Maulana Azad Death Anniversary: सऊदी अरब से लौटने के बाद मौलाना आज़ाद की मुल्क के अहम हिंदू इंकलाबियों जैसे श्री औरबिंदो घोष और श्याम सुंदर चक्रवर्ती से मुलाकात हुई. इसके बाद उन्होंने हिंदुस्तान के क़ौमी तहरीक में हिस्सा लेना शुरू कर दिया.
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नई दिल्ली: अहद करो, ये मुल्क हमारा है. हम इसी के लिए हैं और उसकी तक़दीर के बुनियादी फ़ैसले हमारी आवाज़ के बग़ैर अधूरे ही रहेंगे....यह कहना था मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का जो उन्होंने 1947 में बक़रीद के मौक़े पर दिल्ली की तारीख़ी जामा मस्जिद में कहा था. उन्होंने आज़ादी मिलने पर हिंदुस्तानी मुसलमानों को उस वक़्त ख़िताब किया था जब कुछ लोग इस मुल्क से रुख़्सत हो कर पाकिस्तान का रुख़ कर रहे थे. लेकिन उनकी ये बातें पढ़कर ऐसा लगता है जैसे ये अभी के लिए कही हैं. मौलाना अबुल कलाम आज़ाद 11 नवंबर 1888 को दुनिया की पाक सरज़मीन सऊदी अरब के मक्का में पैदा हुए थे और आज ही के दिन 22 फ़रवरी 1958 को इस दुनिया से रुखसत हो गए.
मौलाना अबुल का बायोग्राफी
मौलाना का असल नाम अबुल कलाम ग़ुलाम मोहिउद्दीन अहमद था लेकिन वह मौलाना आज़ाद के नाम से ही काफ़ी मशहूर हुए. मौलाना आज़ाद जंग-ए-आज़ादी के अहम लीडरों में से एक थे. मौलाना आज़ाद एक लीडर के साथ-साथ सहाफ़ी और मुसन्निफ़ भी थे. उनके वालिद का नाम मौलाना सैयद मोहम्मद खैरुद्दीन बिन अहमद अलहुसैनी था।उनकी वालिदा का नाम शेख़ आलिया बिंते मोहम्मद था जो शेख़ मोहम्मद बिन जहर अलवत्र की बेटी थीं.
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क़ौम परस्त इंक़लाबी बनने की वजह
अफ़ग़ानिस्तान, इराक़, मिस्र, सीरिया और तुर्की के सफ़र के दौरान उनकी मुलाक़ात वहां के उन इंक़लाबी लीडरों से हुई जो अपने मुल्क में एक आईनी हुकूमत की तश्कील के लिए लड़ रहे थे और इस वजह से उनको मुल्क से निकाल दिया गया था. इन इंक़लाबी लीडरान से उनको मुल्क के हालात के बारे में पता चला और फिर यही वजह रही के मौलाना आज़ाद क़ौम परस्त इंक़लाबी बनने के लिए मुतास्सिर हुए.
पाकिस्तान बनने के ख़िलाफ़ थे मौलाना आज़ाद
सऊदी अरब से लौटने के बाद मौलाना आज़ाद की मुल्क के अहम हिंदू इंकलाबियों जैसे श्री औरबिंदो घोष और श्याम सुंदर चक्रवर्ती से मुलाकात हुई. इसके बाद उन्होंने हिंदुस्तान के क़ौमी तहरीक में हिस्सा लेना शुरू कर दिया. आज़ाद की ये कोशिश उन मुस्लिम सियासतदानों को पसंद नहीं आई जिनका झुकाव फ़िरक़ावाराना मुद्दों की तरफ़ था ऐसे ही लोग इन की जमकर मुख़ालिफत करने लगे थे. इसके अलावा ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के टू नेशन थ्योरी को भी उन्होंने ख़ारिज कर दिया था। यानी वह उन मुस्लिमों में शामिल थे जिन्होंने मज़हब की बुनियाद पर एक अलग मुल्क पाकिस्तान बनने की तजवीज़ को सिरे से खारिज किया था.
बर्तानवी हुकूमत के ख़िलाफ़ रसायल की इशाअत
मौलाना आज़ाद ने 1912 में एक हफ्तावार मैगज़ीन निकालना शुरू किया जिसका नाम अल हिलाल था. अल हिलाल के ज़रिये उन्होंने फ़िरक़ावारना हम आहंगी और हिंदू मुस्लिम इत्तेहाद को बढ़ावा देना शुरू किया और साथ ही बर्तानवी हुकुमरानों पर हमला किया. ऐसे में बर्तानवी हुकूमत को अपनी तनक़ीद और हिंदू-मुस्लिम इत्तेहाद कैसे भाती, आखिरकार हुकूमत ने इस मैगज़ीन पर पाबंदी लगा दी. मौलाना आज़ाद भी कहां मानने वाले थे. उन्होंने अल-बलाग नाम से एक और दूसरी मैगज़ीन निकालनी शुरू कर दी। इसके ज़रिये से भी उन्होंने हिंदुस्तानी क़ौम परस्ती और हिंदू-मुस्लिम इत्तेहाद के अपने मिशन को आगे बढ़ाना शुरू किया. उन्होंने कई किताबें भी लिखीं जिनमें उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत की मुख़ालिफ़त और हिंदुस्तान में ख़ुद की हुकूमत की वकालत की। हिंदुस्तान की जद्दो-जहद आज़ादी पर उन्होंने एक किताब भी लिखी, 'इंडिया विंस फ्रीडम' जिसे 1957 में शाय किया गया.
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महात्मा गांधी के मज़बूत हामी थे मौलाना आज़ाद
जब खिलाफत आंदोलन छेड़ा गया तो उसके अहम लीडरों में से एक मौलाना आज़ाद भी थे. खिलाफत आंदोलन के दौरान ही उनका महात्मा गांधी से राब्ता हुआ. उन्होंने अदम तशद्दुद की सिविल नाफ़रमानी की तहरीक़ में गांधीजी की खुलकर हिमायत की और 1919 के रॉलट ऐक्ट के खिलाफ अदम तआवुन की तहरीक में अभी अहम किरदार अदा किया। महात्मा गांधी मौलाना आज़ाद को 'ज्ञान सम्राट' कहा करते थे.
आज़ाद हिंदुस्तान के पहले वज़ीर तालीम बने मौलाना आज़ाद
पंडित जवाहरलाल नेहरू की काबीना में 1947 से 1958 तक मौलाना अबुल कलाम आजाद वज़ीरे तालीम रहे। 22 फरवरी, 1958 को दिल का दौरा पड़ने से उनका इंतेक़ाल हो गया। उन्होंने आईआईटी, आईआईएम और यूजीसी (यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन) जैसे इदारों की बुनियाद में अहम रोल अदा किया। उनके तआवुन को देखते हुए 1992 में उनको भारत रत्न ऐज़ाज़ से नवाज़ा गया गया और उनके यौमे पैदाईश को हिंदुस्तान में नैशनल एजुकेशन डे के तौर पर मनाने का फैसला भी किया गया जो हर साल मुल्कभर में मनाया जाता है.
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