तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने के आदेश की मुस्लिम धर्मगुरु ने की सराहना, अधिवक्ता इब्राहिम हुसैन ने की ये मांग
Advertisement
trendingNow,recommendedStories0/zeesalaam/zeesalaam2331947

तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने के आदेश की मुस्लिम धर्मगुरु ने की सराहना, अधिवक्ता इब्राहिम हुसैन ने की ये मांग

Maintenance Allowance for divorced Muslim woman​: देश के सर्वोच्च न्यायालय ने 10 जुलाई को एक मुस्लिम पति के एक याचिका को ख़ारिज करते हुए ये आदेश दिया है कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपने पूर्व पति से गुज़ारा भत्ता पाने की हकदार है.

तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने के आदेश की मुस्लिम धर्मगुरु ने की सराहना, अधिवक्ता इब्राहिम हुसैन ने की ये मांग

Maintenance Allowance for divorced Muslim woman​: देश के सर्वोच्च न्यायालय ने 10 जुलाई को एक मुस्लिम पति के एक याचिका को ख़ारिज करते हुए ये आदेश दिया है कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपने पूर्व पति से गुज़ारा भत्ता पाने की हकदार है. सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश ने खूब सुर्खियां बटोरीं. अब अलीगढ़ के मुस्लिम धर्मगुरु व अधिवक्ता इब्राहिम हुसैन ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को लेटर लिखकर आभार जताया है. साथ ही उन्होंने मुस्लिम क्रिमिनल लॉ ( Muslim Criminal Law ) में क्रिमिनल एलिमेंट जोड़ने की भी मांग की है.

गुरुवार अधिवक्ता इब्राहिम हुसैन ने सुप्रीम कोर्ट को चे चीफ जस्टिस को लिखे लेटर में कहा कि मुस्लिम समाज के लोग नशे में अपनी बीवी को तलाक दे देते थे, इसके बाद बीवी की जिंदगी खराब हो जाती थी. उन्हें गुजारा भत्ता भी नहीं मिल पाता था. इसके कारण उनका जीवन यापन मुश्किल हो जाता था. इसके साथ ही उन्होंने हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को लेटर लिखकर मुस्लिम क्रिमिनल लॉ में क्रिमिनल एलिमेंट जोड़ने की भी मांग की.

क्या है पूरा मामला?
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में बुधवार को बड़ा फैसला सुनाया है. देश की सबसे बड़ी अदालत ने सुनावई दौरान कहा था कि मुस्लिम औरतें भी तलाक के बाद गुजारा भत्ता पाने की हकदार हैं. कोर्ट ने कहा कि CRPc की धारा 125 के तहत सभी मजहबों की तलाकशुदा महिलाएं गुजारा भत्ता के लिए अपील कर सकती हैं. यह फैसला तब आया जब तेलंगाना के एक मुस्लिम पति ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें उसे अपनी पूर्व पत्नी को अंतरिम गुजारा भत्ता के तौर पर दस हजार रुपया देने को कहा गया था.

कोर्ट ने क्या कहा था?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, "महिलाओं को भरण-पोषण देना दान का मामला नहीं है, बल्कि यह शादीशुदा महिलाओं का मौलिक अधिकार है. यह ऐसा अधिकार है, जो भारत में सेक्युलर और धार्मिक सीमाओं से परे है. यह ऐसा अधिकार है, जो सभी शादीशुदा महिलाओं के लिए लैंगिक समानता और वित्तीय सुरक्षा के सिद्धांत को और मजबूत करता है."

जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा, "अब वक्त आ गया है कि भारतीय पुरुष अपनी पत्नियों के त्याग को पहचानें. बैंक में उनके संयुक्त खाते खोलें. एटीएम तक उनकी पहुंच बढ़ाएं. कुछ पति इस बात से अनजान हैं कि उनकी गृहिणी पत्नी भावनात्मक रूप से और अन्य तरीकों से उन पर निर्भर है. पति के लिए यह अहम है कि वह अपनी पत्नी को नियमित रूप से वित्तीय सहायता प्रदान करे."

Trending news