भारत की राजनीति, साहित्य और विज्ञान के क्षेत्र में मुसलमानों ने दिया है ये अहम् योगदान
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भारत की राजनीति, साहित्य और विज्ञान के क्षेत्र में मुसलमानों ने दिया है ये अहम् योगदान

भारतीय सभ्यता और भारत की सांस्कृतिक विविधता का एक अभिन्न हिस्सा मुस्लिम समुदाय रहा है जिसने  भारत के विकास में एक गहरी छाप छोड़ी है.  फिर चाहे राजनीति हो या साहित्य इस समुदाय ने लगभग हर फिल्ड में अपना अदि्तीय योगदान दिया और दे रहें हैं. पढ़े ये खास स्टडी

भारत की राजनीति, साहित्य और विज्ञान के क्षेत्र में मुसलमानों ने दिया है ये अहम् योगदान

कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक  3,214 किलोमीटर के अपने विस्तार में शान से दुनिया के आगे खड़े भारत का जब भी जिक्र उठता है तो भारतीय मुस्लिम का योगदान नकारा नहीं जा सकता है.  भारतीय सभ्यता और भारत की सांस्कृतिक विविधता का एक अभिन्न हिस्सा, मुस्लिम समुदाय ने भारत के विकास में एक गहरी छाप छोड़ी है.  फिर चाहे राजनीति हो या साहित्य इस समुदाय ने लगभग हर फिल्ड में अपना अदि्तीय योगदान दिया और दे रहें हैं. मुस्लिम विद्वान ने अलग अलग फील्ड में अपनी खास छाप छोड़ी है.  मौलाना आज़ाद, बख्त खान, गफ्फार खान से लेकर अमीर खुसरो, मालिक मुहम्मद जायसी, रहीमदास, उस्ताद ज़ाकिर हुसैन, मोहमद रफ़ी, रहमान, ज़हीर खान, सानिया मिर्ज़ा, शहीद अब्दुल हामिद तक, सबने हमेशा इस देश का सर गर्व से ऊँचा किया है.

हिंदी साहित्यिक में मुस्लिम योगदान
हिन्दी साहित्य के शुरुआत का इतिहास लगभग हजार ईसवी के आस पास का माना जाता है. इस काल में हिन्दी के दो महत्वपूर्ण मुस्लिम रचनाकार देखे जा सकते हैं- अब्दुर्हमान और अमीर खुसरो. ये वे दो नाम हैं जो भारतीय साहित्य के इतिहास में सबसे अहम भूमिका रखते हैं.  अब्दुर्रहमान की रचना संदेशरासक विरह काव्य के रूप में प्रसिद्ध है. इनकी भाषा में अपभ्रंश साफ दिखता है. इसका कारण है कि भारत में मुस्लिम राज की स्थापना के पूर्व ही बहुत से सूफी और व्यापारी यहां पर बस गए थे. अब्दुर्रहमान उसी परंपरा से थे, इसलिए उनकी भाषा में अपभ्रंश का अंश भौजूद है.

अमीर खुसरो ने तो कई बादशाहों का शासन देखा. अमीर खुसरो को उन्हें खुद के हिन्दुस्तानी होने पर गर्व था. जो  खड़ी बोली हिन्दी में आज प्रचलित है, इतिहास में सिर्फ अमीर खुसरो ही हैं जिनकी भाषा आज की भाषा से मेल खाती है. इसके बाद मध्यकाल तक आते आते मुस्लिम रचनाकारों की बाढ़ सी आ गई. उनकी रचनाओं में हिंदुस्तान की मिट्टी की सोंधी खुशबू दिखाई देती थी.
एक तरफ अती का विरोध करते जायसी  दिखते हैं तो दूसरी तरफ कबीर सभी तरह की सत्ताओं को नकार कर एक समन्वय वाले समाज की हिमायत करते नजर आते हैं. मध्यकाल में कबीर, जायसी, रहीम, रसखान भक्ति और सूफी मत के विचारों से प्रेरित होकर आमजन के बीच अपने ज्ञान को उड़ेलते दिखते हैं. इसके बाद आधुनिक काल में राही मासूम रजा, शानी, महरुन्निसा परवेज, शकील सिद्दीकी, असगर वजाहत, अब्दुल बिस्मिल्लाह, मंजूर एहतेराम जैसे रचनाकारों से कौन साहित्य प्रेमी परिचित नहीं है. साहित्य के फिल्ड में मुस्लिम समुदाय की मजबूत नींव भारत की गंगा-जमुनी तहजीब को बड़े प्यार से सामने लाता है और भारत की एकता और अखंडता पर अपनी मुहर लगाता है.

मुस्लिम वैज्ञानिकों का योगदान:
भारतीय विज्ञान में मुस्लिम समुदाय का योगदान किसी से छुपा नहीं है. देश में Ballistic Missiles और टेक्नोलॉजी को सक्सेफुली इंडीपेंडेंट बनाने के बाद से लेकर चंद्रयान-3 की सफल लांचिग तक आपको मुस्लिम चेहरों की एक लंबी चौड़ी फेहरिस्त मिल जाती है.
आज़ादी के शुरुआती दिनों में, सर सय्यद अहमद ख़ान, ए.पी. जे अब्दुल कलाम, और हकीम अब्दुल हमीद जैसे वैज्ञानिकों से लेकर 2023 में अरीब अहमद, अख्तर अब्बास, इशरत जमाल, सना फिरोज , यासर अम्मार, मोहम्मद साबिर आलम, खूशबू मिर्जा ये कुछ ऐसे नाम हैं जिसे हर हिन्दुस्तानी जानता है. ए. पी. जे अब्दुल कलाम भारतीय विज्ञान में वो नाम है जिन्हे भारत के राष्ट्रपति होने का भी गौरव प्राप्त है और जिसे मिसाइल मैन के रुप में पूरा देश प्यार करता है.  

भारतीय राजनीति और मुस्लिम नेता
ब्रिटिश साम्राज्य के ख़िलाफ़ सड़कों पर लड़ने वाले सैकड़ों और हज़ारों भारतीय मुसलमानों के नाम गिनाना तो लगभग असंभव ही है लेकिन कुछ चुंनिदा नाम ऐसे हैं जिन नेताओं का नाम ना लेना बेमानी ही होगी. 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस INC की स्थापना के दो साल के अंदर, बॉम्बे के बदरुद्दीन तैयबजी इसके अध्यक्ष बने बदरुद्दीन और उनके भाई कमरुद्दीन तैयबजी दोनों कांग्रेस की स्थापना में गहराई से शामिल हुए थे और 1885 में पहली कांग्रेस बैठक के लिए चुने गए चार मुस्लिम प्रतिनिधियों में से थे. पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव भी पहली बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1921 के अहमदाबाद अधिवेशन में मौलाना हसरत मोहनियाल ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के स्वामी कुमारानंद के साथ पेश किया था. आजादी के लिए लड़ रहे कांग्रेस के अंदर भी ‘महान व्यक्तित्व’ जैसे खान अब्दुल गफ्फार खान जैसे सच्चे मुस्लिम नेताओं की कोई कमी नहीं थी. इसके अलावा मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने तो  35 साल की उम्र में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे कम उम्र के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया था. भारत की स्वतंत्रता के लिए हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के सदस्य के रूप में अपना जीवन त्यागने वाले शहीद अशफाकउल्लाह खान की कुर्बानी से भी भारत का क्रांतिकारी आंदोलन प्रेरित हुआ.  भारत में  साल 1947, 1966, 1972 में शिक्षा मंत्री, 1966 में विदेश मंत्री, 1989 में गृह मंत्री मुस्लिम रहे हैं. इसके अलावा 1967, 1974, 2002 में राष्ट्रपति भी मुस्लिम रहे हैं.

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