Womens Day: रशीदा बी और चंपा देवी शुक्ला मिलकर भोपाल गैस कांड के प्रभाव के चलते माजूर हुए बच्चों की जिंदगी में रोशनी बिखरने की कोशिश कर रही हैं. अब तक वह अपनी मुहिम के जरिए 100 बच्चों की जिंदगी बदल चुकी हैं
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Womens Day 2024: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की रशीदा बी और चंपा देवी शुक्ला की दोस्ती बेमिसाल है. दोनों ने इंटरनेशनल अवार्ड में मिली रकम से भोपाल गैस कांड के प्रभाव के चलते माजूर हुए बच्चों की जिंदगी में रोशनी बिखरने की मुहिम शुरू की, जो लगातार जारी है. अब तक वह अपनी मुहिम में 100 बच्चों की जिंदगी बदल चुकी हैं और कई बच्चों की जिंदगी में बदलाव लाने की कोशिशें जारी हैं. भोपाल में यूनियन कार्बाइड से दो-तीन दिसंबर 1984 की दरमियानी रात को जहरीली गैस का रिसाव होने से हजारों लोग मौत के मुंह में समा गए थे.
इसके अलावा एक बड़ी तादाद में हादसे के बाद पैदा हुए बच्चे भी बड़ी तादाद में विकलांगता की चपेट में आ गए हैं. भोपाल गैस हादसे से मिले जख्मों से दो चार इन दो महिलाओं की दोस्त बनने की कहानी अलग है.परिवार की माली हालत ठीक नहीं होने के बावजूद भी रशीदा बी और चंपा देवी शुक्ला ने ख्तावीन के साथ राज्य सरकार के जरिए गैस मुतास्सिरीन के एक लिए शुरू की गई मुहिम के तहत काम करना शुरू किया. इन सौ महिलाओं में एक तरफ 50 महिलाएं हिंदू समुदाय से थी, जिनकी नेतृत्व चंपा देवी शुक्ला और दूसरी तरफ 50 महिलाओं की अगुवाई रशीदा बी कर रही हैं.
सरकार ने जब ट्रेनिंग को बंद किया तो इन दोनों महिलाओं ने आंदोलन की कमान संभाली. रशीदा बी और चंपा देवी बताती हैं कि एक तरफ जहां वे अपने परिवार के जीवन यापन के लिए जद्दोजहद कर रही थीं, उसी दौरान उनके सामने दो बड़ी परेशानिया आईं. चंपा देवी की बेटी के यहां एक बच्ची ने जन्म लिया, जो विकलांग थी. इसी तरह रशीदा बी की बहन के यहां भी जिस बच्चे की पैदाइश हुई वह विकलांग था. इन हालात के बीच दोनों ने गैस पीड़ित विकलांग बच्चों के जिंदगी को बेहतर बनाने की मुहिम शुरू कर दी.
वे बताती हैं कि, उनकी इस मुहिम के चलते अमेरिका के एक इदारे ने उन्हें 'गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार' देने का ऐलान किया. सम्मान लेने से पहले दोनों ने तय किया कि वह चिंगारी नाम की संस्था बनाएंगी और पुरस्कार में मिलने वाली रकम से इस संस्था को आगे बढ़ाएंगी. रशीदा बी के लिए चंपा देवी दोनों एक दूसरे को बहन की तरह मानती हैं. साल 1985 से शुरू हुई दोस्ती ने साल 2006 में एक बड़ी महिम की शक्ल इख्तियार कर ली है. ईनाम में मिले एक लाख 25000 डॉलर (उस समय तकरीबन 58 लाख रुपये) से चिंगारी ट्रस्ट की शुरुआत हुई थी.
वे बताती हैं कि, बीते 18 साल में 1360 माजूर बच्चों का रजिस्ट्रेशन हुआ, इनमें से 100 बच्चे पूरी तरह सेहतमंद हो चुके हैं और वे आम लोगों की तरह जिंदगी जी रहे हैं. इन दोनों ख्वातीन को अफसोस इस बात का है कि उनकी इस मुहिम में एमपी की सरकार मदद के लिए आगे नहीं आई.