दिक्कत खाने-पीने की जरूरी वस्तुओं के बढ़ते दामों को लेकर है. हालांकि अब महंगाई को लेकर एक राहत देने वाली रिपोर्ट जारी की गई है. इस रिपोर्ट में साल 2022 में खाने-पीने के सामानों की कीमतों को लेकर बात की गई है. रिपोर्ट कहती है कि भले ही साल 2022 में कीमतें बढ़ी हों लेकिन फिर भी यह पिछले सालों की तुलना में संतोषजनक थी.
क्या कहते हैं इस साल के आंकड़े
आईडीएफसी म्युचुअल फंड की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल यानी 2022 में खाद्य महंगाई के संबंध में 2019 की पुनरावृत्ति नहीं हो सकती है क्योंकि तब और अब की स्थितियां अलग हैं. रिपोर्ट में कहा गया- 2019 में, खाद्य महंगाई दिसंबर में साल-दर-साल मजबूती से बढ़कर 12.2 प्रतिशत हो गई थी. जुलाई-अक्टूबर के दौरान इसकी कुल अनुक्रमिक गति 4.8 प्रतिशत थी, जो इस वर्ष 2.6 प्रतिशत थी.
2019 में ज्यादा थीं सब्जियों की कीमत
साल 2019 में सब्जियों की कीमतें काफी ज्यादा बढ़ गई थीं. उस साल प्याज की कीमतों में तेजी आने की वजह से सब्जियों की कीमतें काफी ज्यादा बढ़ गई थीं. साल 2019 में जुलाई से दिसंबर के दौरान प्याज की कीमतों में 171 प्रतिशत का इजाफा देखने को मिला था. चावल और दाल जैसे अन्य खाद्य वस्तुओं की कीमतों की वजह से भी महंगाई में बढ़ोतरी हुई थी. वहीं 2022 में, वैश्विक कीमतों पर भू-राजनीतिक घटनाओं के प्रभाव, घरेलू उत्पादन में कमी और अन्य के कारण अनाज अपेक्षाकृत बड़ा चालक रहा है, लेकिन कुल मिलाकर खाद्य मुद्रास्फीति में 2019 की तरह तेजी नहीं आई है.
सरकार रख रही है नजर
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल कीमतों के कंट्रोल में रहने की वजह यह है कि इस साल सरकार का हस्तक्षेप बहुत मजबूत रहा है. खाद्य मुद्रास्फीति हमेशा एक वाइल्ड कार्ड रही है. अक्टूबर 2022 में, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के खाद्य और पेय पदार्थ घटक में साल दर साल सात प्रतिशत की वृद्धि हुई है. यह अप्रैल-अक्टूबर के दौरान 7.1 प्रतिशत के हेडलाइन CPI के मुकाबले औसतन 7.6 प्रतिशत रहा है. आईडीएफसी म्युचुअल फंड ने कहा कि इस साल की शुरूआत से विभिन्न खाद्य घटकों में उतार-चढ़ाव रहा है.
इस साल इस वजह से कम रहा फसलों का उत्पादन
रिपोर्ट में कहा गया है- रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरूआत के बाद खाद्य तेल और गेहूं की कीमतों में वृद्धि (और सामान्य रूप से उच्च उर्वरक कीमतों से) की चिंताओं के साथ शुरू हुआ, इसके बाद मार्च-अप्रैल में हीटवेव जैसी स्थितियां गेहूं के उत्पादन को प्रभावित कर रही थीं, मौसम (जून-सितंबर) में चावल और दालों की बुआई, और अब अक्टूबर में कुछ राज्यों में बहुत भारी बारिश से फसल को नुकसान हुआ है.
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