बिना खर्च के ही लौट जाता है, अल्पसंख्यकों के कल्याण वाला बजट का पैसा; मुस्लिम करेंगे ये काम
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बिना खर्च के ही लौट जाता है, अल्पसंख्यकों के कल्याण वाला बजट का पैसा; मुस्लिम करेंगे ये काम

असम सरकार ने इस साल अपने बजट में मुसलमानों की पांच अत्यंत पिछड़ी जातियों के उत्थान के लिए बजट में 162. 5 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है. इसके बावजूद लोग खुश होने के बजाए इसे अपने साथ एक धोखा मान रहे हैं. 

गोरिया जातीय परिषद की बैठक

गुवाहाटीः सरकार मुस्लिम अल्पसंख्यक समाज के उत्थान के लिए बजट में अलग से व्यवस्था करती रही है, लेकिन वह पैसे खर्च नहीं होते हैं और वापस लौट जाते हैं. केंद्र सरकार के बजट से लेकर राज्य सरकारों तक के बजट का यही हाल है. केंद्र सरकार हर साल स्कूली मुस्लिम छात्रों के लिए सालाना सैंकड़ों करोड़ के बजट का प्रावधान करती रही है, लेकिन छात्रों तक ये बजट नहीं पहुंच पाता है और बजट का अधिकांश पैसा वापस लौट जाता है. ताजा मामला असम का है, जहां सरकार ने मुस्लिम समुदाय के पांच जनजातियों लिए 162.50 करोड़ रुपए बजट का प्रावधान किया है. 
खास बात यह है कि इस प्रावधान के बाद से ही वह पांचों जातियां सरकार से नाराज हो गई है. उनका कहना है कि सरकार ने पिछले बजट में भी 100 करोड़ का प्रावधान किया था, लेकिन उस बजट का एक रुपया भी उन जातियों के कल्याण के लिए खर्च नहीं हुआ और वह सारा पैसे वित्तीय साल की समाप्ति के बाद वापस लौट गया.  

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एडवोकेट मीर आरिफ इकबाल हुसैन, सदो आसाम गोरिया जातीय परिषद के सद्र 

100 करोड़ का प्रावधान किया, खर्च नहीं हुआ एक रुपया 
सरकार ने जिन पांच मुस्लिम जातियों के लिए बजट में 162.5 करोड़ का प्रावधान किया है, उनमें गोरिया, मोरिया ,देसी, जुलाहा, और सैयद जाति के लोग शामिल हैं. सरकार के इस घोषणा के बाद से इन मुस्लिम समाज और संगठन के लोग जगह-जगह मीटिंग कर रहे हैं. असम के जनजाति मुस्लिम संगठन सदो असाम गोरिया जातीय परिषद के सदर एडवोकेट मीर आरिफ इकबाल हुसैन बताते हैं, "इससे पहले वाली भाजपा की सरकार में भी मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने इन जातियों के लिए बजट में 100 करोड़ का प्रावधान किया था, लेकिन उस बजग का एक पैसा भी हमारे समाज पर खर्च नहीं किया गया.’’ 

पैसे खर्च हां इसके लिए बैठक कर रहे हैं लोग 
मीर आरिफ इकबाल हुसैन ने कहा, "पिछले अनुभवों से सबक लेते हुए अब इस समाज के लोग थोड़ सतर्क हुए हैं. हम लोग इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि ये पैसा कहां, कब और कैसे खर्च होगा ?’’ गोरिया जातीय परिषद यह मांग कर रही है कि पहले सरकार यहां जातीय जनगणना करवाएं कि किसी जाति के कितने लोग हैं. इसके बाद ही उनपर यह पैसा खर्च हो. इससे हर जाति का उनकी आबादी के हिसाब से बजट मिलेगा तो उनका उत्थान होगा. नहीं, तो पैसे ऐसे ही पिछले साल की तरह बिना खर्च के लौट जाएंगे. 

पांच जातियां मांग रही है ओबीसी का दर्जा 
गोरिया जातीय परिषद के सदर एडवोकेट मीर आरिफ इकबाल हुसैन ने बताया कि सरकार इन पांच जातियों को जनजाति मुस्लिम तो मानती है, लेकिन इसे अब तक न जनजाति और न ही ओबीसी का दर्जा दिया गया है. उन्हें कोई सरकारी लाभ नहीं मिलता है. मीर आरिफ इकबाल ने कहा कि हम इस वजह से सरकार को शुक्रिया अदा करते हैं कि हमारे भलाई के लिए 162 करोड़ रुपये बजट में रखा गया है. लेकिन सरकार को यह भी ध्यान रखाना होगा कि ये सिर्फ कागजी घोषणा बनकर न रह जाए, इसलिए सरकार इन जातियों का सर्वे कराए और फिर बजट की रकम उनपर खर्च करने के लिए ठोस रणनीति तैयार करे. 

:- गुवाहाटी से शरीफ उद्दीन अहमद की रिपोर्ट 

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