कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में प्राकृतिक खेती पर 14 दिवसीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण शुरू, 26 वैज्ञानिक हुए शामिल
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कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में प्राकृतिक खेती पर 14 दिवसीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण शुरू, 26 वैज्ञानिक हुए शामिल

Dhramshala News: कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में प्राकृतिक खेती पर 14 दिवसीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण शुरू हुआ. जिसमें 26 वैज्ञानिक शामिल हुए हैं. 

कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में प्राकृतिक खेती पर 14 दिवसीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण शुरू, 26 वैज्ञानिक हुए शामिल

Himachal News: चौधरी सरवन कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में को प्राकृतिक खेती की वर्तमान स्थिति और भविष्य की संभावनाओं पर 14 दिवसीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण शुरू हुआ. जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व कुलपति डा. तेज प्रताप नेगी ने शिरकत किया जबकि राष्ट्रीय प्रशिक्षण की अध्यक्षता विवि के कुलपति डा.डी.के.वत्स ने की. 

अपने अध्यक्षीय भाषण में कुलपति डा.डी.के.वत्स ने कहा कि कि प्रशिक्षण में  महाराष्ट्र, पंजाब, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश से 26 वैज्ञानिक शामिल हो रहे हैं.  देश के शीर्ष संस्थानों के विशेषज्ञ चौदह दिनों के प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षुओं के साथ बातचीत करेंगे. वे प्राकृतिक खेती के सभी पहलुओं पर बात करेंगे.

उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती वर्तमान समय का बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है. उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग के कारण मृदा स्वास्थ्य में गिरावट की स्थिति पर चर्चा की.  उन्होंने कहा कि खेतों में देशी खाद के उपयोग में कमी आई है और प्राकृतिक खेती में पैकेज ऑफ प्रैक्टिस के साथ टिकाऊ कृषि के लिए वैज्ञानिकों को ऐसे मुद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता है.

कुलपति ने रोग और कीट प्रबंधन में रसायनों का उपयोग कम करने पर भी चर्चा की क्योंकि यह लोगों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है. उन्होंने कृषि को आधुनिक बनाने की आवश्यकता पर भी बात की ताकि कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ड्रोन के उपयोग आदि का उपयोग करके युवा पीढ़ी इस ओर आकर्षित होगी.

मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व कुलपति डा. तेज प्रताप नेगी ने कहा कि प्रशिक्षुओं को प्राकृतिक खेती के महत्व और उपयोग के बारे में स्पष्ट होना चाहिए. उन्होंने प्रशिक्षुओं से प्राकृतिक खेती की बारीकियों को लगन से सीखने को कहा. 

उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती, जैविक खेती और शून्य बजट प्राकृतिक खेती जैसे शब्द प्रारंभिक चरण में भ्रमित करने वाले रहे है. अब, स्थिति अलग है क्योंकि लोग सुरक्षित भोजन के उपभोग और खेती के बारे में चिंतित हैं.

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