उत्तराखंड के राज्य आपदा प्रतिवादन बल (SDRF) के एक मुसलमान कर्मचारी आशिक अली और उनकी टीम ने गंगा में डूबते हुए 5 कांवड़िये की जान बचा ली है. इसके बाद देशभर में आशिक अली और उनकी टीम की तारीफ हो रही है. मुसलमानों को अब्दुल कहकर चिढाने और उनसे घृणा करने वाले लोग भी आशिक अली की बहादुरी पर उन्हें दाद दे रहे हैं.
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अभी सावन शुरू होने के पहले उत्तर प्रदेश में मुस्लिम होटल कारोबारी और ठेले पटरी वाले को दुकान और होटलों पर अपना नाम लिखने के सरकार के आदेश और उसपर ऐतराज जताने के लिए मुस्लिम और सेक्युलर लोग निशाने पर थे. सरकार समर्थित और दक्षिण पंथी या सीधे तौर पर कहें तो मुसलमानों को खलनायक साबित करने वाले किसी भी मौके को हाथ से न गंवाने वाले लोग योगी सरकार के इस आदेश पर सवाल उठाने के लिए पूरे मुस्लिम समाज को कोस रहे थे. फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार के इस आदेश पर रोक लगा दी है. इधर, बहुसंख्यक समाज के एक वर्ग के नफरत की इस आंधी को थामने के लिए उत्तराखंड का एक मुस्लिम पुलिस वाला आशिक अली सामने आ गया है! एक -दो दिन के लिए ही सही, लेकिन अली ने पूरे फिजा का माहौल बदल दिया है. लोग 'अब्दुल' से ज्यादा 'अली' का नाम ले रहे हैं.
उत्तराखंड के राज्य आपदा प्रतिवादन बल (SDRF) के एक मुसलमान मुलाजिम आशिक अली ने दो दिनों में अलग-अलग हादसों में गंगा नदी में डूब रहे दो नाबालिगों समेत 5 कांवड़ियों की जान बचाकर मसीहा बन गया है. हरिद्वार सहित पूरे हिंदी प्रदेश में हर कोई हेड कांस्टेबल आशिक अली के साहसी काम के लिए उनकी हौसला अफजाई कर रहा है. आशिकअली, हर की पौड़ी के नजदीक कांगड़ा घाट पर तैनात हैं.
बताया जा रहा है कि फरीदाबाद के पीरबाबा मोहल्ले के निवासी मोनू सिंह (21) मंगलवार को कांगड़ा घाट पर नहाने के दौरान अचानक गंगा नदी के तेज बहाव की चपेट में आ गए और पानी में बह गए. मोनू को नदी में बहते देखकर आशिक अली ने अपने एक साथी के साथ गंगा नदी में छलांग लगा दी मोनू को सुरक्षित बचा लिया. एक दूसरे हादसे में आशिक अली ने उत्तराखंड के उधमसिंह नगर के 21 वर्षीय कांवड़िया गोविंद सिंह की भी जान बचाई. इससे एक दिन पहले भी आशिक अली ने गोरखपुर के संदीप सिंह (21), दिल्ली के करन (17) और हरियाणा के अंकित (15) को भी गंगा में डूबने से बचाया था. हालांकि, ये काम अली ने अकेले नहीं किया था. कांवड़ियों को बचाने के इस काम में कांस्टेबल अनिल सिंह कोठियाल, प्रदीप रावत, शिवम सिंह और अग्निशमन सेवा के कांस्टेबल लक्ष्मण चौहान ने भी आशिक अली की मदद की थी.
लेकिन नाम हमेश किसी टीम के मुखिया का होता है, सो अली का भी नाम हुआ. ठीक वैसे ही जैसे भारत में मिसाइल वैज्ञानिकों की पूरी टीम ने बनाया था, लेकिन नाम एपीजे अब्दुल कलाम का हुआ. लोग ऐसा बोल रहे हैं कि अली ने डूबने वाले से बिना उसका धर्म और जाति पूछे ही नदी में छलांग लगी दी थी. उसने अपनी जान की भी परवाह नहीं की.
आशिक अली ने कहा, "लोगों की जान बचाना उनका धर्म है, और जब कोई नदी में डूबता है, तो वह यह नहीं देखते कि वह इंसान किस जाति या धर्म का है. मेरे लिए तो वह सिर्फ एक इंसान है और उसकी जान बचाना ही मेरा धर्म है.” अली कहते हैं, किसी को डूबने से बचाते है तो हमें बहुत आत्मिक संतुष्टि मिलती है." अली के इस नेक और साहसी काम से खुश होकर हरिद्वार के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रमेंद्र डोभाल ने अली को ‘मैन आफ द डे’ से सम्मानित किया.
आशिक अली हीरो हो गए हैं. अली हकीकत में भी हीरो हैं. आशिक अली को हम सभी का खासकर सभी मुसलमानों का आदर्श होना चाहिए. नफरत का जवाब नफरत कभी नहीं हो सकता है... हमें 'अब्दुल' जैसे हर अपमान और घृणा का बदला 'अली' से देना होगा.
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं.