नई दिल्ली: Holi 2024: 25 मार्च 2024 को देशभर में होली का त्योहार मनाया जाएगा. इस त्योहार से पहले सभी के घरों में खुशबूदार, मीठी और टेस्टी गुजिया बन चुकी होंगी. गुजिया के बिना होली को मनाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर गुजिया बनाने की परंपरा होली के मौके पर ही क्यों होती है?
भारत में कहां से आई गुजिया
भारत में होली के मौके पर गुजिया बनाने की परंपरा सदियों पुरानी है. हैरानी की बात ये है कि सबकी फेवरेट यह मिठाई भारतीय नहीं है बल्कि यह तुर्की से भारत आई है. इतिहासकारों के मुताबिक तुर्की की फेमस मिठाई बकलावा को देखकर ही भारतीयों ने गुजिया बनाने की परंपरा शुरू की थी. बकलावा को बनाने के लिए मैदे की कई परतें बनाई जाती हैं और फिर इनके बीच में ड्राई फ्रूट्स, चीनी और शहद की फिलिंग की जाती है. कहा जाता है कि तुर्की में बकलावा को सिर्फ शाही परिवारों के लिए ही बनाया जाता था.
पहली बार कहां बनाई गई थी गुजिया?
इतिहासकारों के मुताबिक भारत में गुजिया पहली बार 16वीं शताब्दी बनाई गई थी. इसे सबसे पहले उत्तर प्रदेश राज्य के बुंदेलखंड शहर में बनाया गया था, जिसके बाद यह राजस्थान, बिहार और मध्य प्रदेश होते हुए देश के कई राज्यों में जा पहुंचा. माना जाता है कि बुंदेलखंड में ही पहली बार मैदे की परत बनाकर उसमें खोया भरते हुए पहली गुजिया बनाई गई थी. आज यह मिठाई पूरे देश में प्रसिद्ध है.
होली के दिन गुजिया बनाने की परंपरा
माना जाता है कि होली के मौके पर गुजिया बनाने की परंपरा वृंदावन के राधा रमण मंदिर से शुरू हुई है. साल 1542 में बना यह मंदिर देश के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है. मान्यताओं के मुताबिक फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को बुंदेलखंड के निवासियों ने भगवान कृष्ण को आटे की लोई में चाश्नी डालकर इसका भोग लगाया था. इसके बाद से ही होली के मौके पर गुजिया बनाने की परंपरा शुरु हुई. ऐसा भी माना जाता है कि भगवान कृष्ण को गुजिया बेहद पसंद थी, जिसके चलते मथुरा और वृंदावन के लोग भगवान कृष्ण को इसका भोग लगाते थे.
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