'अमृत्काल' में 5 लाख से ज्यादा अमीर कारोबारियों ने भारत छोड़कर विदेशों में ली शरण
Advertisement
trendingNow,recommendedStories0/zeesalaam/zeesalaam2366704

'अमृत्काल' में 5 लाख से ज्यादा अमीर कारोबारियों ने भारत छोड़कर विदेशों में ली शरण

Indian left citizenship: साल 2019 से 23 तक भारत के लगभग 5 लाख अमीर लोगों यानि कारोबारियों ने भारत की नागरिकता छोड़कर दुनिया के दूसरे देशों में शरण ले ली है. सरकार ने राज्यसभा में यह जानकारी दी है, जिसके बाद सरकार विपक्ष के निशाने पर आ गई है. विपक्ष ने पूछा है कि अगर देश में सबकुछ अच्छा चल रहा है, तो लोग देश क्यों छोड़ रहे हैं? 

'अमृत्काल' में 5 लाख से ज्यादा अमीर कारोबारियों ने भारत छोड़कर विदेशों में ली शरण

नई दिल्ली: सरकार जहाँ मौजूदा वक़्त को देश का अमृत्काल मानते हुए देश की अर्थव्यवस्था 5 ट्रिलियन तक पहुंचाने, विदेशी निवेश के लिए अच्छा माहौल होने और उच्च विकास दर का हवाला देकर खुद की पीठ थपथपा रही है, वहीँ  दूसरी तरफ तस्वीर सरकार के दावे को साफ झुठला रही हैं. विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने हाल ही में राज्यसभा में एक बयान दिया था, जिसके मुताबिक 2023 में 2.16 लाख से ज़यादा भारतीय अपनी नागरिकता छोड़कर विदेशों में बस चुके हैं. 

यह तादाद 2011 में 123,000 के मुकाबले में लगभग दोगुनी है. ख़ास बात यह है कि देश छोड़ने वाले लोग कारोबारी लोग हैं. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि कारोबारी हस्तियां तेजी से सिंगापुर, यूएई, यूके और अन्य स्थानों पर अपनी भारतीय नागरिकता त्याग कर पलायन कर रहे हैं. कांग्रेस ने शनिवार को सरकार पर तंज़ कसते हुए कहा है कि उच्च कौशल वाले और अमीर भारतीयों का पलायन एक "आर्थिक मजाक" है, जो अगले कुछ सालों में देश के कर राजस्व आधार को प्रभावित करेगा. 

खराब टैक्स नीतियां हो सकती है जिम्मेदार 
कांग्रेस महासचिव रमेश ने कहा कि  इस साल की शुरुआत में, एक प्रमुख वैश्विक निवेश सलाहकार फर्म ने खुलासा किया था कि पिछले तीन सालों में 17,000 से ज्यादा  करोड़पति (कुल संपत्ति 1 मिलियन डॉलर से जायद वाले कारोबारी) भारत छोड़ चुके हैं. कांग्रेस नेता ने कहा, "उच्च कौशल और हाई इन्कम वाले भारतीयों का यह पलायन खराब टैक्स नीतियों और मनमाने कर प्रशासन का नतीजा हो सकता है. जबकि पिछले एक दशक में देश के बिगड़े साम्प्रदायिक माहौल भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं. 

5 सालों में 5 लाख से ज्यादा ने किया पलायन 
गौरतलब है कि कीर्ति वर्धन सिंह ने 2011-2018 के लिए इसी तरह के आंकड़े भी साझा किए थे. आंकड़ों के मुताबिक, 2022, 2021, 2020 और 2019 के लिए इसी तरह के आंकड़े क्रमशः 2.25 लाख, 1.63 लाख, 85,256 और 1.44 लाख थे.  मंत्री ने यह आंकड़े AAP सदस्य राघव चड्ढा द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में दिया था. 
राघव चड्ढा ने यह भी पूछा है कि सरकार ने इतनी "बड़ी तादाद में देश के नागरिकों द्वारा देश छोड़ने के कारणों का पता लगाने के लिए क्या कदम उठाए हैं? साथ ही पूछा है  कि क्या सरकार ने नागरिकता के त्याग की वजह से देश को होने वाले "वित्तीय और बौद्धिक नुकसान" का पता लगाने के लिए क्या कोशिश कर रही है? 

सरकार देश छोड़ने वाले ऐसे नागरिकों को बता रही है देश की संपत्ति 
मंत्री ने अपने जवाब में कहा, "नागरिकता त्यागने/लेने के कारण व्यक्तिगत हैं. सरकार ज्ञान अर्थव्यवस्था के युग में वैश्विक कार्यस्थल की क्षमता को पहचानती है. एक सफल, समृद्ध और प्रभावशाली प्रवासी" भारत के लिए एक "संपत्ति" है. भारत अपने प्रवासी नेटवर्क का दोहन करने और ऐसे समृद्ध प्रवासी समुदाय से मिलने वाली सॉफ्ट पावर के उत्पादक उपयोग से बहुत कुछ हासिल कर सकता है.  सरकार के प्रयासों का उद्देश्य ज्ञान और विशेषज्ञता को साझा करने सहित प्रवासी क्षमता का पूरा दोहन करना है."
 

Trending news