NCPR on Madarsa: सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने मदरसों को लेकर जवाब दाखिल किया है. आयोग का कहना है कि बच्चों को क्वालिटी एजुकेशन नहीं मिल पा रही है. पढ़ें पूरी खबर
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NCPR on Madarsa: मदरसा एजुकेशन के खिलाफ NCPCR ने SC में जवाब दाखिल किया है. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में मदरसे में मिलने वाली एजुकेशन का विरोध किया है. आयोग का कहना है कि मदरसे में स्टूडेंट्स को क्वालिटी एजुकेशन नहीं मिल पा रही है और मदरसे जरूरी माहौल और सुविधाएं देने में असमर्थ हैं. मदरसों की वजह से बच्चे अच्छी एजुकेशन से वंचित हो रहे हैं.
एनसीपीआर ने कहा कि मदरसे में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स को न तो अच्छी एजुकेशन मिल पा पही है और न ही वह माहौल मिल पा रहा है जो उनके ओवर ऑल डेवलपमेंट के लिए जरूरी है. आयोग ने कहा कि मदरसे क्योंकि राइट टू एजुकेशन एक्ट के तहत नहीं आते हैं, इसलिए इनमें पढ़ने वाले बच्चों को फॉर्मल एजुकेशन से वंचित होना पड़ रहा है. इसके साथ ही उन्हें राइट टू एजुकेशन के तहत मिलने वाले फायदे भी नहीं मिलते हैं.
आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि इन स्टूडेंट्स को न तो यूनिफॉर्म और न ही मिड डे मील मिलता है. राइट टू एजुकेशन के तहत यह राज्य की जिम्मेदारी है कि वह 6 से 14 साल के हर बच्चे को मुफ्त एजुकेशन मुहैया कराए. लेकिन, मदरसों में स्टूडेंट्ल इस मौलिक अधिकार से वंचित हो रहे हैं.
इसके साथ ही आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के सामने फंडिंग में ट्रांसपिरेंसी और टीचर्स की एजुकेशन का भी मुद्दा उठाया और कहा कि वहां बच्चों को एक्सट्राकैरिकुलर एक्टिविटी नहीं कराई जाती है और केवल धार्मिक शिक्षा पर ही फोकस किया जाता है. मुख्य धारा की शिक्षा में उनका योगदान काफी कम होता है.
आयोग ने कहा कि मदरसों में टीचर्स की नियुक्ति मैनेजमेंट के जरिए की जाती है. कुछ मामलों में देखा गया है कि टीचर्स के पास शैक्षणिक योग्यता की कमी होती है. नियुक्ति की योग्यता कुरान और धार्मिक ग्रंथों से मापी जाती है. कुछ मदरसों में गैरमुस्लिमों को भी इस्लाम धर्म की शिक्षा दी जा रही है जो आर्टिकल 28(3) का उल्लंघन है.
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने अपने जवाब में देवबंद में मौजूद दारुल उलूम मदरसे की वेबसाइट पर मौजूद कई आपत्तिजनक कंटेंट का हवाला दिया है. कमीशन के मुताबिक दारुल उलूम की वेबसाइट पर एक नाबालिग लड़की साथ रिलेशन को लेकर फतवा दिया गया था, जो केवल भ्रामक है, बल्कि पॉक्सो एक्ट का हनन है.