महाकाल की नगरी का वह इलाका, जहां आज भी तोप की आवाज से होता है सेहरी और इफ्तार
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महाकाल की नगरी का वह इलाका, जहां आज भी तोप की आवाज से होता है सेहरी और इफ्तार

रमजान के मुबारक महीने में इबादत का दौर जारी है. इस महीने में नमाज के अलावा सेहरी और इफ्तार की बड़ी अहमियत होती है, जिसके लिए मध्य प्रदेश के उज्जैन में सदियों पुरानी रिवायत के सहारे रोजेदारों की खिदमत जारी है...  देखिये ये रिपोर्ट

महाकाल की नगरी का वह इलाका, जहां आज भी तोप की आवाज से होता है सेहरी और इफ्तार

उज्जैन / राहुल सिंह राठौड़: खुदा की इबादत के लिए अहमियत भरे पाक महीने को कई तरह से मनाया जाता है. रमजान में हर दिन सेहरी और इफ्तार के लिए लोगों को अलर्ट करनी पड़ती है कि सेहरी का वक्त खत्म हो गया. या इफ्तार करने का वक्त पूरा हो चुका है. बदले दौर में भले ही इसके लिए लाउडस्पीकर और तरह-तरह के उपकरणों का इस्तेमाल शुरू हो गया है, लेकिन सालों पहले सेहरी और इफ्तार के वक्त को जानने का अलग तरीका था. तकरीबन डेढ़ सौ साल पहले उज्जैन में इफ्तार और सेहरी के लिए तोप का इस्तेमाल किया जाता था. मध्य प्रदेश के तारीखी शहर में आज भी दोनो टाईम इसका इस्तेमाल बदस्तूर जारी है.  

150 साल पुरानी परंपरा आज भी बदस्तूर जारी 
ऐसे वक्त में जब मस्जिदों से आने वाली पांच वक्त की नमाज के अजान से लोगों को तकलीफ पहुंचने लगी है, महाकाल की नगरी उज्जैन में रोजे और इफ़्तार के लिए लगभग 150 साल पुरानी परंपरा आज भी बदस्तूर निभाई जा रही है. न यहां किसी को तोप की आवाज से तकलीफ है न इस परंपरा को निभाने से कोई शिकायत. महाकाल की नगरी अवंतिका उज्जैनी में सेहरी और इफ़्तार का एहतेमाम लोग आज भी सदियों पुरानी परंपरा के मुताबिक करते हैं. बारूद से भरी तोप दोनों वक्त रोजेदारों को ये संन्देश देती है कि सेहरी और इफ़्तार का वक्त हो गया है. ऐसा सिर्फ एक दिन नहीं बल्कि पूरे माह दोनों वक़्त किया जाता है.

देखें विडियो 

क्या कहते है इलाके के लोग ? 
स्थानीय निवासी मोहम्मद मकसूद बताते है कि 150 वर्ष पुरानी तोप आज भी तोपखाना क्षेत्र में मस्जिद में हमारे पास है जिसको रमज़ान माह में उपयोग में लाया जाता है. तोप के माध्यम से ही हम आज भी समाज के लोगो को सेहरी व इफ़्तार के वक़्त एकत्रित करने का संदेश देते है. एक वक्त था जब तोप की आवाज से पूरी नगरी में रोजेदारों को सेहरी और इफ़्तार का संदेश दिया जाता था, लेकिन अब बिल्डिंग बनने से आवाज की सीमा तय हो गई. अब तोप की अवाज करीब 3 किलोमीटर के क्षेत्र तक ही जा पाती है. तोप में एक वक्त में 100 ग्राम बारूद का उपयोग होता है व पूरे माह में 3 कीलो बारूद लग जाता है.

महाकालेश्वर मंदिर से 500 मीटर की दूरी पर छूटते हैं तोप 
दरअसल, इसमें खास बात यह है कि तोपखाना क्षेत्र बाबा महाकालेश्वर के मंदिर से महज 500 मीटर की दूरी पर है. यहां बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग रहते है और अपना रोजी-रोजगार करते है. दरअसल, ये क्षेत्र बाबा महाकाल मंदिर के मुख्य द्वार के ठीक सामने पड़ता है. सालों से यहां हिन्दू-मुस्लिम प्रेम और भाईचारे के साथ रहते हैं. महाकाल की यह नगरी आज भी समाज मे नफरत फैलाने वालों को प्रेम और एकता का संदेश देती है.  

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