मज़हबी मामलों में अदालत किस हद तक दे सकती है दख़ल? आयनी बैंच आज से करेगी समाअत
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मज़हबी मामलों में अदालत किस हद तक दे सकती है दख़ल? आयनी बैंच आज से करेगी समाअत

सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की खवातीन के दाखिले और मुस्लिम व पारसी खवातीन से इम्तियाज़ के मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की अयनू बैंच आज से समाअत शुरू करेगी. 

मज़हबी मामलों में अदालत किस हद तक दे सकती है दख़ल? आयनी बैंच आज से करेगी समाअत

नई दिल्ली: सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की खवातीन के दाखिले और मुस्लिम व पारसी खवातीन से इम्तियाज़ के मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की अयनू बैंच आज से समाअत शुरू करेगी. साथ ही समाअत में मज़हबी मुकामात में खवातीन के दाखिले पर पाबंदी और मज़हब का अटूट हिस्सा बताने वाली मज़हबी रसूमात के अयनी पहलू पर ग़ौर होगा. 9 जजों की अयनी बैंच में चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस आर. भानुमति, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एल. नागेश्वर राव, जस्टिस एमएम शांतनागौदर, जस्टिस एसए नजीर, जस्टिस सुभाष रेड्डी, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्य कांत शामिल हैं. इस अयनी बैंच का कोई भी रकुन पहला की बैंच में शामिल नहीं था.

आपको बता दें कि वकीलों की एक तंज़ीम ने अर्ज़ी दाखिल कर सभी उम्र की खवातीन को सबरीमाला मंदिर में दाखिल दिए जाने से मुताअल्लिक 28 सितंबर 2018 तारीख़ी फैसले पर गौर करने की गुज़रिश की है. गुज़िश्ता साल 14 नवंबर को पांच रुकनी अयनी बैंच ने वर्ष 2018 में 3:2 की अक्सरियत से सुनाए गए सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की खवातीन के दाखले से मुताअल्लिक फैसले को सात रुकनी बैंच के सामने भेज दिया था ..हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मज़हबी मुकामात में खवातीन के दाखले पर पाबंदी पर छिड़ी बहस सिर्फ सबरीमाला मंदिर तक ही महदूद नहीं है. अदालते उज़्मा ने कहा था कि ऐसी पाबंदियँ दूसरे मज़ाहिब में भी हैं.

गौरतलब है कि साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की ही अयनी बैंच ने खवातीन के हक़ में फैसला सुनाया. इस बैंच में चार जज खवातीन को दाखला देने की हिमायत में थे, जबकि बेंच की इकलौती खातून जज इंदु मल्होत्रा खवातीन को न जाने देने की हिमायत में थीं. उनका कहना था कि मज़हबी मामलों में अदालत को दख़ल नहीं देना चाहिए. वहीं खवातीन को इजाज़त देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया, हमारी सकाफत में माँ का एक अच्छा मुकाम दिया गया है. यहां खवातीन को देवी की तरह पूजा जाता है. मंदिर में उन्हें दाखले से रोका जाए, इसे कबूल नहीं किया जा सकता है.

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