Lavi Mela: अंतरराष्ट्रीय लवी मेला की अश्व प्रदर्शनी में घोड़ा क्रेताओं की पहली पसंद बने चौमुर्थी नसल के घोड़े
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Lavi Mela: अंतरराष्ट्रीय लवी मेला की अश्व प्रदर्शनी में घोड़ा क्रेताओं की पहली पसंद बने चौमुर्थी नसल के घोड़े

Himachal Pradesh News: हिमाचल प्रदेश में आयोजित अंतरराष्ट्रीय लवी मेले की अश्व प्रदर्शनी में चौमुर्थी नसल के घोड़े आकर्षण बने हुए हैं. ये घोड़े घोड़ा क्रेताओं की पहली पसंद बन रहे हैं. 

Lavi Mela: अंतरराष्ट्रीय लवी मेला की अश्व प्रदर्शनी में घोड़ा क्रेताओं की पहली पसंद बने चौमुर्थी नसल के घोड़े

बिशेश्वर नेगी/रामपुर: हिमाचल प्रदेश के शीत मरू भूमि का जहाज कहे जाने वाले चौमुर्थी नसल के घोड़े अंतरराष्ट्रीय लवी मेला के अश्व प्रदर्शनी में घोड़ा क्रेताओं के लिए पहली पसंद बने. इस नस्ल के घोड़े तिब्बत सीमांत क्षेत्र लाहौल स्पीति के पिन घाटी में अब 2,000 हजार से भी कम संख्या बचे हैं. विलुप्त प्राय नस्ल का यह घोड़ा पहाड़ों पर सवारी व भार उठाने के लिए सबसे सुरक्षित माना जाता है. पहाड़ों पर बर्फ और संकरे रास्ते में मजबूती से पैर रखना और सवारी को बिना तकलीफ व थकान के ले जाने के कारण इसकी हर क्षेत्र में मांग अधिक रहती है.

चौमुर्थी नसल में माइनस तापमान में रहने के साथ-साथ ज्यादा दिनों तक भूखे रहने की क्षमता होती है. चौमुर्थी नसल की उत्पत्ति तिब्बत के छुमुर्त नामक स्थान को माना जाता है. जंगली नसल के घोड़े को पालतू घोड़े के साथ प्रजनन कराने के बाद जो नस्ल ईजाद हुई उसे चौमुर्थी नाम दिया गया. भारत तिब्बत व्यापारिक संबंधों के दौरान शिवकिला व अन्य रास्तों से इस नस्ल के घोड़ों को तिब्बत से स्पीति के पिन घाटी क्षेत्र में लाया गया. इसके बाद पिन घाटी में इस नस्ल के घोड़े ही पाए जाते हैं. 

पशु पालन विभाग द्वारा भी स्पीति के लरी नामक स्थान में इस नस्ल को बढ़ावा देने के लिए एक प्रजनन केंद्र संचालित किया गया है, जहां इस नस्ल के विस्तार के लिए लगातार प्रयास हो रहे हैं. चौमुर्थी नस्ल के घोड़े में बर्फ के बीच बिना पैर फिसले तेजी से चलने की गजब की कला होती है, जब नदी नालों में बर्फ जमती है तो इस नस्ल का घोड़ा बिना पुल के भी जमी बर्फ के बीच में आसानी से सवारी को सुरक्षित लेकर चलता है. इसे यह भी ज्ञान होता है कि किस स्थान पर बर्फ की परत मजबूत है. वहां पर पैर रखकर आगे बढ़ता है.  

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चौमुर्थी घोड़ा मजबूत कद काठी का होने के साथ-साथ विभिन्न मौसमों को झेलने में सक्षम है. इसे बीमारियां भी कम लगती हैं. सेना के अवेरी स्थित 22 मोबाइल फील्ड वेटरिनरी हॉस्पिटल के विशेषज्ञ पशु चिकित्सकों ने चौमुर्थी घोड़े के पालन एवं रख-रखाव के बारे में लोगों को विशेष जानकारियां दीं और बताया कि कैसे इनका पालन बेहतर ढंग से करके इस नस्ल को आगे बढ़ाया जा सकता है.

सेना के 22 मोबाइल फील्ड वेटरिनरी अस्पताल के कर्नल योगेश डोगरा ने बताया चौमुर्थी यानी स्पीति घोड़े इस इलाके के वातावरण के हिसाब से अत्यंत उपयुक्त भार ढोने वाला जानवर है. यह भारतवर्ष की छह मान्यता प्राप्त नस्लों में से एक है. उन्होंने बताया कि सीमांत क्षेत्र में से भी इन घोड़े की सेवाएं लेती हैं.

पशुपालन विभाग के उपनिदेशक नीरज मोहन ने बताया कि यह शीत मरू क्षेत्र का घोड़ा है. इस घोड़े में कम ऑक्सीजन यानी अधिक ऊंचाई पर भी आसानी से रहने की क्षमता होती है. यह जानवर पहाड़ों पर मजबूती से कदम रखने के साथ आसानी से कहीं भी चढ़ जाता है. यह पहाड़ी क्षेत्र के जीवन में महत्वपूर्ण योगदान करता है. 

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उपमंडलीय पशु चिकित्सा अधिकारी अनिल चौहान ने बताया कि चौमुर्थी नसल हिमाचल की एकमात्र घोड़े की पंजीकृत नस्ल है. इसकी खासियत है कि आराम से पहाड़ों पर चल सकता है. इसे शीत मरुस्थल का जहाज भी कहा जाता है, जहां ऑक्सीजन की कमी रहती है वहां आराम से सामान एवं सवारी उठता है. इसके मुंह का सामने वाला हिस्सा उभरा हुआ रहता है. पहाड़ियों और विकट रास्तों पर सवारी को आराम से बिना थके ले जाता है, जहां बर्फ में दूसरे घोड़े नहीं चल पाते वहां यह आराम से सवारी उठा सकता है.

तिब्बत बॉर्डर नमगया पंचायत के खाब गांव के अमि चंद नेगी ने बताया कि पहले जब भारत तिब्बत व्यापार होता था, तब वे तिब्बत से घोड़े लाते थे. उन्होंने बताया कि चौमुर्थी नस्ल पहले तिब्बत में थी. वहां से भारत के पिन घाटी लाया गया. इस नस्ल का पिन घाटी में विस्तार हुआ है. हिमाचल सरकार  के पशुपालन विभाग का लरी नामक स्थान में प्रजनन केंद्र भी है. उन्होंने बताया कि चौमुर्थी को कम चारे में भी आसानी से पाला जा सकता है. सेना के पशु चिकित्सक शशांक ने बताया कि चौमूर्ति नस्ल यहां के वातावरण के हिसाब से सबसे उपयुक्त भार उठाने वाला पशु है. 

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