इन याचिकाओं पर अदालत ने 27 जनवरी को सुनवाई पूरी की थी और फैसला महफूज रख लिया था. इसके बाद शुक्रवार को यह फैसला सुनाया गया है.
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गुवाहाटी: असम में अब जल्द ही सरकार से सहायता प्राप्त मदरसे स्कूल में बदल जाएंगे. गुवाहाटी हाई (Guwahati High Court) कोर्ट ने हाल ही में अपने एक फैसले में कहा है कि राज्य में वो मदरसे जो सरकारी मदद से चलते हैं वह अल्पसंख्यकों की तरफ से बनाए गए संस्थान नहीं हैं.
अदालत ने मदरसों (Madarsa) को स्कूल में तबदील करने के लिए लाए गए कानून के खिलाफ दायर अर्जियों को भी खारिज कर दिया है. गुवाहाटी हाई कोर्ट के मुताबिक राज्य की विधाई और कार्यकारी कार्यवाही के जरिए किया गया परिवर्तन सिर्फ प्रांतीय मदरसों के लिए है. यह परिवर्तन सरकारी सकूल के लिए हैं निजी मदरसों के लिए नहीं है.
मुख्य न्यायाधीश सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति सौमित्र सैकिया ने पिछले साल 13 लोगों की तरफ से दायर असम निरसन विधेयक-2020 की वैधता को चुनौती देने वाली एक रिट याचिका को खारिज कर दिया है. अदालत ने कहा कि "हमारे जैसे बहु-धार्मिक समाज में किसी एक धर्म को राज्य की तरफ से दी गई अहमियत, भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के सिद्धांत को खारिज करती है. यह राज्य की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति है जिसके लिए अनिवार्य है कि पूरी तरह से राज्य के धन से बनाए गए किसी भी शैक्षणिक संस्थान में कोई भी मजहबी हिदायत नहीं दी जाएगी."
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इन याचिकाओं पर अदालत ने 27 जनवरी को सुनवाई पूरी की थी और फैसला महफूज रख लिया था. इसके बाद शुक्रवार को यह फैसला सुनाया गया है.
अदालत के मुताबिक जो उस्ताद मदरसों में पढ़ा रहे हैं उन्हें मदरसों से हटाया नहीं जाएगा. अगर जरूरत होगी तो उन्हें दूसरे सब्जेक्ट को पढ़ाने के लिए ट्रेनिंग दी जाएगी.
ख्याल रहे कि असम विधानसभा ने पिछले साल 30 दिसंबर को एक कानून पारित किया था और सभी सरकारी वित्त पोषित मदरसों को सामान्य स्कूलों में बदलने का आह्वान किया गया था. राज्य सकार ने वादा किया था कि असम निरसन विधेयक-2020 के तहत मदरसों के शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की हालत, तन्ख्वाह, भत्ते और सेवा में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा. इस कानून पर कुछ लोगों ने ऐतराज जताया था और गुवाहाटी हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. उसके बाद अदालत ने अपना फैसला सुनाया है.
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