9 years of Modi government in Center : गुजरात के मशहूर उद्योगपति और मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के पूर्व चांसलर जफर सरेशवाला (Zafar Sareshwala ) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) का बेहद करीबी माना जाता है. मोदी सरकार के 9 साल पूरे होने और उससे अबतक मुस्लिम अल्पसंख्यकों (Muslims Minority) को होने वाले नफा-नुकसान पर उन्होंने जी सलाम के साथ खुलकर चर्चा की है. यहां पेश है उनसे की गई बात-चीत के कुछ खास अंश.
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नई दिल्ली : केंद्र सरकार के 9 साल पूरे होने (9 years of Modi Govt) और उसके काम-काज के मूल्यांकन के सवाल पर गुजरात के मशहूर कारोबारी, उद्योगपति और मुस्लिम लड़कियों के लिए शिक्षा का एक प्रोग्राम 'तालीम-ओ-तरबीयत' चलाने वाले शिक्षाविद् जफर सरेशवाला (Zafar Sareshwala ) कहते हैं, "कोई सरकार अगर अच्छी है, तो वह सभी के लिए अच्छी होगी और बुरी है, तो फिर सभी के लिए बुरी होगी. किसी सरकार के काम का मूल्यांकन मुल्क और समाज के कुछ लोगों की बेहतरी से नहीं लगाया जा सकता है. इसका आकलन पूरे मुल्क और अवाम के संदर्भ में किया जाना चाहिए, क्योंकि सरकार सभी की होती है.
वहीं, भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की समस्याओं और जरूरतों पर जफर सरेशवाला कहते हैं, "देश में अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय या बहुसंख्यक समाज की समस्याएं अलग-अलग नहीं है. दोनों की समस्याएं और जरूरतें लगभग एक जैसी है. अच्छा खाना, अच्छा कपड़ा, अच्छी शिक्षा, अच्छा स्वास्थ्य और रोजगार के मौके हम सभी की बुनियादी जरूरतें हैं. हमारे देश की ज्यादातर आबादी अभी भी इन सुविधाओं से महरूम है, और इसे पाने के लिए वह जद्दोजहद कर रही है. मुल्क में अगर तरक़्क़ी होगी तो यहां रहने वाले पूरे अवाम का फायदा होगा और उनकी जिंदगी बदलेगी."
जफर सरेशवाला ने पिछले 9 साल में मोदी सरकार द्वारा चलाई जा रही कुछ योजनाओं को सरकार का क्रांतिकारी कदम बताया है, और कहा है कि इनसे पूरे मुल्क की अवाम को फायदा पहुंचा है और उनकी जिंदगी बेहद आसान हुई है. उन्होंने कहा कि सरकार की जनधन योजना एक क्रांतिकारी कदम है. पहले बैंकों में खाता खुलवाना बेहद मुश्किल काम होता था. खाता खुलवाने के लिए बैंकों के चक्कर लगाने पड़ते थे. इसके लिए एक जमानतदार की तलाश करनी होती थी. बैंकों में खाता न होने की वजह से लोग सेविंग के पैसे घरों में रखते थे, लेकिन मोदी सरकार के एक स्कीम ने पूरे मुल्क में बैंकिंग का निजाम बदल दिया. आज मुल्क के लगभग 51 करोड़ा लोगों के पास बैंकों में खाते हैं, और उन खातों में लगभग 1. 92 हजार करोड़ रुपये हैं, जो देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का काम कर रहे हैं.
जफर सरेशवाला आगे कहते हैं, 'इस सरकार की दूसरी सबसे अच्छी बात यह है कि सरकार ने अवाम के लिए जो योजनाएं बनाई हैं, उनका फायदा सीधा लाभार्थियों तक पहुंच रहा है. जनधन योजना के तहत बैंकों में खाते होने की वजह से सरकारी स्कीमों का फायदा सीधे उसके हकदार को मिल रहा है. बिचौलिये यहां से खत्म हो गए हैं. अब वृद्धावस्था पेंशन की रकम में से कोई कलर्क या अफसर अपना हिस्सा नहीं मांगता है. मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार पर चोट करने के लिए इस दिशा में एक निहायत ही ठोस और ईमानदार कदम उठाया है, जो तारीफ के लायक है.
उन्होंने स्वच्छता और घरों में शौचालय स्कीम का जिक्र करते हुए कहा कि मुल्क में पिछले 70 सालों में किसी सरकार ने इस दिशा में कोई काम नहीं किया, जबकि यह एक बेहद बुनियादी जरूरतों में से एक है. ये किसी भी मुल्क के लिए एक निहायत ही शर्मनाक बात है कि उस मुल्क की बहू-बेटियां और आधी आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपनी दैनिक जरूरतों के लिए घर के बाहर जाता हो. ऐसे ही उन्होंने किसान निधि, प्रधानमंत्री आवास योजना और उज्जवला योजना का जिक्र करते हुए कहा कि सरकार की ये स्कीमें पूरे देश और समाज के लिए समान रूप से लागू है. इन योजनाओं से समाज के हर तबके को फायदा पहुंच रहा है. इनके लाभार्थियों को हम धर्म, जाति, क्षेत्र, सांप्रदाय और किसी विधारधारा के खांचे में नहीं बांट सकते हैं.
देश में पिछले कुछ सालों में खासकर भाजपा के केंद्र की सत्ता में आने के बाद मुल्क में सांप्रदायिक घटनाओं में इजाफे के सवाल पर जफर सरेशवाला कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि इस तरह की घटनाएं पहले नहीं होती थी. वह पहले भी होती थी, लेकिन अब सांप्रदायिक झड़पों और भेदभाव की हर घटनाएं रिपोर्ट की जा रही. ऐसी घटनाएं दबाई नहीं जा रही है." हालांकि, वह इस बात से भी इत्तेफाक रखते हैं कि ऐसे मामलों में थोड़ा-बहुत इजाफा हुआ है. लेकिन वह इस बात पर संतोष भी जताते हैं कि मुट्ठी भर ऐसे लोग हैं, जो देश में सांप्रदायिकता को हवा देते हैं, लेकिन इसके दूसरे जानिब बहुसंख्यक समाज के 90 फीसदी ऐसे लोग हैं, जो उस किस्म के 10 फीसदी लोगों को बुरा बताते हैं और मानते हैं. इसलिए हमें 10 की फिक्र न करते हुए उन 90 फीसदी बहुसंख्यक समाज के प्यार, सहयोग और समर्थन पर फख्र करना चाहिए. हमारा उनके बिना कोई वजूद नहीं है. उसी समाज का एक बड़ा हिस्सा हमारा शुभचिंतक हैं.
वह कहते हैं, "इस मुल्क में चलने वाली हर ट्रेन में दाढ़ी-टोपी और पाजामे वाले मौलाना, जमात के लोग और बुर्का पहने हुई औरतें मिल जाती हैं. क्या कभी उन्हें अपने पहनावे और अलग पहचान की वजह से कोई दिक्कत होती है? इसका जवाब होगा कि नहीं होती है. वह अपनी पूरी आजादी के साथ सफर करते हैं. हां, अगर कभी कोई घटना हो जाती है तो ये पूरे मुल्क का सच नहीं है. 1.40 करोड़ की आबादी वाला देश है ये. घटनाओं को जेनरलाइज नहीं कर सकते हैं. इससे मुल्क में डर और अविश्वास का मौहाल पैदा होता है."
जफर सरेशवाला कहते हैं कि देश में कुछ लोग अल्पसंख्यकों को चिढ़ाने और प्रोवोक करने का काम कर रहे हैं. मुसलमानों को ऐसी किसी भी कार्रवाई पर रिएक्शन देने के बजाए खामोशी अख्तियार करना चाहिए. आप जितना रिएक्ट करेंगे उन्हें उतनी ही ताकत मिलेगी. सरेशवाला कहते हैं, "मुगल हमारे कौन लगते हैं, टीपू सुल्तान हमारे कौन हैं? क्या हमारी उनके साथ कोई रिश्तेदारी है. उनके खानादान के लोगों का कुछ अता-पता नहीं है. वह अपने इलाके और जमाने के बादशाह थे. लोग हर किसी का मूल्यांकन करते हैं, उनका भी कर रहे हैं. वह हमारे कोई रोल मॉडल नहीं रहे हैं. हमारे रोल मॉडल हजरत मोहम्मद स. और इस्लाम के खलीफा रहे हैं. हमें उनका फॉलो करना है, उनके बताए रास्ते पर चलना है. हमें मुगलों के नाम पर किसी उकसावे की कार्रवाई का शिकार नहीं होना चाहिए. हमें अभी जहां अपना सबसे ज्यादा ध्यान लगाना है, वह तालीम का शोबा है. हमारे नौजवान और हमारे बहनें तालीम से कोसों दूर हैं. रोजगार से दूर हैं. वह दीन से दूर हैं. हम हर बात के लिए, अपनी हर नाकामियों का ठीकरा किसी दूसरे के सर नहीं फोड़ सकते हैं. हमें खुद आगे आना होगा. अपने नौजवान नस्लों को आला तालीम से आरास्ता करना होगा. उन्हें रोजगार के लायक बनाना होगा. उनके अंदर खुद ऐतमादी लानी होगी. उन्हें खुद मुख्तार बनाना होगा. कल यही हमारी ताकत बनेगी."
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