भारत में डिजिटल कंपनियों का वर्चस्व कैसे है, इसके दुष्प्रभाव क्या हैं?
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भारत में डिजिटल कंपनियों का वर्चस्व कैसे है, इसके दुष्प्रभाव क्या हैं?

Twitter controversy: अमेरिका और यूरोप जैसे मुल्कों में सोशल मीडिया और दूसरे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के लिए सख्त कानून और नियम बने हैं. विदेशों में डेटा की हिफाज़त के सख्त कानून हैं. 

भारत में डिजिटल कंपनियों का वर्चस्व कैसे है, इसके दुष्प्रभाव क्या हैं?

नई दिल्ली: वर्चुअल दुनिया में इन दिनों एक विवाद काफी चर्चा में है. यह बहस माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर और भारतीय हुकूमत के बीच चल रहा है. दोनों के बीच यह तनातनी चल तो करीब दो साल से रही थी, लेकिन इसमें ज्यादा तीखापन तब आया जब भारतीय हुकूमत ने हाल ही में सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को लेकर नए आईटी रूल्स बना दिए. भारतीय हुकूमत और​ ट्विटर के बीच आखिर किस बात को लेकर बहस और विवाद की सूतरे हाल पेदा हुई इसको आसान ज़ुबान में समझने के लिए हमने सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील और साइबर कानून के जानकार विराग गुप्ता से बातचीत की. इस विवाद को लेकर उनसे तमाम सवालों के जवाब लेने की कोशिश की है जो एक आम पाठक के दिमाग में पैदा होते हैं. उन्होंने इस इंटरव्यू में विवाद के पीछे की वजहों के साथ  इसके हल के बारे में भी तफसील से बताया है...

भारतीय हुकूमत के नए IT Rules को न मानकर ट्विटर एक खुदमुख्तार कौम को चुनौती नहीं दे रहा?
नए आईटी नियमों को नहीं मानकर टि्वटर भारत जैसे संप्रभु राष्ट्र को यकीनी तौर पर चुनौती दे रहा है. ट्विटर ने अमेरिका में सदारती चुनाव के बाद ट्रंप को भी चुनौती दी थी. भारत सोशल मीडिया कंपनियों का सबसे बड़ा बाजार है.  ट्विटर जैसी सभी कंपनियां भारत में बगैर नकेल के सांड की तरह बर्ताव कर रही हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक पुराने फैसले में कहा था कि मीडिया कंपनियों को सारे नियम और कानून पर अमल करना चाहिए. इज़हारे राय की आजादी की आड़ में मीडिया कंपनियां मुल्क के कानून को मानने से अपना पीछा नहीं छुड़ा सकतीं.

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क्या दूसरे मुल्कों में भी सोशल मीडिया और OTT के लिए भारत के IT Rules की तरह के नियम मौजूद हैं? ट्विटर उन मुल्कों के कानूनों को मानता है?
अमेरिका और यूरोप जैसे मुल्कों में सोशल मीडिया और दूसरे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के लिए सख्त कानून और नियम बने हैं. विदेशों में डेटा की हिफाज़त के सख्त कानून हैं. जिसकी वजह से ये कंपनियां ग्राहकों के कीमती डेटा का बेरोक-टोक अपने कारोबारी लाभ के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकतीं. इसके उलट भारत में सोशल मीडिया के सभी प्लेटफॉर्म्स को मिला दें, तो 100 करोड़ से ज्यादा यूजर्स हैं. भारत में 2017 में सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बेंच के आदेश के बावजूद अभी तक डेटा की हिफाज़त का कानून नहीं बना है. इसकी वजह से ये कंपनियों भारत में यूजर्स के डेटा का इस्तेमाल अपने कारोबारी लाभ के लिए बेरोक-टोक कर रही हैं. ये कंपनियां यूजर्स को फ्री में खिदमत देती हैं. लेकिन भारत के करोड़ों यूजर्स के डेटा का तिजारत के तौर पर इस्तेमाल कर और आलमी बाजार में नीलामी कर खरबों डालर की कमाई करती हैं. ये कंपनियां अमेरिका और यूरोप में बड़े पैमाने पर फर्जी यूजर्स को बढ़ावा नहीं दे सकती हैं, क्योंकि वहां इसके लिए कानून है. जबकि भारत में इन कंपनियों के 30 फीसदी से ज्यादा यूजर्स फर्जी हैं.

ट्विटर एक प्राइवेट कंपनी है जिसका मकसद बिजनेस और प्रॉफिट है. इस लिहाज से ट्विटर को भारत की जरूरत है या भारत को ट्विटर की?
ट्विटर एक प्राइवेट कंपनी है जिसका मकसद तिजारत और मुनाफा कमाना है. इस लिहाज से भारत ट्विटर के लिए बहुत बड़ा बाजार है. भारत में लोकतंत्र की व्यवस्था और विचारों का खुलापन है, जिसकी वजह से ट्विटर खासा मशहूर है. इन प्लेटफॉर्म्स और एप्स की सक्सेस के लिए यह जरूरी है कि उनका आलमी नेटवर्क हो. ऐसा कोई भी प्लेटफॉर्म जो सिर्फ भारत के यूजर्स के बीच मशहूर हो, उसकी आलमी तौर पर मान्यता नहीं होगी. ट्विटर के विकल्प के तौर पर भारत में अभी कोई स्वदेशी अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म नहीं है. इस लिहाज से भारत में नेताओं और मीडिया के लिए ट्विटर ज़रूरी हो गया है. इसलिए भारत को ट्विटर की और ट्विटर को भारत की जरूरत है. 

भारत में डिजिटल कंपनियों का वर्चस्व कैसे है, इसके मुज़िर असरात क्या हैं?
इंटरनेट, कम्प्यूटर और स्मार्टफोन के कॉकटेल से जो नया बाजार खड़ा हुआ ,उसमें कई नई तरह की डिजिटल कंपनियां बिज़नेस करने लगीं. इनमें ज्यादा बड़ी कंपनियां अमेरिका की हैं. जबकि टेक्नॉलजी, सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर के मामले में चीन पर बहुत ज्यादा इंहिसार है. भारत में अजीब कानूनी सूरते हाल और तज़दात का फायदा उठाकर ये कंपनियां पोस्टमैन की बजाय ताकतवर ताजिर के किरदार में आ गई हैं. मुल्की मइशत के सभी क्षेत्रों में इजारादारी हासिल कर इन्होंने हर तरह की सेवाओं में अपनी दखलंदाजी बढ़ा ली है. लेकिन जब कानून पालन और टैक्स पेमेंट की बात आती है, तो ये कंपनियां इंटरमीडियरी का मास्क पहनकर बच निकलने की जुगत भिड़ाने लगती हैं. 

सोशल मीडिया का बिजनेस मॉडल कैसे दूसरे बिजनेस मॉडल से अलग है और इसके लिए कानूनी प्रोविजन क्या हैं?
भारत में इंटरनेट और डिजिटल कॉन्टेंट के नियमन के लिए सन 2000 में इंफॉर्मेशन टेक्नॉलजी एक्ट बना था. उस कानून के मुताबिक, डिजिटल कॉन्टेंट मुहैय्या कराने वाली कंपनियों को इंटरमीडियरी या एग्रीग्रेटर कहा जाता है. आसान जुबान में कहें तो ये कंपनियां पोस्टमैन की तरह हैं, जो कॉन्टेंट को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचा देती हैं. कानूनन देखा जाए तो उस कॉन्टेंट या सर्विस में इन कंपनियों का कोई रोल नहीं होना चाहिए. इसलिए आईटी एक्ट के सेक्शन 79 के तहत डिजिटल कॉन्टेंट उपलब्ध कराने वाली कंपनियों को कई तरह की कानूनी जवाबदेही से मुक्त रखा गया है. 

इंटरनेट बेस्ड एप्स और वेबसाइट के जरिए होने वाले इस नए बिजनेस मॉडल से भारतीय कानून के सामने कैसी चुनैतियां हैं?
फेसबुक, टि्वटर, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप जैसी कंपनियों के प्लेटफॉर्म को आम भाषा में सोशल मीडिया कहा जाता है. अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियां ई-कॉमर्स तो नेटफ्लिक्स जैसी कंपनियां ओटीटी का बड़ा प्लेटफॉर्म हैं. फेसबुक, अमेजन और गूगल अपनी विभिन्न कंपनियों के जरिए सोशल मीडिया, ई-कॉमर्स और पेमेंट सर्विसेज जैसे क्षेत्रों में दबदबा रखते हैं. इनमें अधिकांश कंपनियां वेबसाइट या एप्स के माध्यम से अपना कारोबार करती हैं. इसलिए इनके नियंत्रण और नियमन में बहुत सारी कानूनी चुनौतियां आती हैं. भारत बड़े पैमाने पर ऐसी चुनौतियों से जूझ रहा है. 

गैर मुल्कों में शिकायत ऑफिसर की नियुक्ति का पस मंज़र क्या है?
अगस्त 2013 में पास हुक्म के तहत इन सभी कंपनियों को भारत के कानून के मुताबिक, शिकायत ऑफिसर नियुक्त करना पड़ा. भारत के कानून को धता बताते हुए इन कंपनियों ने अपने शिकायत अधिकारी की नियुक्ति अमेरिका और यूरोप में कर डाली. हाई कोर्ट में तत्कालीन यूपीए और फिर भाजपा की सरकार ने इन डिजिटल कंपनियों के हक में हलफनामे दिए, जिसकी वजह से इन कंपनियों को बहुत शह मिल गई. इस वजह से ट्विटर जैसी कंपनियां भारत में जारी नए आईटी नियमों को अमल करने की मुखालिफत कर रही हैं.

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डिजिटल कंपनियों की तरफ से शिकायत ऑफिसर नियुक्त करने के मामले में 8 साल पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने किया आदेश दिया था?
आईटी एक्ट की धारा 79 के तहत इंटरमीडियरी की छूट हासिल करने के लिए इन कंपनियों को कई तरह के हिफाज़ती कदम उठाने की जरूरत है. इन कदमों के बारे में तफसील से आईटी एक्ट की धारा 87 के तहत सन 2011 में इंटरमीडियरी नियम बनाए गए. आईटी कानून को भारत की संसद से पास है है, जबकि नियम केंद्र सरकार बनाती है. साल 2011 के आईटी नियमों पर डिजिटल कंपनियों ने अमल नहीं किया. संघ प्रचारक और पूर्व भाजपा नेता केएन गोविंदाचार्य ने दिल्ली हाई कोर्ट में जून 2012 में एक अर्जी दायर की. बच्चों और महिलाओं की हिफाज़त, डेटा के जरिए देश की सुरक्षा, भारत में टैक्स की वसूली, आपराधिक कॉन्टेंट पर लगाम, सरकार द्वारा सोशल मीडिया का इस्तेमाल, सरकारी अधिकारियों के लिए ईमेल पॉलिसी आदि महत्वपुर्ण मुद्दों पर गोविंदाचार्य की याचिका पर 4 साल सुनवाई चली. इस दौरान हाई कोर्ट ने अनेक महत्वपूर्ण आदेश पारित किए. 

भारत सरकार द्वारा ट्विटर को दी गई कानूनी सुरक्षा वापस लेने से क्या फर्क पड़ेगा?
सरकार द्वारा ट्विटर को दी गई कानूनी सुरक्षा वापस लेने के गंभीर प्रभाव पड़ेंगे. इसकी वजह से ट्विटर को आईटी एक्ट के तहत प्राप्त सुरक्षा खत्म हो जाएगी, जिसके बाद आपत्तिजनक कॉन्टेंट के लिए कंपनी की जवाबदेही रहेगी. लेकिन इस बारे में कोई भी फैसला अदालत द्वारा ही होगा. कोई भी कंपनी इंटरमीडियरी के ​रूप में कानूनी सुरक्षा की हकदार है या नहीं, इस बारे में सभी पक्षों को सुनने के बाद उपयुक्त फैसला अदालत द्वारा ही हो सकता है.

(विराग गुप्ता ने सोशल मीडिया और डिजिटल कंपनियों के नियमन के बारे में बीते 10 वर्षों में अनेक लेखों, पुस्तकों और टीवी डिबेट्स के माध्यम से देशव्यापी जागरूकता पैदा की है. इन्होंने सोशल मीडिया से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में बहस की, जिसके फलस्वरूप भारत में इन कंपनियों के नियमन के बारे में कई बड़े आदेश पारित हुए.)

 

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