Hezbollah-Israel Enmity: नया नहीं इजराइल का पुराना दुश्मन है हिजबुल्लाह, लेबनान में कभी जमने नहीं दिए पैर
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Hezbollah-Israel Enmity: नया नहीं इजराइल का पुराना दुश्मन है हिजबुल्लाह, लेबनान में कभी जमने नहीं दिए पैर

Hezbollah-Israel Enmity: इजराइल और हिजबुल्लाह की पुरानी दुश्मनी है. लेबनान में मौजूद संगठन ईजराइल से कई बार लड़ चुका है और हर बार आईडीएफ यानी इजरायली डिफेंस फोर्स को पीछे हटना पड़ा है.

Hezbollah-Israel Enmity: नया नहीं इजराइल का पुराना दुश्मन है हिजबुल्लाह, लेबनान में कभी जमने नहीं दिए पैर

Hezbollah-Israel Enmity: साल 1982 तारीख 6 जून...पहली बार इजरायली डिफेंस फोर्स ने साउथ लेबनान में आक्रमण शुरू किया. यह आक्रमण दक्षिणी लेबनान में सक्रिय फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन और आईडीएफ के बीच हमलों और जवाबी हमलों की सीरीज के बाद शुरू हुआ, जिसकी वजह से भारी तादाद में आम लोगों की जान गई. इस आक्रमण के विरोध में एक संगठन का जन्म हुआ, जिसका नाम था हिजबुल्लाह. हिजबुल्लाह एक अरबी शब्द है जिसका मतलब 'खुदा का दल' है. क्रांतिकारी दल के तौर पर शुरू हुआ हिजबुल्लाह अब एक लेबनीज शिया पॉलिटिकल पार्टी है, जिसका नेतृत्व 1992 से सैय्यद हसन नसरल्ला करते आए हैं.

क्या है हिजबुल्लाह का इतिहास?

1982 में लेबनान वॉर के दौरान बने हिजबुल्लाह संगठन की स्थापना  Subhi al-Tufayli और Sayyed Abbas Al-Musawi ने की थी. हिजबुल्लाह के ये दोनों संस्थापक खुमैनी के अनुयायी थी, ऐसे में इस संगठन का नाम अयातुल्ला खुमैनी के कहने पर 'हिजबुल्लाह' रखा गया. ईरान के जरिए बनाए गए इस संगठन का मकसद लेबनान में इजराइली आक्रमण को रोकना था. 

कैसे मजबूत हुआ संगठन

संगठन तो बन गया, लेकिन अब सवाल आया कि आखिर लड़ाकों को कैसे ट्र्रेन किया जाए? ऐसे में 1,500 रिवोल्यूशनरी गार्ड्स की एक टुकड़ी के जरिए इन्हें ट्रेनिंग दी गई. उस दौरान की सीरिया सरकार की इजाजत से ईरान में इनकी ट्रेनिंग हुई. इस संगठन को और मजबूत बनाने के लिए कई शिया ग्रुप्स को धीरे-धीरे संगठन में शामिल किया गया. हिजबुल्लाह ने लेबनानी गृहयुद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. सन 1982 से सन 1983 के बीच अमेरिकी सेना का विरोध किया और फिर सन 1985 से सन 1988 के कैंप युद्ध के दौरान अमल और सीरिया का भी विरोध किया. हालांकि, हिजबुल्लाह का पूरा ध्यान इज़राइल के 1982 के आक्रमण और बेरूत की घेराबंदी के बाद दक्षिणी लेबनान पर इज़राइल के कब्जे को खत्म करना था.

अपनाई ये खास युद्ध तकनीक

हिजबुल्लाह ने इज़राइल से लड़ने के लिए खास वॉर तकनीक का इस्तेमाल किया. संगठन ने लेबनान के बाहर इजरायली ठिकानों के खिलाफ आत्मघाती हमलों का इस्तेमाल करके एक एसमिट्रिक वॉर छेड़ दिया. हिजबुल्लाह ने आत्मघाती बमबारी, हत्या और विदेशी सैनिकों को पकड़ने के साथ-साथ हत्याओं और अपहरण की रणनीति का इस्तेमाल किया. इसके साथ ही हिजबुल्लाह अपनी ताकत बढ़ाता रहा. 1990 में लेबनानी गृह युद्ध खत्म हुआ और और उस समय लीबिया को कंट्रोल करने वाले सीरिया सरकार ने हिजबुल्ला को शिया इलाकों को कंट्रोल करने की इजाजत दे दी.

संगठन में बदलाव

सिविल वॉर खत्म होने के बाद हिजबुल्लाह ने रिवॉल्यूशनरी ग्रुप को एक सियासी संगठन में बदलने का फैसला किया. सन 1992 में हिजबुल्लाह ने पहली बार चुनाव में हिस्सा लिया और ईरान के टॉप लीडर अली खामेनेई ने इसा समर्थन किया. संगठन में इस फैसले से काफी लोग नाराज थे. पूर्व महासचिल अल-तुफ़ायली ने इस फैसले का विरोध किया और हिजबुल्लाह में फूट पड़ गई, लेकिन पार्टी ने सभी 12 सीटों पर जीत हासिल कर ली.

2006 इजराइल-लेबनान वॉर

साल 2006 में दूसरा लेबनान वॉर छिड़ गया, जिसे इजरायल-हिजबुल्लाह वॉर भी कहा जा सकता है. गोलान की ऊंचाई पर 12 जुलाई 2006 को शुरू हुआ ये वॉर- 8 सितंबर 2006 में खत्म हुआ. इजराइलियों को हार माननी पड़ी और लेबनान से अपनी सैनिक नाकाबंदी को हटाना पड़ा. यही वजह है हिजबुल्लाह को इजराइल का पुराना और घातक दुश्मन माना जाता है.

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