वंदे मातरम: सियासत की 'लैला' कमल का 'भंवरा' | Mamata राज में नफ़रत का 'जहान' | West Bengal Elections

साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी ने लोकसभा चुनाव लड़ा तो उस वक़्त बीजेपी का वो सपना साकार होने की ओर बढ़ा जो वो पिछले 68 सालों से देख रही थी. पश्चिम बंगाल में सियासी ज़मीन का तैयार होना. इससे पहले बीजेपी बंगाल की सियासी चर्चा में भी शामिल नहीं होती थी लेकिन 2014 के बाद जो हुआ उसने विरोधी दलों को डरा दिया. बीजेपी के बढ़ते क़द का ही ये प्रभाव है. शिवसेना को जिस पार्टी से कोई मतलब नहीं उस पर एक पूरा लेख लिख देती है और सियासत की लैला को कमल का भंवरा कहने लगते हैं. AIMIM को बीजेपी से लिंक करने की पुरज़ोर कोशिश होती है, क्योंकि मज़हब के दो ध्रुवों पर सियासत कर रही पार्टियां एक दूसरे के वोटों को तो प्रभाविक करती ही हैं, और इसमें जिनका नुकसान होता है वो चिढ़ते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो दूर बैठे तमाशा देखते हैं और आग में घी डालते रहते हैं. बंगाल में जब वामपंथी विचारधारा को चोट पहुंची तो हिंदू दक्षिणपंथी विचारधारा ने एक बार जड़ें मज़बूत की और बंगाल अपनी मूल विचारधारा की डोर पकड़ने लगा. इससे मुस्लिम तुष्टिकरण की सियासत करनेवाली सत्तारूढ़ टीएमसी का दरख़्त हिलने लगा और यही वजह है कि आज कट्टरपंथी सोच को चुनौती देनेवाली नुसरत जहां जैसी सांसद नफ़रत की सियासत के लिए मजबूर हो गईं और बंगाल में हिंदू मुस्लिम करने लगीं. बंगाल की फिज़ा सिर्फ सियासी नफ़रतों से ही ज़हरीली नहीं हो रही बल्कि पाकिस्तान और बांग्लादेश प्रायोजित कुछ संगठन भी इस आग को भड़काने की पूरी कोशिश में जुट चुके हैं और कोशिश है कि सियासी समर में बंगाल में रक्तपात को अंजाम दिया जाए.

साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी ने लोकसभा चुनाव लड़ा तो उस वक़्त बीजेपी का वो सपना साकार होने की ओर बढ़ा जो वो पिछले 68 सालों से देख रही थी. पश्चिम बंगाल में सियासी ज़मीन का तैयार होना. इससे पहले बीजेपी बंगाल की सियासी चर्चा में भी शामिल नहीं होती थी लेकिन 2014 के बाद जो हुआ उसने विरोधी दलों को डरा दिया. बीजेपी के बढ़ते क़द का ही ये प्रभाव है. शिवसेना को जिस पार्टी से कोई मतलब नहीं उस पर एक पूरा लेख लिख देती है और सियासत की लैला को कमल का भंवरा कहने लगते हैं. AIMIM को बीजेपी से लिंक करने की पुरज़ोर कोशिश होती है, क्योंकि मज़हब के दो ध्रुवों पर सियासत कर रही पार्टियां एक दूसरे के वोटों को तो प्रभाविक करती ही हैं, और इसमें जिनका नुकसान होता है वो चिढ़ते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो दूर बैठे तमाशा देखते हैं और आग में घी डालते रहते हैं. बंगाल में जब वामपंथी विचारधारा को चोट पहुंची तो हिंदू दक्षिणपंथी विचारधारा ने एक बार जड़ें मज़बूत की और बंगाल अपनी मूल विचारधारा की डोर पकड़ने लगा. इससे मुस्लिम तुष्टिकरण की सियासत करनेवाली सत्तारूढ़ टीएमसी का दरख़्त हिलने लगा और यही वजह है कि आज कट्टरपंथी सोच को चुनौती देनेवाली नुसरत जहां जैसी सांसद नफ़रत की सियासत के लिए मजबूर हो गईं और बंगाल में हिंदू मुस्लिम करने लगीं. बंगाल की फिज़ा सिर्फ सियासी नफ़रतों से ही ज़हरीली नहीं हो रही बल्कि पाकिस्तान और बांग्लादेश प्रायोजित कुछ संगठन भी इस आग को भड़काने की पूरी कोशिश में जुट चुके हैं और कोशिश है कि सियासी समर में बंगाल में रक्तपात को अंजाम दिया जाए.

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