सरकारें आती है-सरकारें जाती है, हर सरकार विकास के करती हैं सिर्फ दावे: नूरपुर के ग्रामीण
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सरकारें आती है-सरकारें जाती है, हर सरकार विकास के करती हैं सिर्फ दावे: नूरपुर के ग्रामीण

Nurpur News: नूरपुर विधानसभा की लदोड़ी पंचायत के छोटीधार गांव में लोगों को सड़क सुविधा नहीं मिलने से काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. 

सरकारें आती है-सरकारें जाती है, हर सरकार विकास के करती हैं सिर्फ दावे: नूरपुर के ग्रामीण

Nurpur News: सरकारें आती हैं. सरकारें जाती हैं. सरकार कोई भी हो हर सरकार विकास के बड़े बड़े दावे भी करती है. अब अगर इन दावों की हकीकत देखनी हो तो कोई जमीनी स्तर पर जाकर देखे.अभी भी कई क्षेत्र ऐसे हैं, जो विकास से कोसों दूर है.

ऐसा ही क्षेत्र है नूरपुर विधानसभा की लदोड़ी पंचायत का छोटीधार गांव. चंबा और कांगड़ा की सीमा के साथ जुड़ा यह गांव अभी भी कई मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. कहते हैं सड़के विकास की परिचायक होती है और विकास के नाम पर यहां सड़क तो है पर वो सड़क गाड़ी की बजाए किसी ट्रैक्टर या फिर घोड़े-खच्चरों के चलने लायक ही है. 

साल में छः महीने खुलने वालीं यह पगडंडी रूपी सड़क जब भी खुलती है तो स्थानीय लोग अपनी जेब से पैसे इकट्ठे कर जेसीबी की मदद से इसे खुलवाते हैं. ऐसे में सरकार नाम की बला से इन बाशिंदों का किया सरोकार रह जाता है?

इन लोगों की माने तो उन्हें आज तक मात्र वोट बैंक के लिए ही इस्तेमाल किया गया है. जब भी चुनाव आते हैं, तो उनसे विकास के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन चुनाव समाप्त होते ही उनके दावे दफन हो जाते हैं. 

यह हकीकत है कि यह गांव विकास के क्षेत्र में अन्य क्षेत्रों से पचास साल पीछे है. जब भी कोई स्थानीय निवासी बीमार हो जाता है, तो उसकी जिंदगी राम भरोसे हो जाती है. अगर जीवन में सांसे लिखी होगी तो हो सकता है पालकी में बिठाकर उसे मुख्य सड़क तक पहुंचाकर अस्पताल पहुंचाया जा सके ,लेकिन गंभीर अवस्था मे उस इंसान की जिंदगी की कोई गारंटी नहीं है. 

ऐसे में सरकार के विकास के दावे मात्र हवा-हवाई नजर आते है क्योंकि असल में अगर विकास करने की कहीं सबसे ज्यादा जरूरत है, तो वो इस तरह के क्षेत्रों में ही है. मूलभूत सुविधाओं से वंचित इस गांव के कई परिवार दूसरे क्षेत्रों में पलायन करने को मजबूर है. 

शिक्षा के नाम पर जहां प्राथमिक स्कूल है. उसके बाद की शिक्षा के लिए आपको लगभग चार-पांच किलोमीटर का जंगली रास्ता तय करने के बाद उच्च विद्यालय का रुख करना होगा. ऐसे में नौ-दस साल के बच्चे कैसे स्कूल में पहुंचेंगे यह अपने आप मे सबसे बड़ा सवाल है. कई परिवार अपने घर-जमीन छोड़कर किराए के मकान लेकर बच्चों को पढ़ाने के लिए मजबूर है. 

इस गांव की आबादी 350 के करीब है और इन सब गांववासियों की सबसे बड़ी मांग अगर कोई है तो वो सड़क को लेकर ही है, जो नाम की सड़क बनी है वो वन विभाग की जमीन पर बनी है. ऐसे में कानूनी पेचीदगियों की वजह से उसका सुधार होना मुश्किल है. 

इसलिए इन प्रभावितों का कहना है कि लोक निर्माण विभाग नई सड़क के लिए अलग से सर्वे करवाये जिसमें वो गांव की निजी भूमि से सड़क निकाले. उनकी माने तो समस्त गांववासी अपनी निजी भूमि विभाग के नाम रिजिस्टरी करवाने के लिए तैयार है और इसके लिए विभाग सबसे पहले सड़क का सर्वे करवाए. 

ऐसे में शासन प्रशासन का भी दायित्व बनता है कि इनकी मांग को प्राथमिकता के आधार पर संज्ञान में ले और इन्हें भी मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास करें. 

रिपोर्ट- भूषण शर्मा, नूरपुर 

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