कोरोना वैक्सीन बनी तो पूरी दुनिया तक पहुंचाने में लगेंगे इतने साल, इन मुश्किलों का करना होगा सामना
Advertisement
trendingNow,recommendedStories0/zeesalaam/zeesalaam797875

कोरोना वैक्सीन बनी तो पूरी दुनिया तक पहुंचाने में लगेंगे इतने साल, इन मुश्किलों का करना होगा सामना

इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (IATA) ने सोशल मीडिया पर की गई अपनी पोस्ट में बताया है कि 110 टन सलाहियत वाले बोइंग-747 तैय्यारों को तक़रीबन 8,000 बार आवाजाही करनी होगी,

फाइल फोटो

नई दिल्ली/सतेंद्र वाजपेयी: 2020 के आगाज़ से ही कोरोना वायरस को मात देने के लिए पूरी दुनिया वैक्सीन बनाने में जद्दोज़हद कर रही है लेकिन बहुत से तरक़्क़ीयाफ़्ता मुल्क इसमें नाकाम रहे हैं कोई मुल्क वैक्सीन के दूसरे ट्रायल में नाकामयाब हुआ, तो कोई वैक्सीन के तीसरे ट्रायल में. इसी फहरिस्त में हिंदुस्तान भी लगातार वैक्सीन बनाने पर काम कर रहा है वो भी कई बार नाकाम हुआ लेकिन हिंदुस्तानी साइंटिस्ट व डॉक्टर्स इस नाकामयाबी को कामयाबी में बदलने के लिए लगातार मेहनत कर रहे हैं और कहीं ना कहीं अब हिंदुस्तानी डॉक्टर्स इसमें कामयाब होते नज़र आ रहे हैं क्योंकि हाल ही में सीरम इंसीट्यूट की कोरोना वैक्सीन अपने फाइनल ट्रायल में पहुंच चुकी है जिसका वज़ीरे आज़म नरेंद्र मोदी ने जायजा लिया था.

यह भी पढ़ें: भाग्यनगर होगा हैदराबाद? आखिर क्यों उठा रही है भाजपा यह मुद्दा, जानिए क्या है इतिहास?

अब ये तो थी कोरोना वैक्सीन के बनने की बात. अगर कोरोना वायरस के लिए वैक्सीन बन जाए तो ये तक़रीबन 7 अरब वाली दुनिया में पहुंचाना आसान नहीं होगा. ये पूरी दुनिया के लिए बहुत बड़ी चुनौती साबित होगी, जिसे पूरा करने के लिए 110 टन सलाहियत वाले जम्बो जेट्स के 8000 फेरों की जरूरत होगी. 14 अरब डोज लोगों तक पहुंचाने का ये सिलसिला तकरीबन दो साल तक चलेगा. वैक्सीन की डिलीवरी के लिए सिर्फ तैय्यारों की ज़रूरत नहीं होगी, बल्कि कार, बस, ट्रक और यहां तक कि मोटरसाइकिल, साइकिल की भी मदद लेनी पडे़गी. कुछ इलाकों में तो पैदल ही यह वैक्सीन लेकर जाना होगा.

यह भी पढ़ें: "मैं हिंदू हूं और हिंदू ही रहना चाहती हूं, ससुराल वाले उर्दू-अरबी सीखने का दबाव बनाते हैं"

इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (IATA) ने सोशल मीडिया पर की गई अपनी पोस्ट में बताया है कि 110 टन सलाहियत वाले बोइंग-747 तैय्यारों को तक़रीबन 8,000 बार आवाजाही करनी होगी, तब कहीं जाकर ये वैक्सीन सब लोगों तक पहुंच पाएगी. इसके अलावा टेम्परेचर कंट्रोल और दूसरी जरूरतों का भी खुसूसी ख़्याल रखना होगा. जिसमें खासकर फाइजर के वैक्सीन के लिए, जिसे UK और US के साथ-साथ यूरोपीय यूनियन के दीगर मुल्कों में सबसे पहले अप्रूवल मिलने की उम्मीद है. इस वैक्सीन को 6 महीने तक सेफ और इफेक्टिव रखने के लिए -70 डिग्री सेल्सियस टेम्प्रेचर में रखना होगा. IATA के चीफ एलेक्जांद्रे डी जुनियाक का कहना है,"यह दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे जटिल लॉजिस्टिक एक्सरसाइज रहने वाली है. जिसको लेकर पूरी दुनिया की नजरें अब हम पर हैं."

यह भी पढ़ें: कंगना ने किसान आंदोलन की शाहीन बाग से तुलना की तो सिंगर जस्सी ने दिया ये जवाब

लुफ्थांसा ने अप्रैल में शुरू कर दी थी इसकी तैयारी
लुफ्थांसा में इस टास्क फोर्स के चीफ़ थॉर्टन ब्रॉन ने बताया कि, 'हमारे सामने सलाहियत को बढ़ाने का टास्क है' वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) में इम्युनाइजेशन चीफ कैथरीन ओ'ब्रायन ने गुज़िश्ता हफ्ते में कहा था कि वैक्सीन डिलीवरी करना माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई करने से भी मुश्किल काम है. महीनों की मेहनत के बाद वैक्सीन बना लेना यानी सिर्फ एवरेस्ट के बेस कैम्प तक पहुंचना ही है.

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के सबसे बड़े कार्गो कैरियर्स में से एक लुफ्थांसा ने अप्रैल से ही वैक्सीन डिलीवरी के प्लान पर काम करना शुरू कर दिया था. 20 लोगों का टास्क फोर्स बनाया ताकि मॉडर्ना, फाइजर या एस्ट्राजेनेका के वैक्सीन को दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचाया जा सके. टास्क फोर्स के सामने सवाल थे कि एयरलाइन के 15 बोइंग 777 और MD-11 माल ले जाने वाले तैय्यारों में जगह कैसे बनाई जाए? 25% सलाहियत के साथ परवाज़ भर रहे मुसाफ़िर तैय्यारों के बेड़े में क्या तब्दीली की जाए?

यह 5 चुनौतियां रहेंगी लॉजिस्टिक्स में

1. गरीबों तक वैक्सीन पहुंचानाः कंपनी की प्रोडक्शन यूनिट से किसी बड़े अस्पताल या शहर में वैक्सीन डोज पहुंचाना बहुत आसान है लेकिन तरक़्क़ीयाफ़्ता और गरीब मुल्कों में ये काम बहुत मुश्किल होगा. क्योंकि गांवों और छोटे शहरों में इंफ्रास्ट्रक्चर न के बराबर है. यूनिसेफ ने नवंबर में ही 40 कैरियर्स को दुनिया के 92 गरीब मुल्कों तक वैक्सीन पहुंचाने का खाका बनाकर देने को कहा है. एजेंसी की कोशिश दुनिया की 70 फीसद आबादी को वैक्सीन कवरेज में लाना है.

2. डीप फ्रीजः फाइजर-बायोएनटेक के वैक्सीन को -70 डिग्री टेम्प्रेचर पर ट्रांसपोर्ट करना होगा. यह अंटार्कटिका की सर्दियों के टेम्प्रेचर से भी कम है. कंपनियों ने GPS-इनेबल्ड थर्मल सेंसर का इस्तेमाल करने की स्कीम बनाई है ताकि वैक्सीन शिपमेंट की लोकेशन और टेम्प्रेचर को ट्रैक कर सकें. जमीन पर वैक्सीन को अल्ट्रा-लो टेम्प्रेचर के फ्रीजर्स में रखना होगा, तब इनका इस्तेमाल 6 महीने तक किया जा सकेगा. फिलहाल तो किसी भी एयरक्राफ्ट में इतना ठंडा रखने की व्यवस्था नहीं है.

3. कार्गो की सलाहियत: इस वक़्त 2,000 माल ले जाने के लिए तैय्यारों का इस्तेमाल हो रहा है. दुनिया में जितनी भी माल की आवाजाही हवा से होती है, उसका आधा माल ये ही इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट करते हैं. बचा हुआ माल 22,000 रेगुलर तैय्यारों से जाता है. माल तैय्यारे तो काम कर रहे हैं, पर इन रेगुलर तैय्यारों के न चलने से एयर-कार्गो वॉल्यूम इस साल काफी नीचे आ गया है.

4. स्टोरेजः प-फ्रीज की सहूलियत हर मुल्क की मेट्रो सिटीज़ में आसानी से मिल जाती है और यूनाइटेड पार्सल सर्विसेस के पास 600 डीप फ्रीजर हैं जहां वैक्सीन के 48,000 डोज स्टोर किए जा सकते हैं. फेडएक्स कॉर्प ने अपने कोल्ड-चेन नेटवर्क में फ्रीजर्स और रेफ्रिजरेटेड ट्रक्स की तादाद में काफी इज़ाफ़ा किया है.

5. अनस्टेबल वैक्सीनः दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन मेकर सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के CEO अदार पूनावाला कहते हैं कि आपके पास हर जगह डीप-फ्रीजर नहीं हैं. यह फ्रोजन वैक्सीन बहुत ही अनस्टेबल है. डेवलपर्स को उन्हें स्टेबलाइज करने पर काम करना होगा. सीरम इंस्टिट्यूट ने पांच डेवलपर्स से करार किया है.

Zee Salaam LIVE TV

Trending news